
गुजरात की मुस्लिम महिला ने विरोध और कानूनी लड़ाई के बाद फिर पाई सरपंच की कुर्सी
पांच महीने की कानूनी लड़ाई के बाद 22 वर्षीय अफरोज़बानो सिपाई ने अयोग्यता, धमकियों और विरोध को पार करते हुए गुजरात के मेहसाणा जिले के गिलोसन गाँव की सरपंच बनने का हक हासिल कर लिया।
पाँच महीने लंबी कानूनी जंग के बाद अब अफरोज़बानो सिपाई आखिरकार मेहसाणा के गिलोसन गाँव में सरपंच की कुर्सी पर बैठेंगी। इस साल जून में हुए स्थानीय चुनावों में 22 वर्षीय अफरोज़ को विजेता घोषित किया गया था, लेकिन जैसे ही उन्होंने पद संभालने की तैयारी शुरू की, मेहसाणा नगरपालिका निगम (MMC) ने उन्हें अयोग्य ठहराने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
अफरोज़बानो सिपाई ने “द फेडरल” से बात करते हुए बताया, “मैंने गलती से अपनी जन्मतिथि 7 जनवरी 2005 लिख दी थी, और जब कलेक्टर मेहसाणा के सभी विजेता सरपंचों की सूची बना रहे थे जिन्हें मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल द्वारा सम्मानित किया जाना था, तब यह मुद्दा बना। हालांकि तालुका विकास अधिकारी (TDO) के कार्यालय ने मुझे सूचित नहीं किया और सीधे अयोग्यता प्रक्रिया शुरू कर दी। नियमों के अनुसार, अगर किसी उम्मीदवार या विजेता के फ़ॉर्म में कोई त्रुटि होती है, तो TDO को नोटिस भेजना अनिवार्य है।”
अफरोज़बानो को अपने अयोग्य घोषित किए जाने की जानकारी तब मिली जब यह आधिकारिक रूप से घोषित हो चुका था।
हार नहीं मानी
अफरोज़बानो ने बताया, “इसके बाद मेरे पिता ने मेरा सही जन्म प्रमाणपत्र निकाला, जिसमें जन्मतिथि 3 सितंबर 2003 दर्ज थी, यानी चुनाव के समय मेरी उम्र 22 वर्ष थी। लेकिन तब तक नगरपालिका ने 28 जुलाई को हमें अयोग्यता का नोटिस थमा दिया था और ग्राम पंचायत चुनाव में उपविजेता हिरेनभाई चौधरी को गिलोसन का नया सरपंच घोषित कर दिया गया। मुझे कहा गया कि अब कुछ नहीं किया जा सकता।”
लेकिन अफरोज़बानो ने हार नहीं मानी। “तभी मैंने कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया,” उन्होंने कहा।
न्याय मिला
अफरोज़बानो ने अगस्त 2025 में गुजरात हाईकोर्ट में MMC के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की। इस साल 19 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने नगरपालिका के आदेश को रद्द करते हुए अफरोज़बानो को गिलोसन की सरपंच के रूप में बहाल कर दिया।
ध्यान देने योग्य है कि न्यायमूर्ति नीरल आर. मेहता ने MMC का आदेश इस आधार पर रद्द किया कि कार्रवाई से पहले अफरोज़बानो सिपाई को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था।
फैसले में कहा गया, “उत्तरदाता इस तथ्य से इनकार नहीं कर सका कि जन्म प्रमाणपत्र रद्द करने से पहले अफरोज़बानो को कोई नोटिस जारी नहीं किया गया था। ऐसी स्थिति में, विवादित आदेश/संचार को रद्द और निरस्त किया जाता है, बिना मामले के गुण-दोष पर गए। हालांकि, उत्तरदात्री प्राधिकरण को यह स्वतंत्रता दी जाती है कि वह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हुए जन्म प्रमाणपत्र रद्द करने के लिए नई प्रक्रिया शुरू कर सके।”
अफरोज़बानो का परिवार मूल रूप से महिसागर ज़िले का रहने वाला है, लेकिन फरवरी 2002 में हुए साम्प्रदायिक दंगों में अपने घर पर हुए हमले से बचने के बाद उन्होंने मेहसाणा ज़िले के गिलोसन गाँव में शरण ली।
खौफ़ की वह रात
द फेडरल से बातचीत में अफरोज़बानो के पिता अब्बासभाई सिपाई ने गोधरा दंगों की उस भयावह रात को याद किया जिसने उनके परिवार की ज़िंदगी को हमेशा के लिए बदल दिया। उन्होंने कहा,“मैं वह रात कभी नहीं भूल सकता। उस समय महिसागर शहर में मेरे साथ सिर्फ मेरी माँ और पत्नी रहती थीं। मैं एक बढ़ई की दुकान पर काम करता था। ज़िंदगी कठिन थी, लेकिन चल रही थी। फिर एक रात सब कुछ खत्म हो गया — मेरी माँ, मेरा भाई और हमारा घर। मेरा घर गोधरा रेलवे स्टेशन से लगभग 65 किलोमीटर दूर था, जहां से यह सब शुरू हुआ था। मेरा भाई और उसका परिवार मेरे घर के बिल्कुल पास रहते थे। 27 फरवरी 2002 की रात करीब 1 बजे मेरी पत्नी अचानक ज़ोरदार आवाज़ से जागी। हमने खिड़की से बाहर देखा तो हथियारों और जलते मशालों से लैस भीड़ हमारे घर की ओर दौड़ रही थी।”
