महाराष्ट्र: सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में सबकुछ ठीक? फिर चुनाव से पहले अंदरूनी कलह क्यों
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महाराष्ट्र: सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन में सबकुछ ठीक? फिर चुनाव से पहले अंदरूनी कलह क्यों

महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले सत्तारूढ़ भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के महायुति गठबंधन में दरार सामने आने लगी है.


Maharashtra Assembly Elections: महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों की घोषणा में अब मुश्किल से ही कुछ समय बचा है और पिछले कुछ हफ्तों से सत्तारूढ़ भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के महायुति गठबंधन में दरार कई मुद्दों पर खुलकर सामने आने लगी है.

आने वाले दिनों में यह दरार और भी बढ़ सकती है. क्योंकि महायुति के सहयोगी महत्वपूर्ण विधानसभा चुनावों के लिए सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने के लिए विचार-विमर्श कर रहे हैं, जिसमें उनका मुकाबला महा विकास अघाड़ी (एमवीए) से है, जिसमें कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और एनसीपी (एसपी) शामिल हैं. भाजपा की ओर से बातचीत का नेतृत्व कर रहे महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के लिए अन्य दो सहयोगियों को शांत करना एक कठिन काम होगा, जो सीटों का बड़ा हिस्सा मांग रहे हैं.

राजनीतिक हलकों में पहले से ही चर्चा है कि महायुति के सहयोगियों के बीच सब कुछ ठीक नहीं है. यह तब साफ हो गया, जब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने पिछले सप्ताह लोकप्रिय योजना 'माझी लड़की बहिन' (मेरी प्यारी बहन) के प्रचार के लिए रत्नागिरी का दौरा किया, जिसके तहत 21 से 65 वर्ष की आयु की पात्र महिलाओं को, जिनकी पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है, 1,500 रुपये प्रति माह दिए जाते हैं. कोंकण में आयोजित इस कार्यक्रम में एनसीपी के नेता तो शामिल हुए. लेकिन भाजपा के नेता और कार्यकर्ता अनुपस्थित रहे.

शिंदे सेना- भाजपा में तीखी नोकझोंक

कोंकण क्षेत्र के वरिष्ठ शिवसेना (शिंदे) नेता रामदास कदम ने हाल ही में मुंबई-गोवा राजमार्ग की दयनीय स्थिति के बारे में बात करते हुए भाजपा नेता और पीडब्ल्यूडी मंत्री रवींद्र चव्हाण को “एक बेकार मंत्री” कहा. उन्होंने कहा कि 14 साल के इंतजार के बाद भगवान राम का वनवास भी खत्म हो गया. लेकिन मुंबई-गोवा हाईवे पर समस्याएं बरकरार हैं. हम अभी भी अच्छी सड़कों से वंचित हैं. सड़कें गड्ढों से भरी हैं. पीडब्ल्यूडी मंत्री रवींद्र चव्हाण पूरी तरह से बेकार लगते हैं. गठबंधन में होने के बावजूद, मेरा खुले तौर पर मानना है कि (उपमुख्यमंत्री) देवेंद्र फडणवीस को चव्हाण से इस्तीफा मांगना चाहिए.

हालांकि, परेशान चव्हाण ने कदम पर पलटवार करते हुए उन्हें 'अनपढ़ आदमी' करार दिया. उन्होंने कहा कि आप अपनी भाषा पर ध्यान दें. मैं किसी से भी ऐसी गाली बर्दाश्त नहीं करूंगा. अगर आपमें हिम्मत है तो आकर मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिलें. गठबंधन में होने का मतलब यह नहीं है कि कोई कुछ भी कहेगा और मैं सुनता रहूंगा. यह विषय केंद्रीय राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय से संबंधित है. 15 साल तक मंत्री रहने के बावजूद कदम ने कोंकण के लिए क्या किया है? मैं भी उन्हीं की भाषा बोल सकता हूं.

दोनों वरिष्ठ नेताओं के बीच यह वाकयुद्ध फडणवीस को रास नहीं आया, जिन्होंने कहा कि वे इस मुद्दे को मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के समक्ष उठाएंगे. उन्होंने कहा कि कदम सार्वजनिक रूप से ऐसी टिप्पणियां करते समय किस गठबंधन सिद्धांत का पालन करते हैं? वे हमारे साथ आंतरिक रूप से अपनी चिंताओं को व्यक्त कर सकते थे. फिर भी, मैं उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर गौर करूंगा.

शीर्ष पद के लिए प्रतिस्पर्धा

जहां एकनाथ शिंदे 2022 में शिवसेना से अलग होकर अपनी मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा को पूरा करने में सफल रहे. वहीं, अजित पवार, जो लंबे समय से शीर्ष पद पर नजर गड़ाए हुए हैं, अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि दो क्षेत्रीय दलों के अलग हुए गुटों का नेतृत्व कर रहे दोनों नेताओं के बीच सत्ता के लिए एक खामोश संघर्ष चल रहा है. महत्वपूर्ण वित्त विभाग की कमान संभाल रहे अजित विधानसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखने वाले एक लोकप्रिय और कुशल वरिष्ठ नेता के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं.

