
गोवा अग्निकांड : देश की राजधानी में सिर्फ 52 होटल और 38 क्लब के पास है फायर की NOC
दिल्ली में हजारों की संख्या में क्लब और होटल हैं लेकिन NOC प्राप्त होटल/क्लब का जो आंकड़ा है, वो बेहद ही ज्यादा परेशान करने वाला है, जो सवाल खड़े करता है कि आखिर किसकी शय पर ऐसा हो रहा है.
Hotels And Clubs Fire Security Delhi :क्रिसमस-नए साल की छुट्टियों के लिए तैयार शहरों में भीड़भाड़ वाले होटल और नाइट क्लब सुरक्षा के मामले में अलर्ट रहने चाहिए थे। लेकिन गोवा के नाइट क्लब आग हादसे में 25 लोगों की मौत ने देशभर में एक बार फिर यह सच उजागर कर दिया कि कई प्रतिष्ठान बिना वैध फायर NOC के ही खुल रहे हैं, और प्रशासन इस पर मौन साधे हुए है। दिल्ली, देश की राजधानी की बात करें तो यहाँ आपकों हजारों की संख्या में क्लब, होटल, रेस्टोरेंट दिख जायेंगे, लेकिन जब फायर सेफ्टी के लिए मिलने वाली NOC की बात करेंगे तो इनकी संख्या इतनी कम मिलेगी कि हर कोई हैरान हो जाए।
राजधानी में स्थिति भी चिंताजनक
दिल्ली अग्निशमन सेवा (DFS) के आंकड़े बताते हैं कि राजधानी में हज़ारों होटलों और क्लबों में से केवल 52 होटल और 38 क्लबों के पास ही वैध फायर NOC है। इसका मतलब यह है कि अधिकांश प्रतिष्ठान बिना सुरक्षा मानकों के, जोखिम भरे ढंग से खुले हुए हैं, जबकि जनता की सुरक्षा पूरी तरह से खतरे में है।
दिल्ली फायर सर्विस सूत्रों का कहना है कि इस लापरवाही की बड़ी वजह व्यावसायिक लाभ और ग्राहक संख्या बढ़ाने की होड़ है। कई होटल और क्लब मालिक NOC लेने के बाद भी सुरक्षा नियमों की अनदेखी करते हैं। वे निकास द्वार बंद कर देते हैं, फायर उपकरणों की नियमित जांच नहीं करते, और आंतरिक बदलाव कर लेते हैं, जिससे आग लगने की स्थिति में हताहतों की संख्या बढ़ सकती है।
पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत पर सवाल
DFS और अग्निशमन विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि कुछ प्रतिष्ठानों को हल्की चेतावनी देकर फायर NOC दे दिया जाता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि पुलिस और प्रशासन के बीच सांठगांठ है। ऐसे में नियमों का उल्लंघन सुरक्षित महसूस होता है और सुरक्षा व्यवस्था कमजोर पड़ जाती है।
शुरुआत में लेते हैं NOC
दिल्ली फायर सर्विस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि एक बार तीन साल का लाइसेंस मिलने के बाद, नवीनीकरण तक नियमित निरीक्षण नहीं किया जाता। इस अवधि में कई होटल और क्लब फायर उपकरणों की उपेक्षा, प्रशिक्षित स्टाफ बदलना और आवश्यक सुरक्षा उपायों में कटौती करते हैं। नाइट क्लबों में प्रवेश और निकास के सीमित द्वार भी आग की लपटों को तेजी से फैलाने का कारण बनते हैं।
तकनीक और सख्ती की आवश्यकता
अग्निशमन विशेषज्ञों का कहना है कि नाइट क्लबों और होटल्स में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल अनिवार्य होना चाहिए। उदाहरण के लिए, आग सेंसर से सुसज्जित दरवाजे जो आग लगने पर ऑटोमैटिक खुल जाएँ, सभी निकास द्वार खुले रहना, और नियमित मॉक ड्रिल आयोजित करना जरूरी है। लेकिन बिना NOC और प्रशासन की ढिलाई के ये उपाय केवल कागजों तक सीमित रह जाते हैं।
अन्य राज्यों में क्या व्यवस्था है
उत्तर प्रदेश में फायर NOC हर पाँच साल में रिन्यू होता है, साथ ही हर छह महीने में थर्ड पार्टी ऑडिट अनिवार्य है। वहीं, गुरुग्राम में गोवा हादसे के बाद कड़े निरीक्षण और सर्वे अभियान शुरू किए गए हैं। दिल्ली में भी नियमों को सख्ती से लागू करने की जरूरत है, क्योंकि आंकड़े और हालात बताते हैं कि सुरक्षा व्यवस्था गंभीर रूप से कमजोर है।
मालिकों और एसोसिएशन का पक्ष
नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI) के दिल्ली चैप्टर का कहना है कि ज़्यादातर प्रतिष्ठान अग्नि सुरक्षा मानकों का पालन करते हैं, क्योंकि इसके बिना अन्य व्यावसायिक लाइसेंस नहीं मिलते। फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशंस ऑफ इंडिया (FHRAI) ने सरकार से एकल खिड़की प्रणाली लागू करने का सुझाव दिया है, ताकि लाइसेंस प्रक्रिया आसान और पारदर्शी हो। लेकिन यह साफ है कि केवल प्रक्रिया में सुधार सुरक्षा की गारंटी नहीं देता।
सरकार की प्रतिक्रिया
दिल्ली सरकार का कहना है कि फायर NOC की प्रक्रिया को पारदर्शी और सरल बनाया जा रहा है। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा, "यदि कोई नियम वास्तविक आवेदकों के लिए कठिनाई पैदा कर रहा है, तो इसे तुरंत सुधारेंगे।" गुरुग्राम और उत्तर प्रदेश में भी अधिकारियों ने कहा कि सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित करने के लिए व्यापक निरीक्षण अभियान चलाया जा रहा है।
गोवा हादसे ने यह स्पष्ट कर दिया कि बिना NOC के खुले होटल और क्लब केवल मुनाफे के लिए जनता की जान जोखिम में डाल रहे हैं। प्रशासन की मिलीभगत और निरीक्षण में ढिलाई ने सुरक्षा व्यवस्था को कमजोर कर दिया है। जश्न के इस मौसम में आग से सुरक्षा अब केवल नियमों और उनकी कड़ाई पर निर्भर है। अगर समय रहते सख्ती नहीं की गई, तो एक और बड़ी त्रासदी का खतरा बना रहेगा।

