नायडू की वापसी के बाद भी क्यों संशय की स्थिति में है अमरावती प्रोजेक्ट
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 आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नारा चंद्रबाबू नायडू 13 जून, 2024 को अमरावती के ताड़ेपल्ली में अपने कार्यालय में कार्यभार संभालने से पहले एक प्रार्थना समारोह में हिस्सा लेते हुए। उस दिन राजधानी निर्माण की फाइल नायडू के सामने उनके पहले हस्ताक्षर के लिए नहीं आई थी। फोटो: पीटीआई

नायडू की वापसी के बाद भी क्यों संशय की स्थिति में है अमरावती प्रोजेक्ट

संकेत मिल रहे हैं कि नई राजधानी का निर्माण टीडीपी सरकार की प्राथमिकता नहीं है, बल्कि वो इसे हासिल करने के लिए उत्सुक है.


Amravati Project: आंध्र प्रदेश के फिर से मुख्यमंत्री बने चन्द्र बाबू नायडू ने बेशक ये एलान किया हो कि अमरावती ही आंध्र प्रदेश की राजधानी होगी, लेकिन अमरावती के लोगों को इस बात पर संशय है कि क्या नायडू( 2014 से 2019 तक) अपने पिछले कार्यकाल की तरह ही अमरावती पर ध्यान केन्द्रित करेंगे या नहीं?


अमरावती के 29 गावों के लोगों को मानों 4 जून को जीवनदान मिला

4 जून को दोपहर के समय, जब ये स्पष्ट हो गया कि तेलुगू देशम पार्टी(टीडीपी) सत्ता में लौट रही है, तो आंध्र प्रदेश के राजधानी क्षेत्र में 'अमरावती बचाओ' के नारे की जगह 'जय अमरावती' का नारा गूंजने लगा.

राजधानी के निर्माण के लिए 33,000 एकड़ जमीन देने वाले 29 गांवों के लोग सड़कों पर नाचते हुए नजर आए. पांच साल में पहली बार इन गांवों में किसी तरह का जश्न मनाया गया.

दरअसल, वाईएस जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली पिछली सरकार ने विद्रोही गांवों पर विभिन्न प्रतिबंध लगाए हुए थे.

बहुत खुश हुए ग्रामीण

ग्रामीणों की अमरावती संयुक्त कार्रवाई समिति (ए-जेएसी) ने 1,600 दिन पुराने "अमरावती बचाओ" आंदोलन को वापस ले लिया है. सभी गांवों में पटाखे फोड़े गए, केक काटे गए और अन्नदान(खाद्य वितरण) का आयोजन किया गया. 12 जून को टीडीपी सुप्रीमो एन चंद्रबाबू नायडू ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली, जिसके बाद उत्सव चरम पर पहुंच गया.

42 वर्षीय अकुला जया सत्या की खुशी का ठिकाना नहीं था. ए-जेएसी की सदस्य के रूप में, वो अमरावती बचाओ आंदोलन में सबसे आगे रही थीं. उनके परिवार ने राजधानी के निर्माण के लिए एर्राबलम गांव में 13 एकड़ जमीन दान कर दी थी. तत्कालीन टीडीपी सरकार ने वादा किया था कि हर एकड़ जमीन के बदले 250 वर्ग गज व्यावसायिक जमीन और विकसित अमरावती में 1,000 वर्ग गज आवासीय भूखंड दिया जाएगा.

एक नए अमरावती का सपना

2019 में सत्ता में आए जगन मोहन रेड्डी ने राजधानी क्षेत्र को अमरावती से विशाखापत्तनम स्थानांतरित करने का निर्णय लिया, जिससे जया सत्या का विश्व स्तरीय शहर में उच्च मूल्य के भूखंडों के मालिक होने का सपना टूट गया. जगन ने प्रारंभिक राजधानी परियोजना को छोड़ दिया और अमरावती, अधूरी इमारतों के साथ एक भूतहा शहर में तब्दील हो गया. हर जगह झाड़ियाँ उग आईं.

