जो डिप्टी सीएम बना वो CM नहीं बन सका, क्या महाराष्ट्र का यह रिवाज टूटेगा?
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जो डिप्टी सीएम बना वो CM नहीं बन सका, क्या महाराष्ट्र का यह रिवाज टूटेगा?

महाराष्ट्र की सियासत अलग तरह की है। क्या डिप्टी सीएम के सीएम ना बनने का रिवाज बना रहेगा या टूटेगा यह देखना दिलचस्प होगा।


Maharashtra Politics News: महाराष्ट्र में प्रचंड जीत के साथ महायुति को सरकार बनाने का मौका मिला है। लेकिन तस्वीर अभी साफ नहीं है कि कमान किसके हाथ में होगी। एकनाथ शिंदे वैसे तो खुद को सीएम की रेस से बाहर कर चुके हैं। लेकिन उनकी भूमिका क्या होगी इस पर कई तरह के सवाल हैं। शुक्रवार को मुंबई में महायुति की बैठक होने वाली थी। लेकिन वो सतारा स्थित अपने गांव चले गए और इस तरह की खबरें आने लगी कि कुछ न कुछ गड़बड़ है। इन सबके बीच हम महाराष्ट्र से जुड़ी एक दिलचस्प जानकारी देंगे। दरअसल कोई भी डिप्टी सीएम इस राज्य का सीएम बनने में सफल नहीं हुआ है। लेकिन क्या इस दफा यह रिवाज टूट जाएगा देखने वाली बात होगी।

डिप्टी सीएम के सीएम ना बनने का इतिहास 46 साल पुराना है। यानी कि 46 साल पहले महाराष्ट्र की सियासत में डिप्टी सीएम का पद अस्तित्व में आया हालांकि संविधान में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है। गोपीनाथ मुंडे (Gopi Nath Munde), अजित पवार (Ajit Pawar) खुद देवेंद्र फणनवीस भी निवर्तमान सरकार में डिप्टी सीएम रहे। अगर देवेंद्र फणनवीस(Devendra Fadnavis) सीएम बनने में कामयाब रहे तो यह रिवाज टूट जाएगा क्योंकि वो खुद निवर्तमान सरकार में डिप्टी सीएम हैं।

अब जरा इतिहास में चलते हैं। साल 1978 का था, वसंत दादा पाटिल महाराष्ट्र के सीएम थे और उनके डिप्टी नासिक राव तिरपुडे बने। 1978 में ही शरद पवार सीएम बनने में कामयाब हुए। वसंद दादा पाटिल की तरह शरद पवार ने भी अपना डिप्टी बनाया। नाम सुंदर राल सोलंके था। सोलंके करीब एक साल तक इस पद पर बने रहे। 1983 में नासिक राव तिरपुडे के सीएम बनने की चर्चा तेज हुई। लेकिन वसंत राव पाटिल फिर सीएम बन गए। इस दफा वसंत पाटिल ने राम राव आदिक को डिप्टी सीएम बनाया। आदिक की गिनती महाराष्ट्र के कद्दावर नेताओं में शुमार किया जाता था। कई दफा सीएम बनने की चर्चा भी हुई। लेकिन उस कुर्सी तक नहीं पहुंच सके।

1995 में पहली बार शिवसेना-बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिला। शिवसेना की तरफ से मनोहर जोशी सीएम और बीजेपी की तरफ से गोपीनाथ मुंडे डिप्टी सीएम बने। चार साल बाद जब शरद पवार सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाकर एनसीपी बनाई हालांरि 1999 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन किया था और एनसीपी-कांग्रेस की सरकार बनी थी। शरद पवार ने छगन भुजबल को डिप्टी सीएम बनाया। लेकिन भुजबल कभी सीएम नहीं बन सके। इस तरह से विजय सिंह पाटिल भी डिप्टी सीएम बने। साल 2010 में शरद पवार के भतीजे अजित पवार डिप्टी सीएम बने। निवर्तमान शिंदे सरकार में भी अजित पवार डिप्टी सीएम बने। लेकिन अब उन्होंने बीजेपी के सीएम को समर्थ दिया है ऐसे में वो सीएम नहीं बनने जा रहे। लेकिन क्या देवेंद्र फणनवीस इस मिथक को तोड़ सकेंगे।

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