बिहार में आखिर पुल क्यों बह जाते हैं, तीन दिन में तीसरी घटना
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बिहार में आखिर पुल क्यों बह जाते हैं, तीन दिन में तीसरी घटना

बिहार में पिछले तीन दिनों में पुल गिरने के तीन खबरे आईं. ताजा मामला मोतिहारी जिले का है. इससे पहले सीवान और अररिया में हादा हुआ था.


Motihari Bridge Collapse News: बिहार में इतनी अधिक संख्या में पुल क्यों ढह रहे हैं. हाल ही में अररिया जिले में तेज पानी के बहाव में पुल बह गया.अधिकारियों ने नदी को ही जिम्मेदार ठहरा दिया, इसी तरह से 2022 में भागलपुर में पुल गिरा उसके लिए तेज हवा को जिम्मेदार बताया. अब ताजा मामला मोतिहारी जिले का है. करीब 2 करोड़ की लागत से बन रहा 50 फीट ऊंचा पुल गिर गया. इससे पहले सीवान में भी ऐसा हादसा हुआ था. सीवान में जिस दिन पुल गिरा ना तो उस दिन घनघोर बारिश हुई थी और ना ही तेज हवा बह रही थी. सीवान की घटना पर वहां के जिलाधिकारी कहते हैं कि पुल पुराना था. नहर में पानी के छोड़े जाने की वजह से हादसा हुआ. हालांकि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 1991 में यह पुल बना था. हालांकि इस हादसे पर अधिकारियों का कहना है कि जांच कराई जाएगी.

मोतिहारी में ब्रिज गिरा

  • इसे मोतिहारी के घोड़ासहन ब्लॉक में बनाया जा रहा था
  • करीब 2 करोड़ की लागत थी
  • पुल की ढलाई का काम चल रहा था
  • पुल की लंबाई करीब 50 फीट थी.

सीवान में भरभरा कर गिरा पुल

  • महाराजगंज. दरोंदा विधानसभा के बॉर्डर का पुल
  • पटेढ़ी- गरोली नहर पर था पुल
  • नहर में तेज पानी से हादसा

अररिया में पुल हादसा

  • 180 मीटर लंबे पुल का हिस्सा गिरा
  • बकरा नदी पर बन रहा था पुल
  • कुछ दिनों में उद्घाटन था
  • पुल की लागत 12 करोड़ थी.

क्या कहते हैं जानकार

जानकारों के मुताबिक यह अव्वल दर्जे का भ्रष्टाचार है, मसलन पुल गिरने के लिए तेज हवा को जिम्मेदार बताना. पानी के तेज बहाव को जिम्मेदार ठहराना. ये सब तर्क गले से नीचे नहीं उतरते. दरअसल बिहार में भ्रष्टाचार का रोग कैंसर की तरह फैल चुका है. दुख की बात ये है कि सभी राजनीतिक दल दूसरे के दामन को दागदार तो बताते हैं लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ भी नहीं होता. आप याद करिए 2022 के साल को जब भागलपुर में बड़ा हादसा हुआ है. खूब होहल्ला मचा. जांच की बात कही गई. लेकिन नतीजा सिफर रहा. अभी हाल ही में आरजेडी के नेताओं ने 40 फीसद कट और कमीशन का आरोप लगाया. लेकिन जब वो सरकार में होते हैं तो चुप्पी साध लेते हैं. अब इस तरह की सूरत में जनता खुद को ठगा महसूस करती है. जनता के पास सरकार बदलने की ताकत तो है लेकिन विकल्पों की कमी है. हकीकत में अब किसका दामन कम दागदार है उसे जनता अपना मत दे देती है.

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