शरद पवार को क्यों सता रही है महाराष्ट्र में मणिपुर जैसी हिंसा फैलने की चिंता
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शरद पवार को क्यों सता रही है महाराष्ट्र में मणिपुर जैसी हिंसा फैलने की चिंता

पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अब तक पूर्वोत्तर राज्य का दौरा न करने के लिए भी निशाना साधा।


Maharashtra Politics: आखिर वो कौनसा ऐसा कारण है जो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ( शरद पवार ) के मुखिया को महाराष्ट्र में जातीय संघर्ष फैलने की चिंता सता रही है. इतना ही नहीं यहाँ तक कहा कि महाराष्ट्र में मणिपुर जैसी अशांति की आशंका है. लेकिन इन सबके पीछे क्या कारण है, इस पर शरद पवार ने कुछ नहीं कहा.

रविवार (28 जुलाई) की शाम को नवी मुंबई के वाशी में सामाजिक एकता सम्मेलन को संबोधित करते हुए पवार ने मणिपुर में जातीय संघर्ष से निपटने के केंद्र के तरीके की भी आलोचना की, जिसमें पिछले साल मई से अब तक 200 से अधिक लोग मारे गए हैं.
पवार ने कहा, "हमारे देश के विकास और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए सामाजिक एकता आवश्यक है. तनाव और विभाजन की वर्तमान स्थिति चिंताजनक है. देश में बढ़ते मतभेद के लिए जाति, धर्म और भाषा से परे एकता की आवश्यकता है. सामाजिक एकता को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी सरकार की है."
उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश सरकार इन मुद्दों के समाधान के लिए प्रभावी कदम उठाने में विफल रही है. उन्होंने कहा कि सामाजिक सद्भाव बनाए रखना जरूरी है. मणिपुर में पिछले साल मई से ही बहुसंख्यक मैतेई समुदाय और कुकी आदिवासियों के बीच बड़े पैमाने पर हिंसा देखी गई है. ये हिंसा तब शुरू हुई जब मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 'आदिवासी एकजुटता मार्च' का आयोजन किया गया था.

प्रधानमंत्री पर साधा निशाना
पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी निशाना साधा कि उन्होंने अभी तक पूर्वोत्तर राज्य का दौरा नहीं किया है. उन्होंने दावा किया कि प्रभावित लोगों की दुर्दशा को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री की ओर से प्रयासों की कमी साफ तौर पर देखी जा सकती है.
अपने 'X' अकाउंट पर पोस्ट करते हुए पवार ने राज्य के सभी लोगों से अपने मतभेदों को भूलकर महाराष्ट्र में मौजूदा स्थिति को बदलने के लिए हाथ मिलाने का आग्रह किया.

पवार ने जाति धर्म भुलाकर एकता का दिया नारा
शरद पवार ने कहा, "महाराष्ट्र में आज जो स्थिति है, उसे बदलने की जरूरत है. अगर हम बदलाव लाना चाहते हैं, तो हमें जाति, धर्म, भाषा के भेद भूलकर एक अखंड समाज और एक अखंड राष्ट्र की अवधारणा के साथ मिलकर काम करना होगा. ऐसा करने के लिए, मुझे लगता है कि इस सामाजिक एकता परिषद ने बहुत अच्छा काम किया है. इस तरह के सम्मेलन चार और जगहों पर आयोजित किए जाएंगे. ये हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस प्रयास को पूरी ताकत से समर्थन दें. हम समाज और देश के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए सामूहिक प्रयास करेंगे."

(एजेंसी इनपुट्स के साथ)


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