दिलचस्प रहा बिहार का चुनाव, जातियों की गोलबंदी-किलेबंदी में सेंधमारी
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दिलचस्प रहा बिहार का चुनाव, जातियों की गोलबंदी-किलेबंदी में सेंधमारी

वैसे तो जाति के आधार पर भारत के सभी राज्यों में वोट पड़ते हैं.लेकिन इस दफा बिहार में तीन जगहों पर जातीय किलेबंदी टूट गई,


Bihar LokSabha Election 2024: आम चुनाव 2024 के नतीजों पर इस समय हर एक दिन विश्लेषण का काम जारी है. बीजेपी का प्रदर्शन खराब क्यों रहा यह चर्चा के केंद्र में है, लेकिन यहां हम जिस विषय पर बात करेंगे वो बेहद दिलचस्प है.बात बिहार की. बिहार, देश का एक ऐसा राज्य है जिसकी पहचान देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, रामधारी सिंह दिनकर, फणीश्वरनाथ रेणु की धरती, लोकनायक जय प्रकाश नारायण के नाम से जाना जाता है. भारत की सियासत में जय प्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के नारे से कोई कैसे भूल सकता है. संपूर्ण क्रांति का असर दिल्ली की गद्दी पर तो पड़ा ही. बिहार पर भी पड़ा. यहां पर लोगों ने अपने नाम के आगे से टाइटल को हटाना शुरू कर दिया और वो प्रक्रिया आज भी जारी है. लेकिन चुनावी रण में जातीय गोलबंदी और किलेबंदी नहीं टूट सकी. हालांकि 2024 के जो नतीजे सामने आए हैं उससे आशा कि किरण जगी है कि बिहार में अब जातीय किलेबंदी धीरे धीरे हमेशा के लिए टूट जाए.

ऐसा माना जाता है कि बिहार में कुल 19 ऐसे जातीय किले थे जहां आप दूसरी जातियों की जीत के बारे में सोच नहीं सकते. हालांकि इस दफा 3 किले ध्वस्त हो चुके हैं. यानी कि अभी भी 16 ऐसे किले मौजूद हैं.यहां हम एक एक किलों की जानकारी देंगे.

  • भूमिहार- नवादा, मुंगेर
  • राजपूत- वैशाली, पूर्वी चंपारण और महाराजगंज
  • ब्राह्मण- दरभंगा
  • कायस्थ- पटना साहिब
  • यादव- मधेपुरा, मधुबनीस पाटलिपुत्र
  • कुर्मी- नालंदा
  • कोईरी- काराकाट
  • वैश्य- पश्चिमी चंपारण
  • मुसहर- गया
  • पासवान- हाजीपुर
  • निषाद- मुजफ्फरपुर

ये तीन इलाके कहलाते हैं चित्तौड़गढ़

औरंगाबाद, आरा में सामान्य तौर पर राजपूत समाज के उम्मीदवार ही चुनाव जीता करते थे. लेकिन इस दफा पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग से सांसद चुने गए हैं. लेकिन शिवहर जो आमतौर पर वैश्य समाज को प्राथमिकता देता था. वहां तस्वीर बदली है. उस संसदीय क्षेत्र ने राजपूत समाज की लवली आनंद को अपना नेता चुना है. बिहार में आरा, महाराजगंज और औरंगाबाद को चित्तौड़गढ़ की संज्ञा दी गई है. अब इस तरह की स्थिति क्यों बनी, दरअसल जब बिहार में परिसीमन हुआ था तो उस वक्त संसदीय क्षेत्रों का चुनाव इस तरह से किया गया कि जातियों का बोलबाला रहा. अगर बात औरंगाबाद की करें तो 2009 से लेकर 2019 तक सुशील सिंह जीत हासिल करने में कामयाब रहे. लेकिन 2024 के चुनाव में हार मिली.इसी तरह से आरा से आर के सिंह अपना चुनाव हार गए और सीपीआई माले के सुदामा प्रसाद के हाथ बाजी लगी. अगर औरंगाबाद की बात करें तो पिछड़ा और अति पिछड़ा समाज को जीत मिली.

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