uddhav thakrey and raj thakrey
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उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे पहले अलग-अलग रैली करने वाले थे, फिर उद्धव के कहने पर राज ठाकरे एक ही रैली पर सहमत हो गए

हिंदी की अनिवार्यता के खिलाफ एक हुए ठाकरे ब्रदर्स, 5 जुलाई को साझा रैली करेंगे उद्धव-राज

कई दिनों से ठाकरे बंधुओं के एक होने की अटकलें लग रही थी। अब दोनों एक साथ रैली करने वाले हैं, वो भी महाराष्ट्र की स्कूलों में हिंदी थोपे जाने के खिलाफ।


महाराष्ट्र में एक अप्रत्याशित राजनीतिक घटनाक्रम के तहत, वर्षों बाद एक-दूसरे से अलग हो चुके चचेरे भाई उद्धव ठाकरे (शिवसेना-यूबीटी) और राज ठाकरे (मनसे) एक साथ मंच साझा करने जा रहे हैं। दोनों नेता 5 जुलाई को एक संयुक्त विरोध रैली का नेतृत्व करेंगे, जिसका उद्देश्य राज्य सरकार की त्रिभाषा नीति का विरोध करना है, जिसमें प्राथमिक स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में शामिल किया गया है।

शिवसेना (यूबीटी) के सांसद और वरिष्ठ नेता संजय राउत ने शुक्रवार, 27 जून को X पर पोस्ट कर इस रैली की पुष्टि की। उन्होंने लिखा, "महाराष्ट्र में स्कूलों में हिंदी थोपने के खिलाफ एक संयुक्त मार्च निकलेगा। जय महाराष्ट्र!"



इस पोस्ट के साथ उन्होंने एक पुरानी तस्वीर साझा की, जिसमें उद्धव और राज ठाकरे दोनों बाल ठाकरे की तस्वीर के सामने खड़े हैं। इससे पहले, दोनों दलों ने अलग-अलग रैलियां आयोजित करने की योजना बनाई थी, राज ठाकरे 6 जुलाई को और उद्धव ठाकरे 7 जुलाई को।

लेकिन बाद में राज ने स्वयं उद्धव को 6 जुलाई की रैली में शामिल होने का न्योता दिया। उद्धव ने तुरंत सहमति जताई, लेकिन इस तारीख पर आषाढ़ी एकादशी होने की बात कहते हुए असुविधा जताई। उन्होंने 5 जुलाई को संयुक्त रैली का सुझाव दिया, जिसे राज ने भी स्वीकार कर लिया।

दिल्ली को भेजा गया संकेत

राउत ने इस मुद्दे को सिर्फ एक सांस्कृतिक विरोध न बताकर इसे "हिंदी वर्चस्व" के खिलाफ महाराष्ट्र की एकजुट लड़ाई बताया। उन्होंने अपने पोस्ट में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को टैग करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि यह संदेश केवल मुंबई नहीं, दिल्ली के लिए भी है।

चुनावी रणनीति?

बीएमसी चुनावों से पहले यह कदम सिर्फ सांस्कृतिक मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक रणनीति भी माना जा रहा है। एक ओर उद्धव की गिरती राजनीतिक पकड़, दूसरी ओर राज ठाकरे की सक्रियता, दोनों को आगामी चुनावों में एकजुट होकर फायदा हो सकता है।

'भाषा आपातकाल' का आरोप

पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि वे हिंदी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि हिंदी को मराठी भाषी राज्य पर थोपे जाने के खिलाफ हैं। उन्होंने भाजपा पर "भाषा आपातकाल" लगाने और समाज को भाषाई आधार पर बांटने का आरोप लगाया। उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के बयानों का हवाला देकर इस नीति के संवैधानिक आधार पर भी सवाल उठाए।

आदित्य ठाकरे ने कहा, "कोई भी भाषा थोपनी नहीं चाहिए। जो हम अब तक सीखते आ रहे हैं, वही जारी रहना चाहिए। शिक्षा में सुधार जरूरी है, लेकिन बोझ नहीं। सिर्फ हिंदी क्यों? जो पहले से पढ़ाया जा रहा है, उसे बेहतर क्यों नहीं बनाया जा रहा?"

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार ने भी कहा कि हिंदी को प्राथमिक शिक्षा में अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि पांचवीं के बाद बच्चे हिंदी सीख सकते हैं, लेकिन कम उम्र के बच्चों पर अधिक भाषाओं का बोझ नहीं डालना चाहिए।

भाजपा का जवाब

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि हिंदी अनिवार्य नहीं, वैकल्पिक है, जबकि मराठी अनिवार्य बनी रहेगी। भाजपा नेताओं ने दावा किया कि विपक्ष मराठी वोटरों को गुमराह कर रहा है और राज्य सरकार पूरी तरह से मराठी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।

शिवसेना फिर एक होगी?

यह दृश्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दो चचेरे भाइयों को साथ लाता है, जो वर्षों तक महाराष्ट्र की राजनीति में आमने-सामने रहे हैं। हालांकि, सत्तारूढ़ महा विकास आघाड़ी (MVA) ने इसे केवल चुनावी नाटक बताया और सवाल उठाया कि जब उद्धव मुख्यमंत्री थे, तब उन्हें मराठी की चिंता क्यों नहीं थी? विपक्ष का आरोप है कि यह अचानक राज के साथ मेलजोल, खोई हुई ज़मीन हासिल करने की आखिरी कोशिश है।

फिर भी, ठाकरे भाइयों के एक मंच पर आने की संभावना ने महाराष्ट्र की राजनीति में नई चर्चाओं को जन्म दे दिया है।

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