एडीएम के खिलाफ सांसद इकरा हसन ने शिकायत की, मामले ने तूल पकड़ा
देखा गया है कि जन प्रतिनिधि अधिकारियों के साथ अपनी बात को सार्वजनिक नहीं करते। पर यूपी में फील्ड में तैनात अधिकारियों की शिकायतें अब जन प्रतिनिधि कर रहे हैं। सपा सांसद इकरा हसन ने सहारनपुर में तैनात एडीएम के खिलाफ लिखित शिकायत की है जिस पर जांच शुरू हो गई है। इधर बीजेपी के जन प्रतिनिधि भी अधिकारियों को काम करने की सलाह देने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं।
यूपी में मंत्रियों और अफसरों के बीच टकराव का सिलसिला अभी थमा नहीं था कि सांसद, विधायक, पूर्व विधायक और दूसरे जन प्रतिनिधियों का फ़ील्ड पर तैनात अफसरों की शिकायत चर्चा का विषय बना गया है। फ़ील्ड के अधिकारियों के काम न करने, फ़ोन न उठाने और जन प्रतिनिधि के प्रोटोकॉल का पालन न करने जैसी शिकायतें लगातार हो रही हैं। सामान्यतः जन प्रतिनिधि अधिकारियों से अपनी चर्चा को सार्वजनिक करने से बचते हैं पर स्थिति यह है कि जन प्रतिनिधि सोशल मीडिया पर अपनी बात कह रहे हैं। पिछले दो सप्ताह में ऐसी कई शिकायतें आई हैं। कैराना से समाजवादी पार्टी की सांसद इकरा हसन ने तो मुख्य सचिव को भेजे अपने पत्र में यह तक कह कहा है कि अपर जिलाधिकारी ने उनको ‘गेट आउट ‘ कहा है।
एडीएम की शिकायत
यूपी के ‘ लोकसेवक’ क्या जन प्रतिनिधियों के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे ? कैराना की सांसद इकरा हसन के आरोपों पर जाएँ तो मामला गंभीर है।वजह यह है कि मुख्य सचिव को लिखा उनका शिकायती पत्र अधिकारियों के आचरण और व्यवहार पर सवाल खड़े करता है।इकरा हसन ने मुख्य सचिव को लिखे पत्र में सहारनपुर में तैनात अपर जिलाधिकारी( ADM) संतोष बहादुर सिंह पर यह आरोप लगाया है कि न सिर्फ़ उन्होंने उनकी बात सुनने में लापरवाही दिखाई बल्कि उनको और उनके साथ गई पंचायत अध्यक्ष को अपने कार्यालय कक्ष से बाहर जाने के लिए ‘ गेट आउट ‘ तक कह दिया। विदेश से पढ़कर आयीं इकरा हसन ने कहा कि सहारनपुर के छुटमलपुर की पंचायत अध्यक्ष शमा परवीन के साथ वो एडीएम से मुलाक़ात करने पहुंची थीं।एडीएम अपने कार्यालय में नहीं थे पर लंच टाइम ख़त्म होने के बाद भी जब आए तो उनकी बात सुन कर उस पर कार्रवाई करना तो दूर उन्होंने इकरा हसन और पंचायत अध्यक्ष को अपने कक्ष से बाहर जाने के लिए कह दिया।इकरा हसन ने मुख्य सचिव से एडीएम के व्यवहार की जाँच कर उन पर कार्रवाई करने के लिए कहा है।ख़ास बात यह है कि इकरा हसन ने मामले को लोकसभा अध्यक्ष के सामने उठाने की बात भी की है।
हालांकि इकरा हसन ने 1 जुलाई को मुख्य सचिव को पत्र लिखा था पर बात चर्चा में तब आई जब शिकायत पत्र दिए हुए दो सप्ताह बीत चुके हैं।सहारनपुर के जिलाधिकारी मनीष बंसल इसकी जांच कर रहे हैं। पर कैराना में समाजवादी पार्टी के नेताओं और समर्थकों ने इस मामले का विरोध किया है जिससे मामला सियासी रूप से तूल पकड़ता नज़र आ रहा है।अखिलेश यादव ने एक्स पर पोस्ट करके कहा है कि ‘ जो सांसद का सम्मान नहीं करते वो जनता का सम्मान क्या करेंगे।’ यहाँ यह बात भी ध्यान देने वाली है कि इकरा हसन विपक्षी दल की सांसद हैं पर सवाल यह भी है कि क्या एडीएम ने प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया ? जानकारी के अनुसार इकरा हसन जवाब न मिलने पर सांसद के विशेषाधिकार का मामला लोकसभा अध्यक्ष के सामने उठा सकती हैं।इधर एडीएम संतोष बहादुर सिंह ने भी मीडिया में आकर इस बात को कहा है कि वो मीटिंग में थे और इसलिए वो फोन नहीं उठा पाए।उन्होंने कहा कि जिस काम के लिए सांसद आई थीं इन्होंने वो लिख कर देने के लिए कहा था।इधर सपा के कई नेताओं ने सांसद इकरा हसन से अभद्रता का मामला उठाया है।
सोशल मीडिया का सहारा