जया सत्या ने कहा, "मैं जंगल में अपने खुद के प्लॉट को भी नहीं पहचान पा रही हूं. अमरावती जल्द ही फिर से जीवंत हो जाएगा. बिजली विभाग ने रातों-रात स्ट्रीट लाइट की मरम्मत कर दी है. मुख्य सचिव ने व्यक्तिगत रूप से झाड़ियों को साफ करने के काम की निगरानी की है."

स्थानीय निकाय की निर्वाचित सदस्य के रूप में, उन्हें उम्मीद है कि नायडू ने जो विश्व स्तरीय शहर बनाने का वादा किया था, वो हकीकत बन जाएगा। उन्हें नहीं पता कि किसी खाली जमीन को चमचमाते शहर में बदलने के लिए क्या करना पड़ता है?

अमरावती बनी चर्चा का मुख्य बिंदु

उन्होंने विश्वास जताते हुए कहा, "अमरावती के किसानों ने चंद्रबाबू नायडू को सत्ता में लाने के लिए वोट दिया है. वो हमारे गांवों के बीच राजधानी बनाने की अपनी जादुई शक्ति दिखाएंगे." जया की तरह, 29 गांवों में हर कोई एक विश्व स्तरीय शहर का सपना देख रहा है.

सत्ता के गलियारों में क्यों बना है अनिश्चितता का माहौल

आंध्र प्रदेश की राजनीति 10 साल तक नई राजधानी के इर्द-गिर्द घूमती रही, क्योंकि 2014 में तेलंगाना के विभाजन के बाद ये बिना राजधानी वाला राज्य बन गया. 2014 से 2019 तक नई राजधानी अमरावती का स्वरूप चर्चा का विषय रहा.

अब प्राथमिकता नहीं

2019 से, तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन द्वारा अमरावती से राजधानी को स्थानांतरित करने का प्रयास प्रमुख राजनीतिक मुद्दा रहा, जिसके कारण कई कानूनी लड़ाई और आंदोलन हुए. 2024 के विधानसभा चुनावों के दौरान भी अमरावती अभियान का प्रमुख नारा बन गया.

हालांकि, नई सरकार की पहली प्रतिक्रिया गांवों में जश्न के अनुरूप नहीं थी. अमरावती को राज्य की राजधानी बनाने के बयान के अलावा नायडू ने राजधानी के आकार को लेकर कोई भावनात्मक घोषणा नहीं की है, जो लोगों के मन में ख़ास तौर से सत्ता के गलियारों में संशय पैदा करता है. संकेतों से पता चलता है कि अमरावती को विश्वस्तरीय शहर बनाना नई सरकार की प्राथमिकता नहीं है. ऐसा लगता है कि नायडू ने चुनाव प्रचार के दौरान किए गए अपने वादों को लागू करने को प्राथमिकता दी है.

लोगों के बीच संशय की स्थिति इसलिए भी बन रही है क्योंकि गुरुवार को जब चंद्रबाबू नायडू ने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला तो अमरावती की फाइल उनके पास हस्ताक्षर के लिए नहीं आई. इसके बजाये नायडू ने सरकारी रिक्तियों को भरने, भूमि स्वामित्व अधिनियम को निरस्त करने, वृद्धावस्था पेंशन को बढ़ाकर 4,000 रुपये करने, अन्ना कैंटीन को पुनर्जीवित करने और कौशल की गणना से संबंधित फाइलों पर अपना पहला हस्ताक्षर किया.

नई योजनाओं की जरूरत

217 वर्ग किलोमीटर के अमरावती के मास्टर प्लान में भविष्य के शहर को "खुशहाल, रहने योग्य और टिकाऊ" शहर बताया गया है, जो किसी विज्ञान कथा उपन्यास की तरह लगता है. ये नौ थीम शहरों वाला शहर है, जिसमें एक सरकारी शहर, न्याय शहर, वित्त शहर, ज्ञान शहर और पर्यटन शहर शामिल हैं.

इसे सात विकास गलियारों, आठ नोड्स, हरित क्षेत्रों और खुले क्षेत्रों में विभाजित किया गया था.

