
दिल्ली में अब मेयर भी होगा बीजेपी का, चुनावी प्रक्रिया से AAP हटी
अब दिल्ली नगर निगम में भी बीजेपी का ही राज होगा। दरअसल सत्तासीन आम आदमी पार्टी ने इस दफा खुद को चुनावी प्रक्रिया से दूर रखने का फैसला किया है।
MCD Mayor Election 2025: दिल्ली में सीएम के बाद अब एमसीडी का मेयर भी बीजेपी का ही होगा। दरअसल आम आदमी पार्टी ने चुनावी प्रक्रिया से हटने का फैसला किया। मेयर चुनाव के लिए आज नामांकन का आखिरी दिन है, ठीक उससे पहले दिल्ली की पूर्व सीएम आतिशी ने प्रेस कांफ्रेंस की और कहा कि उनकी पार्टी पार्षदों की खरीदफरोख्त में भरोसा नहीं करती। लिहाजा चुनावी प्रक्रिया से दूर रहने का फैसला किया है। इसका अर्थ यह हुआ कि बीजेपी को आम आदमी पार्टी ने एक तरह से वॉकओवर दे दिया।
BJP ने पहले भी MCD का चुनाव रुकवा दिया था। परिसीमन के दौरान वार्डों को इधर-उधर किया गया
परिसीमन के दौरान जबरदस्त गड़बड़ी और भ्रष्टाचार किया गया। इसके बावजूद BJP चुनाव हारी और AAP की सरकार बनी
इसके बाद भी MCD बैठकों में बीजेपी पार्षदों द्वारा खूब तमाशा किया गया। जिसके बाद हमने फैसला लिया है कि इस बार मेयर चुनाव में हम अपना उम्मीदवार नहीं उतारेंगे
MCD की तस्वीर
फिलहाल निगम में कुल 250 सीटें हैं, जिनमें से भाजपा के पास 117 पार्षद हैं, आम आदमी पार्टी (AAP) के पास 113, और कांग्रेस के पास 8 पार्षद हैं। वहीं, 12 सीटें फिलहाल रिक्त हैं इनमें से एक सीट भाजपा नेता कमलजीत सेहरावत की है, जो हाल ही में लोकसभा चुनाव जीतने के कारण खाली हुई है।हालांकि ये सीटें रिक्त हैं, लेकिन डीएमसी एक्ट के तहत मेयर चुनाव से पहले इन पर उपचुनाव कराना जरूरी नहीं है। इसलिए, इन 12 सीटों को भरे बिना ही मेयर चुनाव कराया जा सकता है।
चुनावी गणित में बीजेपी को बढ़त
मेयर चुनाव में सिर्फ पार्षद ही नहीं, बल्कि अन्य जनप्रतिनिधियों की भूमिका भी अहम होती है। इनमें 10 सांसद (7 लोकसभा और 3 राज्यसभा), 14 विधायक जिन्हें विधानसभा अध्यक्ष द्वारा नामित किया गया है, और 10 एल्डरमैन शामिल हैं।दिल्ली के सातों लोकसभा सांसद भाजपा से हैंराज्यसभा के तीनों सांसद आम आदमी पार्टी से हैं14 नामित विधायकों में से 11 भाजपा से हैं
एल्डरमैन को वोट देने का अधिकार नहीं है इस आधार पर, भाजपा को सांसदों और विधायकों के समर्थन से अतिरिक्त ताकत मिल रही है। पार्षदों की संख्या में मामूली अंतर होने के बावजूद भाजपा का पलड़ा भारी दिख रहा है। हालांकि आम आदमी पार्टी के चुनावी रेस से बाहर होने के बाद अब इन आंकड़ों का कोई खास अर्थ नहीं रह गया है।