
न्यूज़ रूम से सत्ता के गलियारों तक, वीणा की सियासी पारी पर उठते सवाल
मीडिया की दुनिया से राजनीति में आईं वीणा जॉर्ज की यात्रा केरल की राजनीति में सबसे चर्चित बदलावों में से एक मानी जाती है।
केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीणा जॉर्ज के इस्तीफे की मांग को लेकर विपक्षी यूडीएफ और भाजपा ने केरल भर में जोरदार प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। उनके महिला और युवा मोर्चे भी इस आंदोलन में शामिल हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र में हाल ही में सामने आए कई विवादों—जैसे कोट्टायम मेडिकल कॉलेज की बिल्डिंग गिरने और तिरुवनंतपुरम मेडिकल कॉलेज में डॉ. हैरिस चिरक्कल के व्हिसलब्लोअर आरोपों ने सरकार को घेरने का मौका दे दिया है। कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री तिरुवंचूर राधाकृष्णन ने तीखा हमला करते हुए कहा कि वे स्पष्ट रूप से इस मंत्रालय को संभालने में असमर्थ हैं। अब उन्हें इस्तीफा देकर शायद वापस टेलीविजन एंकरिंग करनी चाहिए।
पत्रकारिता से राजनीति तक
मीडिया की दुनिया से राजनीति में आईं वीणा जॉर्ज की यात्रा केरल की राजनीति में सबसे चर्चित बदलावों में से एक मानी जाती है। कैरली टीवी, इंडिया विजन, मनोरमा न्यूज़ और रिपोर्टर टीवी जैसे बड़े चैनलों में एंकर रह चुकीं वीणा ने 2016 में राजनीति में कदम रखकर सभी को चौंका दिया था। उनकी यह रणनीतिक एंट्री CPI(M) की बदलती रणनीति का हिस्सा मानी गई — जहां पार्टी मीडिया प्रबंधन, सामाजिक समीकरणों और छवि आधारित राजनीति को लेकर नए प्रयोग कर रही थी।
जाति, धर्म और संघर्ष की जमीन
वीणा को पठानमथिट्टा जिले की प्रतिष्ठित लेकिन चुनौतीपूर्ण अरन्मूला सीट से उम्मीदवार बनाया गया। यह क्षेत्र उच्च जातियों और ईसाई समुदायों का गढ़ रहा है — जहां वामपंथी राजनीति को पैर जमाने में दशकों से मुश्किल हो रही थी। वीणा की ऑर्थोडॉक्स ईसाई पृष्ठभूमि, मीडिया की लोकप्रियता और महिला होने का लाभ पार्टी को इस सामाजिक समीकरण में मिला। यही कारण था कि वह न सिर्फ चुनी गईं, बल्कि जल्द ही पार्टी की ज़िला समिति में भी शामिल की गईं।
शैलजा की जगह और तुलना
2021 में दूसरी पिनराई विजयन सरकार के गठन के समय वीणा को स्वास्थ्य मंत्री नियुक्त किया गया — जबकि दुनिया भर में कोविड प्रबंधन के लिए चर्चित केके शैलजा को हटाया गया। इस फैसले ने आंतरिक असंतोष, आलोचना और सार्वजनिक बहस को जन्म दिया: क्या वीणा तैयार थीं ‘शैलजा टीचर’ की जगह लेने के लिए?
पार्टी के अंदर गहराता असंतोष
CPI(M) के भीतर भी कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने वीणा की तेज पदोन्नति और सीनियर नेताओं की अनदेखी पर सवाल उठाए। वरिष्ठ नेता ए पद्मकुमार और स्थानीय कार्यकर्ता पीजे जॉनसन ने सोशल मीडिया पर उन्हें लेकर नाराजगी जताई थी। हालांकि बाद में पार्टी नेतृत्व के दबाव में पोस्ट हटा ली गई।
विपक्ष का राजनीतिक निशाना
वीणा जॉर्ज विपक्ष के लिए लगातार राजनीतिक हमलों का केंद्र बनी रही हैं। हर चिकित्सा लापरवाही, बीमारी का प्रकोप, प्रशासनिक चूक उनके कार्यकाल की विफलता के रूप में पेश किया जाता है। कांग्रेस और भाजपा, वीणा के साथ-साथ पिनराई विजयन के दामाद पीए मोहम्मद रियास को भी निशाने पर ले रहे हैं, यह दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार में "नजदीकी रिश्तों के आधार पर पद मिल रहे हैं, न कि योग्यता के आधार पर।
मीडिया का बढ़ता दबाव
एक समय मीडिया की चहेती रहीं वीणा जॉर्ज अब उसी मीडिया की कड़ी जांच और आलोचना का सामना कर रही हैं। उनके बयान, हावभाव, निर्णय—सब कुछ कैमरों और हेडलाइंस के दायरे में हैं। उन्होंने खुद कहा था कि "मुझे कुछ पूर्व पत्रकार साथियों से भी व्यक्तिगत स्तर पर निशाना बनाया जा रहा है, जिनसे मेरे पुराने मतभेद रहे हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय पर लगातार संकट
वीणा जॉर्ज का कार्यकाल एक के बाद एक संकटों से जूझता रहा है— कोविड के बाद का प्रबंधन, निपाह वायरस के बार-बार फैलाव, डेंगू के मामले, स्टाफ की कमी और हालिया कोट्टायम मेडिकल कॉलेज हादसा, जिसने जनआक्रोश को भड़का दिया। विडंबना यह है कि उनके कार्यकाल में स्वास्थ्य क्षेत्र में कई संरचनात्मक और तकनीकी सुधार भी हुए हैं। सरकारी अस्पतालों की छवि बेहतर हुई है, लेकिन हर संकट को अब उनकी कमी के तौर पर देखा जा रहा है।
तुलना की तलवार
वीणा की हर नीति, हर निर्णय की तुलना शैलजा टीचर से की जाती है — चाहे परिस्थितियां अलग क्यों न हों। एक नई महामारी से जूझना और उसके बाद की रिकवरी को संभालना, दोनों में फर्क है। मगर जनता अक्सर तथ्यों की तुलना नहीं, छवियों की तुलना करती है। वीणा जॉर्ज की कहानी केवल एक मंत्री की नहीं, बल्कि एक राजनीतिक प्रयोग की परीक्षा है। यह देखना बाकी है कि क्या CPI(M) की नई राजनीति— जिसमें प्रोफेशनलिज़्म, विविधता, मीडिया मैनेजमेंट और सामाजिक समीकरण शामिल हैं — टिक पाएगी या नहीं।