सरकार के कई अधिकारी अमरावती के भविष्य के स्वरूप के बारे में अनभिज्ञ हैं, क्योंकि नायडू के सपनों के शहर परियोजना से जुड़े सभी लोगों को या तो जगन ने स्थानांतरित कर दिया है या वे सेवानिवृत्त हो चुके हैं.

अमरावती के विकास से जुड़े एक पूर्व अधिकारी ने कहा, "अमरावती का मास्टर प्लान, जो 10 साल पुराना है, को पूंजी निर्माण के लिए उपलब्ध नई तकनीकों और नवाचारों को ध्यान में रखते हुए अपडेट करने की आवश्यकता है. नई सरकार एक कार्यान्वयन योग्य मॉडल पर सहमत हो सकती है."

राज्य पर ध्यान केंद्रित करें

लोगों के एक वर्ग में ये भी भावना है कि डिजाइन की इतनी आलोचना और मास्टर प्लान के इर्द-गिर्द विवादों को देखते हुए नायडू शायद पुराने मॉडल पर ही नहीं टिकेंगे, बल्कि अधिक सतर्कतापूर्ण रास्ता अपनाएंगे.

नाम न बताने की शर्त पर टीडीपी के एक नेता ने कहा कि अब कोई तात्कालिकता नहीं है, क्योंकि पार्टी अभूतपूर्व जनादेश के साथ सत्ता में लौट आई है.

हालांकि, प्रख्यात अर्थशास्त्री प्रोफेसर के.एस. चालम का मानना है कि नायडू के पास अमरावती पर समय और ऊर्जा खर्च करने के बजाय राज्य की परिस्थितियों और आर्थिक मांगों के अनुसार कार्य करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

पूंजी और शासन

कुप्पम स्थित द्रविड़ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति चालम ने कहा, "अब उनकी मौजूदगी से राजधानी खुद की देखभाल कर सकती है. मुझे उम्मीद है कि नायडू अपने पिछले कार्यकाल के अमरावती प्रयोगों पर ध्यान देने के बजाय राज्य के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करेंगे. वास्तव में, उन्हें विश्व स्तरीय शहर की काल्पनिक अवधारणा पर प्रचार के अत्यधिक जोर के प्रतिकूल प्रभाव के बारे में पता होना चाहिए."

केंद्र सरकार के पूर्व सचिव डॉ. ईएएस सरमा के अनुसार, बड़ी पूंजी से जरूरी नहीं कि सुशासन भी आए. उन्होंने कहा कि सुशासन समय की मांग है, उन्होंने कहा: "विकेंद्रीकरण और अधिकारों का हस्तांतरण, स्थानीय निकायों को मजबूत करना और सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित करना, ये वे चीजें हैं जिनकी राज्य को सार्वजनिक लागत पर विशाल इमारतों से अधिक आवश्यकता है."

दूसरा हैदराबाद नहीं

पर्यावरण विशेषज्ञ प्रोफेसर बलिजेपल्ली वेंकट सुब्बाराव ने कहा कि नायडू की पुरानी राजधानी डिजाइन पुरानी हो चुकी है और शहरी नियोजन में हुई प्रगति के मद्देनजर इस पर पुनर्विचार की जरूरत है. उन्होंने कहा, "हैदराबाद के हाईटेक शहर की तरह अमरावती को भी बड़े पैमाने पर निर्माण शुरू करने से पहले शहरी बुनियादी ढांचे को बनाने की आवश्यकता को अनदेखा करके डिजाइन किया गया था. खराब शहरी नियोजन के परिणामस्वरूप, हैदराबाद के हाईटेक शहर को मानसून में बाढ़ और गर्मियों में पानी की कमी का खतरा है." उन्होंने कहा कि शहर की योजना आपदाओं और विनाश का कारण नहीं बननी चाहिए.

दूसरी ओर, राज्य के सभी क्षेत्रों के लोग अमरावती के भविष्य के स्वरूप पर नायडू के बयान का उत्सुकता से इंतजार कर रहे हैं.

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