
महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य बनाने के खिलाफ है राज्य की भाषा समिति
महाराष्ट्र सरकार ने राज्य के सभी बोर्ड स्कूलों में पहली कक्षा से हिंदी को मराठी और अंग्रेजी के साथ तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य कर दिया है।
महाराष्ट्र सरकार की भाषा परामर्श समिति ने पहली कक्षा से हिंदी को अनिवार्य बनाने के निर्णय का सर्वसम्मति से विरोध किया। समिति के प्रमुख लक्ष्मीकांत देशमुख ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर इस निर्णय को वापस लेने का अनुरोध किया है।
17 अप्रैल को राज्य सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के अनुसार मराठी और अंग्रेजी के साथ हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पहली कक्षा से अनिवार्य करने का निर्णय लिया था।
महाराष्ट्र राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (SCERT) के निदेशक राहुल अशोक रेखावर ने बताया कि यह निर्णय 16 अप्रैल को स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा लिया गया।
रेखावर ने ANI से कहा, "महाराष्ट्र सरकार की ओर से स्कूल शिक्षा विभाग ने निर्णय लिया है कि राज्य बोर्ड के सभी स्कूलों में पहली कक्षा से मराठी और अंग्रेजी के साथ हिंदी भाषा की पढ़ाई अनिवार्य होगी। यह निर्णय सभी नियुक्तियों और उनके विकास को ध्यान में रखते हुए लिया गया है, और इससे छात्रों को निश्चित रूप से लाभ मिलेगा।"
जब विपक्षी दलों ने इस कदम का विरोध किया, तो सीएम फडणवीस ने कहा, "महाराष्ट्र में मराठी भाषा अनिवार्य है; सभी को इसे सीखना चाहिए। इसके अलावा यदि आप अन्य भाषाएं सीखना चाहते हैं तो आप सीख सकते हैं। हिंदी का विरोध और अंग्रेजी को बढ़ावा देना आश्चर्यजनक है। यदि कोई मराठी का विरोध करता है, तो यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।"
महा विकास आघाड़ी का विरोध
विपक्षी महा विकास आघाड़ी (MVA) ने सत्ताधारी महायुति सरकार पर तीखा हमला बोला। NCP (एसपी) सांसद सुप्रिया सुले ने कहा, “मैंने सबसे पहले शिक्षा मंत्री के उस बयान का विरोध किया जिसमें कहा गया था कि महाराष्ट्र में CBSE बोर्ड को अनिवार्य बनाया जाएगा। राज्य में पहले मौजूदा राज्य बोर्ड को क्यों हटाया जाए? भाषा के मुद्दे से पहले हमें राज्य की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था पर बात करनी चाहिए।”
पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना (UBT) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा, “अगर आप प्रेम से कहेंगे तो हम सब कुछ करेंगे, लेकिन जबरदस्ती कुछ थोपा गया तो हम उसका विरोध करेंगे। हिंदी सिखाने के लिए यह जबरदस्ती क्यों?”
कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार ने भी इस निर्णय का कड़ा विरोध करते हुए सरकार से भाषा को "थोपने" से बचने की अपील की। उन्होंने कहा, “आप इसे वैकल्पिक रख सकते हैं, लेकिन थोप नहीं सकते। आप किसके इशारे पर इस भाषा को राज्य पर थोपना चाह रहे हैं?”
उन्होंने कहा, “हम मराठी को अपनी मातृभाषा मानते हैं, और जो तीसरी भाषा लाई जा रही है उसे लागू नहीं किया जाना चाहिए। मराठी लोगों के अधिकारों के खिलाफ किसी भी तरह की जबरदस्ती नहीं होनी चाहिए, यही हमारी मांग है।"