
कोलकाता की सड़कों पर छात्रों का उबाल- बवाल, सत्ताधारी क्यों हो जाते हैं शंकालु
लोकतंत्र में शोषण, अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना हर एक संगठन का अधिकार है। हालांकि सत्ताधारी दल आंदोलनों को अलग नजरिए से देखते हैं।
Nabanna Protest Mamata Banerjee News: आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल ना सिर्फ बंगाल बल्कि देश में चर्चा का केंद्र बना हुआ है। कोलकाता की सड़कों से लेकर देश भर की सड़कों पर डॉक्टरों के विरोध को सभी ने देखा। बंगाल में छात्र इस बात को लेकर व्यथित हैं कि ममता सरकार ने तत्काल और पुख्ता कार्रवाई क्यों नहीं की। 27 अगस्त को नबन्ना प्रोटेस्ट का ऐलान छात्रों के संगठन ने पहले ही कर दिया था. हालांकि ममता सरकार और उनकी पुलिस को लगा कि यह सब प्रायोजित है जिसे बीजेपी भी सिर्फ अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए समर्थन दे रही है हालांकि बीजेपी और उससे जुड़े संगठनों ने साफ तौर पर मना किया है। यहां हम कुछ तस्वीरों को दिखाएंगे जिसमें छात्रों के खिलाफ कोलकाता पुलिस ने लाठी चार्ज, टीयर गैस और वाटर कैनन का इस्तेमाल किया।
लाठीचार्ज
टीयर गैस
वाटर कैनन
कोलकाता की सड़कों पर नजारा
यह कोलकाता की सड़कों का नजारा है। छात्रों ने हावड़ा ब्रिज पर बनाई गई लोहे की दीवार को तोड़कर नबन्ना भवन की तरफ बढ़ गए। लेकिन यहां सवाल यह है कि सत्ताधारी दलों की आंख पर शंका वाला चश्मा क्यों चढ़ जाता है। विपक्ष में रहते समय वो प्रदर्शन को अपना लोकतांत्रिक अधिकार बताते हैं जबकि सत्ता में आते ही सुर बदल जाता है। याद करिए 90 के उस दशक की जब ममता बनर्जी युवा थीं और वाम दल सरकार के खिलाफ मोर्चो खोलती थीं। बंगाल की शेरनी की उपाधि लिए वो कोलकाता पुलिस से भिड़ जाती थीं।
रायटर्स बिल्डिंग में सीएम दफ्तर के बाहर धरना देने से नहीं चुकती थीं। उस समय की मौजूदा सरकार को लगता था कि यह सब उनकी सरकार को अस्थिर करने की कोशिश है। ममता बनर्जी किसी के इशारे पर काम कर रही हैं। यहीं नहीं सिंगुर आंदोलन के दौरान ही ममता ने मां माटी मानूष का नारा दिया और आज जब उसी माटी के मानुष अपनी बेटी के लिए इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं तो ममता की सरकार का मानना है कि यह सब प्रायोजित है।
लेकिन इस तरह की मनोवृत्ति रखने वाली ममता बनर्जी अकेले नहीं हैं या बंगाल ही ऐसा सूबा नहीं है। शंका वाली मानसिकता से देश का हर एक राजनेता ग्रस्त हो जाता है जब वो सत्ताधारी होता है। आप किसान आंदोलन को कैसे भूल सकते हैं। एमएसपी की मांग पर जब किसान दिल्ली की दहलीज तक पहुंचने की कोशिश की तो दिल्ली को छावनी में तब्दील कर दिया गया। दिल्ली से जुड़ने वाली हरियाणा और यूपी की सीमा को ऐसे सील किया गया है जैसे अंतरराष्ट्रीय सीमा की रखवाली हो रही है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आंदोलनों में हिंसक और असामाजिक प्रवृत्ति के लोग शामिल हो जाते हैं। लेकिन यह भी कड़वा सच है कि सरकारें किसी भी आंदोलन को प्रायोजित करार देने का मौका नहीं छोड़ती।