वंशवाद की दुविधा में फंसे नीतीश, पार्टी के लोग चाहते हैं बेटा निशांत संभालें नेतृत्व
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2025 बिहार विधानसभा चुनावों से पहले सबसे ज्यादा चर्चा का विषय यह है कि क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत अपना चुनावी और राजनीतिक डेब्यू करेंगे।

वंशवाद की दुविधा में फंसे नीतीश, पार्टी के लोग चाहते हैं बेटा निशांत संभालें नेतृत्व

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 'वंशवादी राजनीति' के पक्षधर नहीं हैं, लेकिन जदयू का एक वर्ग मानता है कि उनके बेटे को राजनीति में उतरना चाहिए ताकि विधानसभा चुनावों में चिराग पासवान का मुकाबला किया जा सके


दशकों तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने खुद को अपने कभी दोस्त-कभी प्रतिद्वंद्वी लालू प्रसाद यादव से अलग साबित किया, क्योंकि उन्होंने अपनी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) यानी जदयू में परिवारवाद को जगह नहीं दी।

जहाँ लालू ने अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को परिवार की जागीर बना दिया था — पत्नी राबड़ी देवी से लेकर बच्चों मीसा भारती, तेज प्रताप, तेजस्वी और रोहिणी आचार्य तक को राजनीति में उतारा — वहीं नीतीश और उनके साथियों शरद यादव व जॉर्ज फर्नांडीस (दोनों का अब निधन हो चुका) ने अपने परिवार को राजनीति से दूर रखा।

नीतीश की 'निशांत' दुविधा

अब जब वह अपने राजनीतिक करियर की सबसे कठिन परीक्षा का सामना कर रहे हैं — उनकी गिरती सेहत पर चर्चा है और जदयू का जनाधार प्रतिद्वंद्वियों ही नहीं बल्कि सहयोगियों की नज़र में भी है — नीतीश के सामने बड़ा फैसला है।

जदयू के वे नेता जो चाहते हैं कि निशांत को ज्यादा जिम्मेदारी मिले, कहते हैं कि इससे "चिराग के अभियान की धार कुंद होगी" और "पार्टी एकजुट रहेगी"।

नीतीश को कितनी हद तक अपने बेटे निशांत कुमार को राजनीति में उतारना चाहिए, इस सवाल पर वे लंबे समय से दुविधा में हैं।

बेटे को आगे लाने की मांग

करीब दो साल पहले निशांत ने पार्टी अभियानों में अपने पिता की अनुपस्थिति में प्रचार करना शुरू किया। उन्होंने हमेशा यही जताया कि उनका राजनीति में उतरने का कोई इरादा नहीं है और वे केवल "पापा की मदद करने" के लिए हैं।

चिराग पासवान, तेजस्वी, तेज प्रताप, मीसा या रोहिणी की तरह उन्होंने कभी खुद को भविष्य का नेता नहीं बताया।

हाल ही में जब भाजपा नेतृत्व ने एनडीए के मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर असमंजस दिखाया, तो निशांत ने दावा किया था कि "अमित अंकल" (केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह) ने साफ कहा है कि "पापा ही एनडीए का नेतृत्व करेंगे।"

नीतीश संपत्ति भी, बोझ भी

जदयू के भीतर एक वर्ग चाहता है कि निशांत को इस बार टिकट मिले और वे चुनाव लड़ें। उनका तर्क है कि नीतीश की गिरती सेहत और सार्वजनिक मंचों पर अजीब व्यवहार से चिंता बढ़ी है।

भाजपा के भीतर भी नीतीश को लेकर यह मान्यता है कि वे “संपत्ति भी हैं और बोझ भी”।

कुछ जदयू नेताओं का मानना है कि नीतीश ने खुद को ऐसे "गुट" से घेर लिया है जो जदयू से ज्यादा भाजपा के प्रति वफादार है। भाजपा का अब तक नीतीश को एनडीए का चेहरा न घोषित करना, और चिराग पासवान व जीतनराम मांझी जैसे सहयोगियों का सीटों पर दावा—इन सबको जदयू नेता एक "साजिश" मानते हैं।

चिराग पासवान की चुनौती

2020 के चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने 135 से ज्यादा सीटों पर उम्मीदवार उतारकर जदयू को करीब 40 सीटों पर हरवाया था। इस बार चिराग ने साफ कर दिया है कि वे राज्य की राजनीति में उतरेंगे और खुद चुनाव लड़ेंगे।

एलजेपी-आरवी की सांसद शंभवी चौधरी ने भी उन्हें भावी मुख्यमंत्री का चेहरा बताना शुरू कर दिया है।

जदयू नेताओं का मानना है कि चिराग की यह बढ़त भाजपा नेतृत्व की मौन सहमति से है, ताकि जदयू कमजोर हो और उसके नेता धीरे-धीरे भाजपा में चले जाएं।

निशांत से उम्मीद

जदयू के एक वर्ग का मानना है कि इस परिस्थिति में पार्टी को बचाने का एकमात्र उपाय यह है कि निशांत को आगे लाया जाए—या तो चुनाव लड़वाया जाए या फिर कम से कम पार्टी का स्टार प्रचारक बनाया जाए।

यदि चुनाव में सीधे न उतारे, तो चुनाव के बाद उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनाया जाए।

आने वाला चुनाव तेजस्वी, चिराग और प्रशांत किशोर जैसे युवा नेताओं की महत्वाकांक्षा की भी जंग होगा।

जदयू नेताओं के अनुसार, अगर पार्टी के पास अपने "युवा चेहरे" की कमी रही तो यह संदेश जाएगा कि नीतीश की पार्टी बूढ़ी हो रही है और भविष्य के लिए कोई वारिस नहीं है।

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