फ्री स्कीमों से बदलेगा बिहार का मूड? नीतीश की मुश्किलें क्या होंगी आसान?
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फ्री स्कीमों से बदलेगा बिहार का मूड? नीतीश की मुश्किलें क्या होंगी आसान?

ग्राउंड रिपोर्ट: हालांकि, मुफ़्त चीज़ों को लेकर मतदाताओं की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं हैं, मौजूदा निराशाजनक वेतनमान, बेरोजगारी, और SIR को लेकर चिंताएं बहुत ज़्यादा हैं।


बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार एक ओर जहां भारी एंटी-इनकंबेंसी का सामना कर रही है, वहीं दूसरी ओर वह चुनाव आयोग द्वारा किए गए विवादित विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर भी जन असंतोष से जूझ रही है। ऐसे माहौल में सरकार ने मुफ्त योजनाओं और जनलुभावन घोषणाओं का सहारा लेते हुए जनता का समर्थन जुटाने की कोशिशें तेज कर दी है। पिछले कुछ हफ्तों में नीतीश कुमार ने अपने X हैंडल पर एक के बाद एक कई लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा की है, जो पहले उनकी कार्यशैली से बिल्कुल उलट है।

हर वर्ग को साधने की कोशिश

सरकार द्वारा घोषित योजनाएं समाज के सभी वर्गों को छूने की कोशिश करती हैं, लेकिन गरीब महिलाओं, **बेरोज़गार युवाओं और वृद्धों पर विशेष ध्यान केंद्रित किया गया है। इन योजनाओं में शामिल हैं:- 125 यूनिट तक मुफ्त बिजली, महिलाओं को नकद सहायता, छात्रों के लिए वजीफा, बुजुर्गों व विधवाओं की पेंशन में वृद्धि, रोज़गार के अवसर और इंटर्नशिप का वादा। नीतीश ने पिछले महीने 1.67 करोड़ घरेलू उपभोक्ताओं को हर महीने 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने की घोषणा की। यह योजना 1 अगस्त से लागू हो गई, जो कि विधानसभा चुनाव की तारीख की आधिकारिक घोषणा से डेढ़ महीना पहले है। करीब 90% घरेलू उपभोक्ताओं को अब बिजली बिल नहीं देना पड़ेगा।

आशा और ममता कार्यकर्ताओं को राहत

1.11 करोड़ बुजुर्गों, विधवाओं और विकलांगों की पेंशन ₹400 से बढ़ाकर ₹1100 प्रति माह कर दी गई। 90,000 आशा और 7,500 ममता कार्यकर्ताओं की मासिक प्रोत्साहन राशि बढ़ाई गई:- आशा को ₹1,000 से बढ़ाकर ₹3,000, ममता कार्यकर्ताओं को प्रति प्रसव ₹300 से ₹600, 35% महिला आरक्षण के लिए स्थानीय निवास प्रमाण पत्र अनिवार्य किया गया है। जीविका दीदी को ₹3 लाख तक बैंक लोन 7% ब्याज पर उपलब्ध कराया जाएगा (पहले 10%)।

छात्रों के लिए वजीफा और इंटर्नशिप

नीतीश सरकार ने छात्रों के लिए मासिक वजीफे की घोषणा की:- 12वीं पास: ₹4,000, ITI पास: ₹5,000, स्नातक/परास्नातक: ₹6,000। इसके अलावा अगले 5 वर्षों में 1 लाख इंटर्नशिप और 1 करोड़ नौकरियां देने का वादा किया गया है।

लाभार्थियों की प्रतिक्रिया

हालांकि कुछ लोगों ने इन योजनाओं का स्वागत किया, लेकिन कईयों ने इसे बहुत देर से किया गया प्रयास बताया। पटना की आशा कार्यकर्ता सुनीता कुमारी ने कहा कि ₹3,000 की प्रोत्साहन राशि नाकाफी है। हम ₹18,000 न्यूनतम वेतन की मांग कर रहे हैं। अगर यह पहले किया होता तो असर कुछ और होता। ममता कार्यकर्ता सरदा देवी ने पूछा कि क्या ₹600 में रोज़ का चाय-पानी और ऑटो का किराया निकलता है? राजन राय, एक दिहाड़ी मजदूर, ने कहा कि बिजली मुफ्त से पेट नहीं भरता। फैक्ट्रियां नहीं हैं, रोज़गार नहीं है। 20 साल में नीतीश ने काम के अवसर नहीं दिए।

पेंशन में बढ़ोतरी से कुछ बुजुर्ग खुश

75 वर्षीय मोहम्मद आलमगीर, जिन्हें अब ₹1100 की वृद्धावस्था पेंशन मिल रही है, ने कहा कि सरकार ने हमारा ख्याल रखा, मैं 2025 में फिर से नीतीश को वोट दूंगा। उनकी तरह माया देवी, एक विधवा, ने भी समर्थन जताया।

SIR बना सरकार के लिए संकट

चुनाव आयोग की विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया पर विपक्ष ने सवाल उठाए हैं। आरोप है कि इसमें आधार, वोटर आईडी, राशन कार्ड आदि को पहचान दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं दी गई और बड़ी संख्या में वोटरों के नाम काटे गए हैं। पोस्टग्रेजुएट सुमन प्रकाश ने कहा कि हमें वजीफा नहीं, नौकरियां चाहिए। SIR पूरी तरह से बेकार प्रक्रिया है, जिसने लोगों को अनावश्यक तनाव दिया है। राजनीतिक विश्लेषक सरोर अहमद ने कहा कि गरीब तबका डरा हुआ है कि उनका नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया जाएगा और सरकारी लाभ बंद हो जाएगा। इससे सरकार पर भरोसा कम हुआ है।

मुफ्त योजनाएं ही काफी नहीं

राजनीतिक कार्यकर्ता सत्यनारायण मदन ने कहा कि नीतीश पहले विकास, कानून का राज’ के नाम पर वोट मांगते थे, अब मुफ्त योजनाओं पर निर्भर हो गए हैं। ये एक तरह की राजनीतिक हताशा को दर्शाता है। पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कुमार (TISS) ने कहा कि मुफ्त योजनाएं हमेशा चुनावों से पहले घोषित की जाती हैं, लेकिन बिहार में इसका असर सीमित होगा। जनता में व्यापक असंतोष है और ये योजनाएं बहुत देर से और बहुत कम दी गई हैं।

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