kumaun university appoinment controversy
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चयन हुआ पवन कुमार मिश्रा का और नियुक्ति मिली प्रमोद कुमार मिश्रा को !

उत्तराखण्ड की कुमाऊं यूनिवर्सिटी में ये कारनामा हुआ। एक पद के लिए पी के मिश्रा नाम के दो अभ्यर्थी आए। जिसका चयन हुआ था, उसकी जगह नौकरी किसी और को दे दी गई।


पवन कुमार मिश्रा और प्रमोद कुमार मिश्रा, ये दोनों अलग-अलग नाम हैं लेकिन उत्तराखण्ड की कुमाऊं यूनिवर्सिटी ने ऐसा घालमेल किया कि जिन पीके मिश्रा का टीचिंग के लिए का चयन हुआ था, उनकी जगह दूसरे पीके मिश्रा को नौकरी दे डाली।

जिनका चयन हुआ था वो हैं पवन कुमार मिश्रा और जिनको नियुक्ति मिली उनका नाम है प्रमोद कुमार मिश्रा।

असल में हुआ ये कि नवंबर 2024 में पवन कुमार मिश्रा को एक अनजान व्हाट्सएप नंबर से एक संदेश मिला, जिसमें कुमाऊं विश्वविद्यालय का 28 फरवरी 2005 का एक आदेश संलग्न था।

इस आदेश में उन्हें भौतिकी विभाग में चार चयनित शिक्षकों में शामिल बताया गया था। इस आदेश की उन्हें अब तक कोई जानकारी नहीं थी। आगे जांच करने पर पता चला कि संबंधित पद प्रमोद कुमार मिश्रा को दे दिया गया था।

दिलचस्प बात यह रही कि दोनों पी.के. मिश्रा, पवन कुमार और प्रमोद कुमार, ने उस पद के लिए इंटरव्यू दिया था।

यूनिवर्सिटी की चुप्पी और RTI का रास्ता

पद न मिलने की वजह समझने के लिए पवन मिश्रा ने कुलपति से संपर्क किया, जहां उन्हें जांच का आश्वासन मिला। लेकिन जब महीनों तक कोई उत्तर नहीं आया, तो उन्होंने RTI दाखिल की।

इसके बाद उन्हें पता चला कि 3 मार्च 2005 को विश्वविद्यालय ने एक संशोधन पत्र (corrigendum) जारी किया था, जिसमें चयन सूची में उनका नाम बदलकर प्रमोद कुमार मिश्रा कर दिया गया था—टाइपिंग त्रुटि के नाम पर।

अदालत की शरण और दस्तावेज़ों की मांग

इस सफाई से असंतुष्ट होकर पवन मिश्रा ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 15 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने कुमाऊं विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि 30 अप्रैल तक संबंधित सभी दस्तावेज प्रस्तुत किए जाएं।

पात्रता, अनुभव और इंटरव्यू

पवन मिश्रा पिछले 25 सालों से दिल्ली में रह रहे हैं और गाज़ियाबाद के इंदिरापुरम में एक कोचिंग सेंटर में IIT अभ्यर्थियों को भौतिकी पढ़ाते हैं। वह गोरखपुर के मूल निवासी हैं, लखनऊ विश्वविद्यालय से भौतिकी में स्नातकोत्तर हैं और CSIR-UGC NET भी उत्तीर्ण कर चुके हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स में पवन कुमार मिश्रा को ये कहते हुए उद्धृत किया गया है कि "मैं इस पद के लिए पूरी तरह योग्य था। मैंने यूपी सैनिक स्कूल, लखनऊ में भी पढ़ाया है। मेरा इंटरव्यू 15 मिनट चला और मुझे पूरा भरोसा था कि मेरा चयन होगा। लेकिन न कोई कॉल आया और न सूचना। मेरी ही गलती थी कि मैंने फिर से जाकर स्थिति की जानकारी नहीं ली।"

110 में से 58 उम्मीदवारों ने इंटरव्यू दिया था, जिनमें दोनों मिश्रा भी शामिल थे।

याचिका की मुख्य मांगें

याचिका में पवन कुमार मिश्रा ने पद पर पीछे से नियुक्ति (retrospective effect) का आरोप लगाया और प्रमोद कुमार मिश्रा की बर्खास्तगी की मांग उठाई। याचिका में कहा गया है: “28 फरवरी 2005 को सभी चार चयनित उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र जारी किए गए थे, जिनमें याचिकाकर्ता का नाम भी था। नैनीताल, हल्द्वानी और अल्मोड़ा के स्थानीय उम्मीदवारों ने उसी दिन प्रभार प्रमाण पत्र जमा कर दिया। लेकिन याचिकाकर्ता, जो दूर का निवासी था, को चयन की सूचना कभी नहीं दी गई।”

संशोधन पत्र की वैधता पर सवाल

पवन मिश्रा द्वारा जनवरी 2025 में दाखिल RTI में पूछा गया था कि संशोधन पत्र को कार्यकारी परिषद (Executive Council) से स्वीकृति मिली थी या नहीं। 25 जनवरी के उत्तर में कहा गया कि ऐसा कोई अनुमोदन नहीं हुआ।

याचिका में कहा गया: "RTI से स्पष्ट हुआ कि नियुक्ति का अधिकार सिर्फ कार्यकारी परिषद के पास है, इसलिए यह संशोधन पत्र अवैध और असंवैधानिक है।"

प्रभाव और रिश्तेदारों की भूमिका

याचिका में यह भी आरोप है कि प्रमोद मिश्रा के ससुर, जो विश्वविद्यालय के वनस्पति विभाग में प्रोफेसर हैं, ने चयन प्रक्रिया को प्रभावित किया।

मीडिया रिपोर्ट्स में कुमाऊं विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार मंगल सिंह के हवाले से कहा गया है कि "हमें इस मामले की जानकारी नहीं थी। पवन मिश्रा ने RTI में कई दस्तावेज मांगे थे, जो हमने दे दिए। उन्होंने हमें पत्र भी लिखा था। हम जांच कर ही रहे थे कि उन्होंने कोर्ट का रुख किया। अब हम कोर्ट के निर्देशानुसार आगे बढ़ेंगे।"

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