दिलचस्प बात यह है कि अजित अपनी महत्वाकांक्षाओं के बारे में काफी खुले हैं. क्योंकि उन्होंने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान विस्तार से बात की, जिसमें फडणवीस और शिंदे भी मौजूद थे, कि कैसे उन्हें पीछे छोड़ दिया गया. जबकि उनके “जूनियर” आगे बढ़कर मुख्यमंत्री बन गए. फडणवीस 2014 से 2019 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे थे.

शिंदे और अजीत भी लड़की बहिन योजना का श्रेय लेने की होड़ में हैं. अजीत इसे “माझी लड़की बहिन” (मेरी प्यारी बहन) के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. जबकि खुद को ‘दादा’ (बड़े भाई) के रूप में पेश कर रहे हैं, जो लंबे समय से उनके साथ जुड़ा हुआ है. दूसरी ओर, शिंदे उसी योजना का प्रचार कर रहे हैं. लेकिन एक उपसर्ग के साथ- ‘मुख्यमंत्री लड़की बहिन योजना’.

दोनों के बीच शीत युद्ध पहले से ही शासन पर भारी पड़ रहा है. क्योंकि पता चला है कि अजीत और शिंदे एक-दूसरे से मिलने वाली फाइलों को हफ्तों तक दबाए बैठे रहते हैं. शिंदे सेना के विधायकों ने यह भी आरोप लगाया है कि अजीत पवार ने अपने विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों को अधिक धन आवंटित किया. जबकि शहरी विकास और मुख्यमंत्री के अधीन अन्य विभागों को धन देने से इनकार कर दिया.

पुणे में भाजपा बनाम एनसीपी

पिछले कुछ हफ्तों में पुणे में विभिन्न मुद्दों को लेकर भाजपा और अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा आमने-सामने आ गई हैं. हाल ही में पुणे जिले के जुन्नार इलाके में अजित की जन सम्मान यात्रा के दौरान कथित तौर पर भाजपा से जुड़े लोगों के एक समूह ने उन्हें काले झंडे दिखाए. प्रदर्शनकारियों ने अजित पर आधिकारिक समारोह आयोजित करने और सहयोगियों को “दरकिनार” करने का आरोप लगाया.

इसके अलावा, इन कार्यक्रमों में अणुशक्ति नगर के एनसीपी विधायक नवाब मलिक की मौजूदगी भाजपा को रास नहीं आ सकती. मलिक पर मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में आरोप लगाया गया है और फिलहाल वे मेडिकल आधार पर अंतरिम जमानत पर हैं. अजित ने मलिक की बेटी सना को पार्टी का प्रवक्ता भी नियुक्त किया है. यह सब इस तथ्य के बावजूद कि फडणवीस ने पिछले साल अजित को पत्र लिखकर मलिक को सत्तारूढ़ गठबंधन में शामिल करने की किसी भी योजना के खिलाफ़ लिखा था. इस बीच, एक अन्य मामले में पूर्व भाजपा विधायक जगदीश मुलिक ने राकांपा के वडगांव शेरी विधायक सुनील टिंगरे पर गठबंधन सहयोगियों को विकास कार्यों का श्रेय न देने का आरोप लगाया है.

हाल ही में वडगांव शेरी में 300 करोड़ रुपये की सरकारी परियोजनाओं की आधारशिला रखी गई, जिसमें उपमुख्यमंत्री अजित पवार मुख्य अतिथि थे. हालांकि, इस कार्यक्रम की प्रचार सामग्री में केवल एनसीपी प्रमुख को ही दिखाया गया, महायुति के अन्य सहयोगियों के नेताओं को नहीं.

मतदाताओं का फर्जी पंजीकरण

मतभेद के एक और संकेत के रूप में भाजपा नेताओं ने महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक विकास मंत्री और शिंदे की पार्टी शिवसेना के नेता अब्दुल सत्तार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई है, जिसमें उन पर चुनावी लाभ के लिए फर्जी मतदाताओं के पंजीकरण में मदद करने का आरोप लगाया गया है. भाजपा ने आरोप लगाया है कि उनके निर्वाचन क्षेत्र में 50,000 मतदाताओं के नाम दो बार दर्ज हैं और वे या तो उनके कार्यकर्ता हैं, रिश्तेदार हैं या उनके द्वारा प्रबंधित संस्थाओं के कर्मचारी हैं. भाजपा के राज्य अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रमुख इदरीस मुल्तानी और राज्य भाजपा के सचिव सुरेश बनकर ने इस संबंध में छत्रपति संभाजी नगर के कलेक्टर से शिकायत की है.

बता दें कि मुल्तानी ने यह भी मांग की है कि सत्तार जिस सिल्लोड निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसे भाजपा को दे दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसे शिंदे सेना को आवंटित नहीं किया जाना चाहिए. सत्तार ने लोकसभा चुनाव में भाजपा के रावसाहेब दानवे के लिए काम नहीं किया.

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