Nazul Land Law: नेक इरादे के लिए लाया गया बिल विवाद में फंसा? आखिर क्या रही वजह
नजूल संपत्ति विधेयक योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भूमि उपलब्ध कराने और भूमि हड़पने वालों के नेटवर्क को खत्म करने के पवित्र इरादे से लाया गया था. हालांकि, अब इस विधेयक को लेकर विवाद पैदा हो गया है.
Nazul Land Controversy: नजूल संपत्ति विधेयक योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए भूमि उपलब्ध कराने और भूमि हड़पने वालों के नेटवर्क को खत्म करने के पवित्र इरादे से लाया गया था, जिससे कि उन लोगों को निशाना बनाया जा सके, जो नजूल भूमि को न्यूनतम लागत पर फ्रीहोल्ड के रूप में हासिल करने का प्रयास करते हैं. हालांकि, अब इस विधेयक को लेकर विवाद पैदा हो गया है.
मामले से अवगत लोगों ने बताया कि विवाद तब पैदा हुआ, जब विधेयक में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि नजूल भूमि पर बसे गरीब और कमजोर निवासियों को बेदखल नहीं किया जाएगा. विधेयक का एक अन्य उद्देश्य सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए भारी खर्च पर भूमि अधिग्रहण की आवश्यकता को समाप्त करना था. इसक बावजूद सत्ता और विपक्ष दोनों तरफ से इसके खिलाफ आवाजें उठीं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मार्च में ही घोषणा की थी कि नजूल भूमि को अब किसी निजी व्यक्ति या निजी संस्था के नाम पर फ्रीहोल्ड नहीं किया जाएगा. उन्होंने स्पष्ट किया था कि उनकी सरकार माफिया, बिल्डरों, राजनेताओं और नौकरशाहों के गठजोड़ को तोड़ना चाहती है, जो सरकारी जमीन हड़पना चाहते हैं. संदेश साफ था कि भूमि का उपयोग शहरों में सुविधाओं के विकास के लिए सार्वजनिक हित में किया जाएगा. क्योंकि उस समय राज्य विधानमंडल सत्र में नहीं था. इसलिए राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (सार्वजनिक प्रयोजन के लिए प्रबंधन और उपयोग) अध्यादेश 2024 लाया, जिसे राज्यपाल ने 7 मार्च, 2024 को प्रख्यापित किया.
वहीं, उत्तर प्रदेश विधानमंडल के मानसून सत्र के दौरान राज्य सरकार ने उत्तर प्रदेश नजूल संपत्ति (सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए प्रबंधन और उपयोग) विधेयक 2024 पेश किया. सरकार ने यह साफ किया कि उसने साल 1993 में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एनएन वोहरा समिति की रिपोर्ट के आधार पर विधेयक लाने का फैसला किया. वोहरा समिति ने संगठित भूमि-हड़पने वाले गिरोहों के कामकाज पर चिंता जताई.
नजूल को फ्रीहोल्ड में बदलना करोड़ों का कारोबार
नजूल भूमि पर अवैध कब्जा या जाली दस्तावेजों के जरिए कम कीमत पर फ्रीहोल्ड अधिकार हासिल करना कोई नई घटना नहीं है. राज्य में लगभग 72,000 से 75,000 एकड़ नजूल भूमि है. करीब 2 लाख करोड़ रुपये की कीमत वाली इन सरकारी जमीनों को सर्किल रेट के महज 10 फीसदी दाम पर हासिल करने का चलन लंबे समय से चला आ रहा है. ये जमीनें मुख्य रूप से प्रयागराज, कानपुर, अयोध्या, सुल्तानपुर, गोंडा और बाराबंकी में हैं. प्रयागराज में सिविल लाइंस का लगभग पूरा इलाका नजूल की जमीन पर है, जहां हर बंगले की कीमत 100 से 250 करोड़ रुपये के बीच है. कम से कम 4,000 एकड़ जमीन को फ्रीहोल्ड में बदल दिया गया है और इससे सरकारी संपत्तियों को खतरा पैदा होने लगा है. वर्तमान में नजूल की जमीन के स्वामित्व को लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 312 मामले हैं. जबकि निचली अदालतों में करीब 2,500 मामले अभी भी लंबित हैं. भू-माफियाओं के चंगुल से मुक्त कराई गई नजूल की जमीन लखनऊ में जिस नजूल की जमीन पर फोरेंसिक इंस्टीट्यूट स्थित है, वह पहले खुर्शीद आगा नामक भू-माफिया के कब्जे में थी. 1955 में प्रशासन ने इस जमीन का 57 एकड़ हिस्सा एक ट्रैक्टर कंपनी को 10 साल के लिए पट्टे पर दिया था. पट्टे की अवधि समाप्त होने के बाद जमीन सरोजनीनगर ब्लॉक के पिपरसंड क्षेत्र की ग्राम सभा के नाम पर पंजीकृत कर दी गई.
