निषाद और राजभर को क्या यूपी की जनता ने नकारा, नतीजे तो कुछ यही बता रहे
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निषाद और राजभर को क्या यूपी की जनता ने नकारा, नतीजे तो कुछ यही बता रहे

ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद का अपने समाज पर असर माना जाता है, लेकिन यूपी के नतीजे कुछ अलग ही इशारा कर रहे है.


Sanjay Nishad-O P Rajbhar News: संजय निषाद और ओम प्रकाश राजभर ये दोनों चेहरे योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री हैं. इन दोनों का खासियत भी एक जैसी. दोनों के बेटों ने आम चुनाव 2024 में किस्मत आजमायी. लेकिन हार का सामना करना पड़ा. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद, संत कबीर नगर और ओम प्रकाश राजभर के बेटे अरुन राजभर घोसी से चुनाव लड़ रहे थे. चुनावी दंगल में हार जीत का सिलसिला तो लगा ही रहता है. लेकिन जब कोई दावा करता है कि वो इतनी सीटों के समीकरण को बदल सकता है तो दिलचस्पी इस बात में बढ़ती है कि उसके दावों में कितना दम है.

पूर्वांचल से आते हैं निषाद-राजभर
संजय निषाद और ओम प्रकाश राजभर इन दोनों का नाता यूपी के पूर्वांचल से है.आम चुनाव से पहले ये लोग कहा करते थे कि कम से कम 6 सीटों पर तो उनकी पकड़ है यानी कि अगर इन लोगों का करिश्मा काम आया होता तो बीजेपी की सीट संख्या में 6 की बढ़ोतरी होती. इसका अर्थ यह है कि मौजूदा नतीजों में समाजवादी पार्टी से बीजेपी आगे होती है.बता दें कि यूपी में बीजेपी(33) के खाते में (एनडीए समेत) 36 सीट और समाजवादी पार्टी को 37 सीट मिली है. ये दोनों लोग दावा करते थे कि इस बार बीजेपी के साथ उनका गठबंधन इतना ताकतवर है कि वो सपा की साइकिल को बेपटरी कर देंगे. लेकिन जिस तरह से पूर्वांचल और मध्य यूपी में सपा का प्रदर्शन सामने आया है वो इनके दावों की कलई खोल रहे हैं.

  • पूर्वांचल की 6 लोकसभा सीटों पर राजभर वोट की संख्या ढाई लाख के करीब
  • पूर्वांचल की तीन लोकसभाओं में निषाद समाज का जोर
  • संजय निषाद अपने आपको निषाद समाज का नेता मानते हैं.
  • ओ पी राजभर, अपने आपको राजभर समाज पर पकड़

राजभर-निषाद के बेटे चुनाव हारे

पहले बात पूर्वांचल की करेंगे. एक आंकड़े के मुताबिक सरयू और गंगा के दोआब में स्थित लोकसभाएं जैसे वाराणसी, बलिया, गाजीपुर,चंदौली, जौनपुर, घोसी और आजमगढ़ में राजभर समाज का जोर है. मसलन वाराणसी, बलिया, आजमगढ़, घोसी और चंदौली में राजभर मतदाताओं की संख्या 2 से ढाई लाख के करीब हैं. लेकिन वाराणसी को छोड़कर इन सभी सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है. मऊ के पत्रकार संजय मिश्रा के मुताबिक हकीकत में राजभर समाज को यह बात समझ में आने लगी है ओम प्रकाश राजभर को अपने ही परिवार की चिंता सताती है. समाजवादी पार्टी के नेता जनता को इस बात को समझाने में कामयाब रहे. यही तस्वीर पूर्वांचल की एक और सीट संत कबीर नगर की रही. संत कबीर नगर में संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद चुनाव हार गए.

अवध में मिली हार

अब एक नजर डालते हैं कि अवध इलाके की.अवध इलाके में सुल्तानपुर में मेनका गांधी की हार के बारे में विश्लेषक कहते हैं कि अगर संजय निषाद की उनके समाज में लोकप्रियता रही होती तो सपा के रामभुआल निषाद की जीत नहीं होती. इसके अलावा यूपी की चार सीटों खासतौर से भदोही, कौशांबी, प्रतापगढ़ में भी निषाद समाज के वोटर्स की संख्या अच्छी है लेकिन नतीजे बीजेपी के पक्ष में नहीं आए. इसका अर्थ यह है कि कागजों पर और बयानों में संजय निषाद बड़ी बड़ी बात तो करते हैं लेकिन वो अपने ही समाज को सहेजने में नाकाम साबित हुए जिसका असर यूपी में साफ तौर पर नजर भी आ रहा है.

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