उन्होंने आगे बताया,“हम कुछ समझ पाते, उससे पहले करीब 10–15 लोग घर में घुस आए और मेरी माँ को बाहर घसीट ले गए। वही आखिरी बार था जब मैंने उन्हें देखा। उनमें से एक ने तलवार लेकर मेरी पत्नी पर वार किया, तो मैंने उसके आगे खुद को फेंक दिया और ज़ख्मी हो गया। भीड़ मुझे मरा समझकर चली गई। मुझे नहीं पता कब मुझे गोधरा राहत शिविर लाया गया, लेकिन वहाँ मेरी पत्नी मिली — घायल हालत में। इलाज के दौरान पता चला कि वह गर्भवती थी। उसी समय हमें यह भी पता चला कि मेरी माँ, भाई, भाभी और उनका बेटा मारे गए थे।”
उन्होंने कहा, “सालों बाद भी उन यादों को भुला पाना नामुमकिन है।”
गिलोसन की ओर पलायन
गिलोसन गाँव, जिसमें लगभग 1,024 परिवार रहते हैं, दंगों से अछूता रहा था। अप्रैल 2002 में अब्बासभाई सिपाई और उनकी पत्नी अपने रिश्तेदारों के साथ रहने के लिए वहाँ आ गए।
गिलोसन में नई ज़िंदगी शुरू करने के संघर्ष के बीच, सितंबर 2003 में अफरोज़बानो का जन्म हुआ और 2005 में उनके भाई का। अब्बासभाई ने मज़दूरी करके परिवार को फिर से खड़ा करने की शुरुआत की।
सिपाई परिवार की ज़िंदगी पटरी पर लौट ही रही थी कि अफरोज़बानो, जो एक दिन राजनीति में आने का सपना देखती थीं, ने स्थानीय चुनाव में नामांकन दाखिल किया — और तभी मुश्किलों की शुरुआत हुई।
अफरोज़बानो के वकील शकील कुरैशी ने बताया, “अफरोज़बानो स्कूल के बच्चों को पढ़ाती हैं और विद्यार्थियों व उनके परिवारों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। लेकिन जैसे ही उन्होंने नामांकन दाखिल किया, हिंदू सेना नामक एक स्थानीय दक्षिणपंथी संगठन के कुछ लोगों ने उन्हें परेशान करना शुरू कर दिया। इसके बावजूद, उन्होंने 300 वोटों से चुनाव जीत लिया।”
धमकियों के बावजूद डटी रहीं अफरोज़बानो
अफरोज़बानो ने याद किया कि नामांकन दाखिल करने के बाद से उनका परिवार लगातार उत्पीड़न का सामना करता रहा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
उन्होंने कहा, “एक बार हिंदू सेना के एक व्यक्ति ने मेरे पिता को धमकी दी थी कि अगर मैंने अपना नामांकन वापस नहीं लिया, तो मेरे परिवार को 2002 जैसा अंजाम भुगतना पड़ेगा। हमने कई बार शिकायत की, लेकिन अब तक पुलिस ने किसी को गिरफ्तार नहीं किया। यही वजह है कि मैं राजनीति में आना चाहती हूँ — ताकि मैं सुनिश्चित कर सकूँ कि मेरे परिवार या किसी और मुस्लिम परिवार को फिर कभी ऐसा दर्द झेलना न पड़े।”
अदालत के आदेश के बावजूद देरी
गुजरात हाईकोर्ट के 19 अक्टूबर के आदेश के बावजूद, हिरेनभाई चौधरी — जिन्हें पहले सरपंच घोषित किया गया था — ने ग्राम पंचायत कार्यालय खाली करने में देरी की। उन्होंने यह पद 3 नवंबर को छोड़ा, वह भी तब जब स्थानीय पुलिस ने उन्हें ऐसा करने को कहा।
गाँव में असंतोष
चौधरी ने तो टिप्पणी करने से इनकार कर दिया, लेकिन उनके चचेरे भाई और हिंदू सेना के सदस्य जिग्नेश चौधरी ने द फेडरल से कहा,“गिलोसन पहले हिंदुओं का गाँव था, जहाँ कुछ ही मुस्लिम परिवार गाँव के बाहरी हिस्सों में रहते थे और पंचायत के मामलों में भाग नहीं लेते थे। लेकिन 2002 में सिपाई परिवार और तीन अन्य मुस्लिम परिवार गोधरा से यहाँ आ गए। उसके बाद दूसरे ज़िलों से भी कई मुस्लिम परिवार यहाँ बस गए। अब गिलोसन में लगभग 100 मुस्लिम परिवार हैं। यह हमारे गाँव की सुरक्षा के लिए अच्छा नहीं है। अब हमें एक मुस्लिम सरपंच को भी स्वीकार करना पड़ रहा है। हमें हिंदुओं की सुरक्षा की चिंता है।”
इस बीच, गिलोसन पुलिस स्टेशन के निरीक्षक ने भी इस पर टिप्पणी करने से मना कर दिया कि अफरोज़बानो की बार-बार की शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई।
मेहसाणा के पुलिस अधीक्षक हिमांशु सोलंकी ने कहा, “मुझे बताया गया था कि जब विजेता उम्मीदवार (अफरोज़) का नामांकन रद्द कर दिया गया, तो दूसरे स्थान पर आए उम्मीदवार (हिरेनभाई चौधरी) को सरपंच घोषित किया गया था। लेकिन अब जब अदालत ने अफरोज़ सिपाई को सरपंच के रूप में बहाल करने का आदेश दिया, तब चौधरी ग्राम पंचायत कार्यालय खाली करने में देरी कर रहे थे। स्थानीय पुलिस को इस मामले की निगरानी करने और यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं कि अफरोज़ सिपाई को उनके पद का अधिकार मिले। हालांकि, मुझे सरपंच या उनके परिवार के साथ किसी अन्य प्रकार के उत्पीड़न की जानकारी नहीं है।”