हालांकि, 2014 में इस भूखंड पर भू-माफिया खुर्शीद आगा ने कब्जा कर लिया. उसने कथित तौर पर शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के बालकगंज कब्रिस्तान और मस्जिद के नाम पर जमीन दर्ज करने के लिए जाली दस्तावेज बनाए. जमीन को वक्फ को हस्तांतरित कर दिया गया, जिसमें आगा इसके "आजीवन मुतवल्ली" (आजीवन देखभालकर्ता) बन गए. बाद में कई लेन-देन हुए. साल 2014 में आगा ने कथित तौर पर जमीन को मॉडर्न कोऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी, एक रियल एस्टेट कंपनी को बेच दिया. इसके बाद समिति ने इसे नोएडा में अंतरिक्ष लैंडमार्क प्राइवेट लिमिटेड को हस्तांतरित कर दिया, जिसका इरादा इस साइट पर एक हाउसिंग सोसाइटी विकसित करना था.
जब यह मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में आया तो जांच शुरू हुई. पता चला कि आगा और उसके कथित सहयोगी अशोक पाठक पर लखनऊ में जमीन हड़पने के कई मामले दर्ज हैं. दोनों को मार्च 2020 में जमीन पर अवैध कब्जा करने के आरोप में जेल भेजा गया था. इसके बाद जमीन को खाली कराया गया और आज यहां फोरेंसिक इंस्टीट्यूट है. प्रयागराज के लूकरगंज इलाके में करोड़ों की जमीन माफिया अतीक अहमद के कब्जे में थी. आदित्यनाथ ने जरूरी कानूनी कार्यवाही पूरी करने के बाद न सिर्फ जमीन माफिया से वापस ली, बल्कि गरीबों के लिए 76 मकान भी बनवाए. हाल ही में कानपुर के सिविल लाइंस इलाके में एक माफिया और उसके गिरोह ने करीब 1,000 करोड़ रुपये की नजूल की करीब सात एकड़ जमीन पर अवैध कब्जा करने की कोशिश की. प्रशासन ने तेजी से कार्रवाई करते हुए अतिक्रमण को हटाया और आरोपियों को गिरफ्तार किया. भू-माफिया विरोधी टास्क फोर्स 2017 में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में चार स्तरीय भू-माफिया विरोधी टास्क फोर्स का गठन किया गया. राजस्व और पुलिस विभाग ने भू-माफियाओं के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है.
राजस्व विभाग के आंकड़ों के अनुसार, अगस्त तक लगभग 62,423.89 हेक्टेयर (154,249 एकड़) भूमि पर कब्ज़ा किया जा चुका है. इसके अतिरिक्त राजस्व विभाग ने 2,464 अवैध कब्ज़ेदारों की पहचान की, 187 भू-माफ़िया सदस्यों को गिरफ़्तार किया और उन्हें जेल भेजा. इसके अलावा सरकारी ज़मीन पर कब्ज़े से संबंधित 22,992 राजस्व मामले, 857 सिविल मामले और 4,407 एफ़आईआर दर्ज की गई हैं. राजस्व विभाग के अनुसार, पुलिस और प्रशासन द्वारा लगभग 1,54,249 एकड़ (624 वर्ग किमी) भूमि पर कब्ज़ा किया गया है. यह क्षेत्र लखनऊ शहर के आकार के बराबर है, जो लगभग 30 किमी लंबा और 20.8 किमी चौड़ा है.