यह इकलौता मामला नहीं है जब जनप्रतिनिधि अफसरों के काम और तरीकों से नाराज़ दिख रहे हैं। दूसरा मामला मथुरा से विधायक और पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा का है।जिनको अपने ही क्षेत्र में अधिकारियों की नाकामी की वजह से अव्यवस्था की बात सोशल मीडिया पर करनी पड़ी।श्रीकांत शर्मा ने एक्स पर एक पोस्ट लिख कर आरोप लगाया कि वृंदावन में यातायात व्यवस्था लंबे समय से ध्वस्त है।श्रीकांत शर्मा ने लिखा कि मल्टी लेवल पार्किंग, प्रेम मंदिर तिराहा, नाकों पर एक भी सिपाही तैनात नहीं था और बाहरी वाहन लगातार प्रतिबंधित मार्गों से प्रवेश कर रहे थे।’ श्रीकांत शर्मा ने जाम की स्थिति और अतिक्रमण की बात भी लिखी और मुख्यमंत्री के निर्देश का हवाला भी दिया।अब सवाल यह है कि सत्तारूढ़ दल के विधायक जनता और जन समस्या से जुड़े मुद्दों के लिए अगर अधिकारियों को टैग कर ट्वीट कर रहे हैं तो आम जनता की स्थिति क्या होगी।
हाल ही में मानिकपुर से पूर्व विधायक आनंद शुक्ला ने भी अपनी बात और अधिकारियों से नाराज़गी ज़ाहिर करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्म का सहारा लिया।आनंद शुक्ला ने लिखा कि ‘आप कुछ भी करिए जिलाधिकारी बांदा जैसे कुछ अधिकारी स्वयं फोन उठाने में अपनी बेइज्जती समझते हैं।कॉल बैक करना आता ही नहीं।तभी उप जिलाधिकारी और अन्य मातहत मनमाने हो जाते हैं।कई बार तो लगता है इन लोगों ने भाजपा सरकार को निपटाने की सुपारी ले ली है।’ अपने आप में यह बहुत गंभीर आरोप है जिसका सीधा संबंध जिले के अधिकारियों के परफॉरमेंस और नेताओं-जन प्रतिनिधियों से उनके तालमेल न होने की ओर इशारा करता है।
शिकायतों के बाद भी नहीं हुई कारवाई
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि योगी सरकार के पहले कार्यकाल की तुलना में दूसरे कार्यकला में अफसरों से जन प्रतिनिधियों की शिकायतें ज़्यादा दिखाई पड़ रही हैं। हालाँकि समय समय पर इसके लिए निर्देश जारी किए जाते रहे हैं। मौजूदा समय में यूपी सरकार में जन प्रतिनिधियों की शिकायत पर अफसरों पर कार्रवाई का प्रतिशत न के बराबर रहा है।जिलों में कई अधिकारी 2-3 साल की लंबी अवधि से तैनात हैं। बहुत सारे अधिकारियों की शिकायतें हुई हैं जन प्रतिनिधियों ने की पर कार्रवाई न होने से उनका हौंसला बढ़ा है।यह भी एक चर्चा का विषय है कि जन प्रतिनिधियों का अधिकारियों के मामले में कॉन्फिडेंस लगातार घटता जा रहा है।यूपी के मुख्यमंत्री अपनी समीक्षा बैठकों में हर बार यह निर्देश देते रहे हैं कि अधिकारी नियत समय पर कार्यालय में बैठें और अपना सीयूजी (cug) नंबर ख़ुद रिसीव करें।मुख्यमंत्री समीक्षा बैठकों के दौरान जिले के अधिकारियों को जनता से मिलने और काम करने के लिए फटकार भी लगा चुके हैं पर इस तरह की शिकायतें कम नहीं हुई हैं।जन प्रतिनिधियों का प्रोटोकॉल भी स्पष्ट है।इसके बावजूद इस तरह की शिकायतें अब खुल कर सामने आ रही हैं।वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह कहते हैं ‘वैसे हर जन प्रतिनिधि का सम्मान होना चाहिए क्योंकि वो जनता का काम लेकर ही अधिकारियों के पास जाते हैं।लेकिन ख़ास तौर पर बीजेपी के विधायकों और नेताओं की शिकायतें बताती हैं कि संगठन और सरकार में तालमेल को कमी है।और ऐसा होने पर नुक़सान जनता का ही होता है।जनता तो अफ़सरों के यहाँ जाने की हिम्मत भी नहीं करती।’ अभी कुछ महीने बाद पंचायत चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव है।ऐसे में विधायकों-मंत्रियों को जनता के सामने भी जाना है।ज़ाहिर है उनके ऊपर परफॉरमेंस का दबाव भी है।ऐसे में कुछ लोग यह भी मानते हैं कि जन प्रतिनिधियों की अचानक यह सक्रियता और अधिकारियों के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया में खुल कर आना डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी हो सकती है।