मदरसा बोर्ड खत्म: धार्मिक बनाम आधुनिक शिक्षा, उत्तराखंड में नई बहस शुरू
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मदरसा बोर्ड खत्म: धार्मिक बनाम आधुनिक शिक्षा, उत्तराखंड में नई बहस शुरू

Uttarakhand Education Reform: उत्तराखंड सरकार का यह कदम देशभर में चर्चा का विषय बन गया है. अब देखने वाली बात होगी कि दूसरे राज्य भी इस मॉडल को अपनाते हैं या नहीं.


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Uttarakhand Madarsa Board abolished: क्या उत्तराखंड में धार्मिक शिक्षा के नाम पर अब राजनीति हो रही है? क्योंकि राज्य में राज्यपाल की मंजूरी के साथ ही मदरसा बोर्ड को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. सरकार के इस कदम से कई सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या यह शिक्षा में सुधार की दिशा है या फिर एक समुदाय को टारगेट करने की रणनीति? नई व्यवस्था के तहत अब सभी मदरसों को राज्य शिक्षा बोर्ड से मान्यता लेनी होगी. लेकिन क्या इस फैसले से अल्पसंख्यकों की शिक्षा प्रभावित होगी या मदरसों में होने वाली पढ़ाई और कामकाज की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी?

अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक के तहत अब राज्य में चल रहे सभी मदरसों को उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण से मान्यता लेनी होगी और उत्तराखंड स्कूल शिक्षा बोर्ड से संबद्ध होना अनिवार्य होगा.

फैसले का मकसद?

सरकार का उद्देश्य है कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में शामिल किया जाए, जिससे सभी बच्चों को समान और आधुनिक शिक्षा मिल सके. इसे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में एक समान और आधुनिक शिक्षा व्यवस्था की दिशा में ऐतिहासिक कदम बताया है.

2026 से लागू होगी नई व्यवस्था

नई व्यवस्था जुलाई 2026 से शुरू होने वाले शैक्षणिक सत्र में सभी अल्पसंख्यक स्कूलों में लागू होगी. इसके तहत मदरसों में नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (NCF) और नई शिक्षा नीति (NEP 2020) लागू की जाएगी.

विधानसभा से पास हुआ था बिल

यह विधेयक गैरसैण में आयोजित उत्तराखंड विधानसभा के मानसून सत्र में पास किया गया था. राज्यपाल ने इसे मंजूरी देने से पहले सिख, मुस्लिम, जैन, ईसाई, बौद्ध आदि धर्मों के अल्पसंख्यक प्रतिनिधियों से चर्चा भी की थी. इस कदम के साथ उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है, जहां मदरसा बोर्ड को पूरी तरह समाप्त किया गया है और सभी अल्पसंख्यक संस्थानों को राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था से जोड़ा जा रहा है.

इस मामले पर उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार पंकज कुशवाल ने 'द फेडरल देश' को बताया कि अभी तक मदरसों का अलग बोर्ड होता था. लेकिन अब फिर चाहे वह मुस्लिम हो, सिख और ईसाई हो, सबको एक बोर्ड के तहत लाने की कोशिश राज्य सरकार द्वारा की गई है. हालांकि, जब से पुष्कर सिंह धामी मुख्यमंत्री बने हैं, तब से उन्होंने राज्य में हिंदू हितैषी होने की छवि गढ़ी है. इसके तहत यूसीसी जैसे कानून भी राज्य में देखे गए.

उन्होंने बताया कि पुष्कर सिंह धामी की बात करें तो वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की राह पर चलने की कोशिश कर रहे हैं. यही वजह है कि वह खुद को प्रो हिंदू दिखाने से ज्यादा एंटी मुस्लिम दिखाना चाहते हैं. क्योंकि, जिस तरह का वोट बैंक बीजेपी ने इजाद किया है, उसमें धर्मनिरपेक्ष राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं है.

पंकज कुशवाल कहते हैं कि हालांकि, इस एंटी मुस्लिम दिखने की होड़ में बीजेपी ने अच्छे काम भी किए हैं. जैसे कि तीन तलाक का कानून खत्म करना हो या फिर अभी मदरसा बोर्ड को समाप्त करना है. इस बोर्ड को खत्म करने का सबसे अधिक फायदा छात्रों को ही होगा. क्योंकि, मदरसों पर अक्सर कार्य प्रणाली, तौर-तरीकों और पढ़ाने को लेकर सवाल उठते रहे हैं. लेकिन अब नई शिक्षा प्रणाली के तहत आने से गरीब तबके से आने वाले छात्रों को धार्मिक के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा भी मिल सकेगी. यही वजह है कि उत्तराखंड में मदरसा बोर्ड खत्म करने के फैसले का मुस्लिमों ने विरोध नहीं किया.

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