
मणिपुर में फिर गरमाई सियासत: NSCN-IM प्रमुख मुइवा की यात्रा पर सबकी निगाहें
जैसे-जैसे मुइवा की यात्रा की तारीख नजदीक आ रही है, खासकर मेइती और कुकी समुदाय इस पर नजरें गड़ाए हुए हैं। मुइवा इस दौरान “ग्रेटर नागालिम” और नागा अस्मिता पर क्या बोलते हैं, यह मणिपुर की भावी राजनीति और सामाजिक समीकरण को तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है।
मणिपुर की जातीय और राजनीतिक रूप से संवेदनशील ज़मीन पर एक नया तनाव उभरता दिख रहा है। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इसाक-मुइवा) [NSCN (IM)] के प्रमुख और वरिष्ठ नगा नेता थुइंगलेंग मुइवा की प्रस्तावित यात्रा को लेकर राज्य की राजनीतिक गर्मी तेज हो गई है। सूत्रों के मुताबिक, 91 वर्षीय मुइवा 22 अक्टूबर को मणिपुर के उखरुल ज़िले स्थित अपने पैतृक गांव सोमदाल का दौरा करेंगे। यह यात्रा एक सप्ताह तक चलेगी, जिसके दौरान वे नगा-बहुल जिलों में कम से कम दो जनसभाओं को संबोधित कर सकते हैं — पहली 22 अक्टूबर को उखरुल और दूसरी 29 अक्टूबर को सेनापति में संभावित है।
राजनीतिक मायने
पांच दशकों बाद अपने जन्मस्थान की प्रस्तावित वापसी को सिर्फ एक व्यक्तिगत यात्रा नहीं माना जा रहा, बल्कि इसका गहरा राजनीतिक और सांकेतिक महत्व है। ऐसे समय में जब मणिपुर में नागा, कुकी और मेइती समुदायों के बीच तनाव चरम पर है, मुइवा की उपस्थिति नयी बहस और टकराव को जन्म दे सकती है। गौरतलब है कि इससे पहले 2010 में भी मुइवा की यात्रा को रोक दिया गया था, जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने साम्प्रदायिक सौहार्द बिगड़ने की आशंका जताई थी। उस फैसले के खिलाफ नागा संगठनों ने लंबे समय तक हाईवे जाम करके राज्य को अलग-थलग कर दिया था।
राष्ट्रपति शासन के बीच दौरा
इस बार की स्थिति अलग है। मणिपुर इस समय जातीय हिंसा के कारण राष्ट्रपति शासन के तहत है और प्रशासन मुइवा की यात्रा को लेकर सतर्क निगरानी रखे हुए है। सरकारी सूत्रों के अनुसार, अभी तक यात्रा को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट पर रखा गया है। एक वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि इस बार की स्थिति 2010 से कहीं अधिक संवेदनशील है। मुइवा की यात्रा का विरोध करना उल्टा असर डाल सकता है। ज़रा सी चूक से फिर पुराने जख्म हरे हो सकते हैं।
‘ग्रेटर नागालिम’ की मांग और बढ़ता असंतोष
NSCN (IM) लंबे समय से "ग्रेटर नागालिम" की मांग कर रहा है, जिसमें मणिपुर, असम, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के नागा-बहुल क्षेत्रों को मिलाकर एकीकृत नागा क्षेत्र बनाए जाने की बात कही गई है। मुइवा की यह यात्रा न केवल नागा समुदाय में संगठन की पकड़ को दर्शाती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि समूह अब भी अपने उद्देश्यों से पीछे नहीं हटा है। नागा बहुल इलाकों में मुइवा की यात्रा को "राजनीतिक पुनःस्थापन" के रूप में देखा जा रहा है। सूत्रों के अनुसार, यात्रा को लो-प्रोफाइल रखने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इसका भावनात्मक और राजनीतिक असर बड़ा है।
घबराहट में मेइती और कुकी समुदाय
हालांकि, किसी समुदाय ने अब तक औपचारिक आपत्ति नहीं जताई है, लेकिन मणिपुर के मेइती बहुल घाटी इलाकों और कुकी बहुल पहाड़ी क्षेत्रों में इस यात्रा को लेकर चुप्पी भरी बेचैनी देखी जा रही है। मुइवा, जो दशकों तक बैंकॉक, एम्स्टर्डम और डावोस जैसे शहरों से अपना आंदोलन चलाते रहे, अब दीमापुर के पास स्थित हेब्रॉन मुख्यालय से सक्रिय हैं। यह जगह उखरुल से लगभग 210 किलोमीटर दूर है।
वार्ता का भविष्य और विवादित मुद्दे
NSCN (IM) और भारत सरकार के बीच 1997 से संघर्षविराम लागू है और 600 से अधिक दौर की बातचीत हो चुकी है। हालांकि, समझौता अब तक अधूरा है। बताया जाता है कि NSCN (IM) अब सभी नागा क्षेत्रों के पूर्ण एकीकरण की मांग से कुछ पीछे हटा है और "क्षेत्रीय टेरिटोरियल काउंसिल" जैसे विकल्पों पर बात कर रहा है। फिर भी, नागालैंड के बाहर के नागा क्षेत्रों के लिए अलग प्रशासनिक व्यवस्था की मांग अभी भी मेइती समुदाय में गहरी चिंता का कारण बनी हुई है। उन्हें डर है कि यह मणिपुर के विभाजन की भूमिका बन सकती है। दूसरी ओर कुकी समुदाय भी कांगपोकपी और चंदेल जैसे जिलों में अपने-अपने क्षेत्रीय दावे रखता है, जो नागाओं से टकराते हैं।