
उत्तर चेन्नई के 'फ्लड वारियर्स', स्कूल के बच्चे बन गए बचावकर्ता
बारिश हर साल आएगी, लेकिन इस बार व्यासरपड़ी तैयार है। सीटी, टॉर्च और रेत की बोरियों के साथ इन बच्चों ने यह साबित कर दिया है कि बदलाव की शुरुआत छोटे हाथों से भी हो सकती है।
उत्तर चेन्नई के श्रमिक बहुल इलाके 'व्यासरपड़ी' में रहने वाले स्कूली बच्चों के एक समूह ने पिछले छह महीनों से बाढ़ राहत और बचाव की विशेष ट्रेनिंग ली है। हर बारिश में पानी में डूबने वाले इस क्षेत्र के लिए इन बच्चों ने खुद को “फ्लड सेवियर” के रूप में तैयार किया है। स्थानीय जल-प्रणाली (हाइड्रोलॉजी) और आपदा प्रबंधन की ट्रेनिंग के बाद इन बच्चों ने क्षेत्र के बाढ़-प्रभावित हिस्सों का नक्शा तैयार किया, परिवारों का सर्वे किया और एक विस्तृत योजना शहर के अधिकारियों को सौंप दी, ताकि उनका इलाका फिर से बिना तैयारी के मुसीबत का सामना न करे।
हर साल जलभराव से जूझता व्यासरपड़ी
व्यासरपड़ी, चेन्नई के उन इलाकों में है, जहां भारी बारिश, खराब ड्रेनेज और अतिक्रमण से भरी नालियों के कारण हर साल गंभीर बाढ़ आती है। पहले लगभग 1,500 घर हर वर्ष पानी में डूब जाते थे। न बाढ़ के दौरान मीडिया पहुंचती थी, न सरकारी मदद समय पर मिलती थी—लोग खुद ही हालात से लड़ते थे।
बच्चों ने खुद समझा बाढ़ का दर्द
इन बच्चों को चेन्नई क्लाइमेट एक्शन ग्रुप और पल्लुयिर ट्रस्ट ने स्थानीय संगठन व्यासई तोழरगल की मदद से प्रशिक्षित किया। एक छात्र ने बताया कि 2015 में पहली बार मैंने बाढ़ देखी। मैं पहली कक्षा में था। घर में घुटनों तक पानी था। हमें कुर्सियों पर बैठाया गया था और मुझे चूल्हे पर बैठाया गया। पानी एक हफ्ते तक नहीं गया। दूसरे छात्र ने कहा कि बचपन में हमें लगा पानी में खेलना मज़ेदार है, लेकिन बड़े होने पर समझ आया कि बाढ़ कितनी खतरनाक होती है। चेन्नई के कई इलाके बाढ़ में डूबते हैं, पर हमारे इलाके में पानी सबसे देर से उतरता है।
मैदान पर सीख
ट्रेनिंग के हिस्से के रूप में बच्चे शहर के कई हिस्सों एन्नोर, पुलिकट, बकिंघम नहर, पल्लिकरणै मार्श, कोवलम, मुत्तुकाडू गए। उन्होंने सीखा कि कैसे पहले चेन्नई में कई नहरें और जलधाराएं थीं, जो अब गायब या अतिक्रमित हो चुकी हैं। एक बच्चे ने कहा कि हमने समझा कि बाढ़ क्यों आती है, खासकर हमारे इलाके में क्यों ज्यादा आती है।
जोखिम का नक्शा तैयार
स्थानीय हाइड्रोलॉजी समझने के बाद बच्चों ने व्यासरपड़ी के बाढ़-प्रवण क्षेत्रों का नक्शा बनाया और यह चिन्हित किया कि किन बिंदुओं पर पानी जमा होता है। उन्होंने बकिंघम नहर के किनारे कई अतिक्रमण पाए जो उत्तर चेन्नई में जलभराव बढ़ाने का मुख्य कारण हैं। इसके बाद बच्चों ने लगभग 80 घरों का सर्वे किया, ताकि लोगों की मानसून तैयारी का पता लगाया जा सके। व्यासई तोழरगल के सदस्य शक्ति ने बताया कि बच्चे अब बाढ़ के लिए तैयार हैं—उनके पास पानी, सोलर लाइट, रेनकोट, सीटी, टॉर्च, मोमबत्तियां, बैटरी लाइट जैसी सभी चीजें हैं। हम उन्हें यह भी सिखा रहे हैं कि जरूरत पड़ने पर सरकारी अधिकारियों और नेताओं तक कैसे पहुंचना है।
जीवन और रोजगार का संकट
व्यासरपड़ी के अधिकतर लोग दिहाड़ी मजदूर हैं। बाढ़ आने पर एक दिन का काम छूटने पर परिवार संकट में आ जाता है। घर में पानी घुसने पर सामान बर्बाद हो जाता है। लोग राहत शिविरों में जाने से डरते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि पीछे छोड़ा सामान चोरी या खराब हो जाएगा। इस डर से कई लोग घुटनों या कमर तक पानी में कई दिनों तक रह जाते हैं, जिससे चोटें और जान का खतरा बढ़ जाता है।
बच्चों ने अधिकारियों को सौंपा पूरा प्लान
व्यासरपड़ी के कुछ हिस्सों को शहर की डिजास्टर मैनेजमेंट 2025 योजना में “रेड ज़ोन” नहीं माना गया था। इससे नाराज बच्चों ने तुरंत अपनी रिपोर्ट तैयार की और अक्टूबर में जोनल अधिकारियों से मिलकर बाढ़-जोखिम क्षेत्र के रूप में आधिकारिक मान्यता की मांग की। अधिकारियों ने रिपोर्ट देखकर सराहना की और व्यासई तोழरगल के एक स्वयंसेवक को आधिकारिक फ्लड राहत व्हाट्सऐप ग्रुप में शामिल कर लिया।
बच्चों ने बनाया चार टीमों वाला बाढ़ योजना मॉडल
बाढ़ के दौरान और बाद में काम करने के लिए बच्चों ने निगम को चार टीमों का प्रस्ताव दिया:-
1. लोगों की सुरक्षा टीम
2. रिसोर्स और फंडिंग टीम
3. वार रूम टीम
4. रेस्क्यू टीम
जहां बच्चे पढ़ते हैं, उस ट्यूशन सेंटर को राहत शिविर घोषित किया गया है। एक छात्र ने बताया कि बाढ़ आते ही हम निचले इलाकों के लोगों को यहां लाएंगे और उन्हें बताएंगे कि स्थिति गंभीर हो सकती है। सबको सुरक्षित रखना पहला काम होगा। दूसरे बच्चे ने कहा कि हमें सिखाया गया है कि रेस्क्यू में कौन-सी चीजें काम आती हैं—वॉकी-टॉकी, रेनकोट आदि।
बच्चों ने लिखी हिम्मत और तैयारी की नई कहानी
बारिश हर साल आएगी, लेकिन इस बार व्यासरपड़ी तैयार है। सीटी, टॉर्च और रेत की बोरियों के साथ इन बच्चों ने यह साबित कर दिया है कि बदलाव की शुरुआत छोटे हाथों से भी हो सकती है।

