Jammu Kashmir Terror Attack News
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टीआरएफ यानी द रेसिस्टेंस फ्रंट को लश्कर ए तैयबा का प्रॉक्सी बताया जाता है। जम्मू-कश्मीर में ज्यादातर आतंकी हमले की जिम्मेदारी इस संगठन ने ली है।

पहलगाम टेरर अटैक में TRF का आ रहा नाम, आखिर कौन है इस संगठन के पीछे

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले में द रेसिस्टेंस फ्रंट का नाम सामने आ रहा है। आखिर इस संगठन के पीछे कौन लोग है उसके बारे में बताएंगे


जम्मू-कश्मीर के पहलगाम स्थित बैसरन घाटी में मंगलवार को एक भीषण आतंकी हमला हुआ, जिसमें पर्यटकों को निशाना बनाया गया। अब तक 16 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 26 मौतों की आशंका जताई जा रही है। हमले में करीब 10 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं।हमले के तुरंत बाद केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली में उच्चस्तरीय बैठक बुलाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो इस समय जेद्दा में हैं, ने फोन पर गृहमंत्री से बात की। इसके बाद अमित शाह दिल्ली से श्रीनगर पहुंच चुके हैं, उनके साथ खुफिया विभाग (IB) प्रमुख और गृह सचिव भी मौजूद हैं।

हमले के पीछे लश्कर और जैश की संयुक्त साजिश

प्रारंभिक जांच के अनुसार, यह हमला प्रतिबंधित आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की संयुक्त साजिश का परिणाम है। सूत्रों का कहना है कि ये संगठन पाकिस्तान के इशारे पर छोटे-छोटे 'हिट स्क्वॉड' के माध्यम से हमले कर रहे हैं। अमरनाथ यात्रा से पहले यह हमला तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के बीच भय का वातावरण बनाने के उद्देश्य से किया गया है। इससे पहले एक ऐसा ही हमला सोनमर्ग में भी हो चुका है।

टीआरएफ ने ली जिम्मेदारी, 'फाल्कन स्क्वॉड' बनी नई चुनौती

लश्कर-ए-तैयबा के मुखौटा संगठन ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है। इस संगठन की 'हिट स्क्वॉड' और 'फाल्कन स्क्वॉड' इकाइयों को घाटी में सुरक्षा बलों के लिए बड़ी चुनौती माना जा रहा है। इन मॉड्यूल्स को टारगेट किलिंग और ऊंचे, दुर्गम क्षेत्रों में छिपने के लिए प्रशिक्षित किया गया है।

सूत्रों के अनुसार, अपेक्षाकृत नए ‘फाल्कन स्क्वॉड’ को अत्याधुनिक हथियारों की आपूर्ति हुई है, जिसका इस्तेमाल हालिया हमलों में किया गया है। कुछ महीनों पहले इसी स्क्वॉड को लेकर खुफिया एजेंसियों ने सुरक्षा बलों को अलर्ट जारी किया था।

टीआरएफ: लश्कर का छिपा चेहरा

टीआरएफ वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद एक ऑनलाइन यूनिट के रूप में सामने आया। इसे लश्कर जैसे आतंकी संगठनों को वैचारिक और कूटनीतिक कवर देने के उद्देश्य से बनाया गया था। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI और सेना इस संगठन की मदद कर रही है। गृह मंत्रालय ने भी राज्यसभा में पुष्टि की थी कि टीआरएफ, लश्कर-ए-तैयबा का एक मुखौटा संगठन है।

आतंकी नेटवर्क की गंभीरता

2022 की जम्मू-कश्मीर पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, सुरक्षाबलों ने वर्ष भर में 90 से अधिक ऑपरेशनों में 172 आतंकवादियों को मार गिराया, जिनमें से 108 लश्कर और टीआरएफ से जुड़े थे। इसके अलावा, 100 नए आतंकियों में से 74 की भर्ती टीआरएफ के माध्यम से हुई थी।टीआरएफ का नाम पहली बार 2020 में कुलगाम हत्याकांड के दौरान सामने आया, जिसमें बीजेपी कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्या की गई थी। अब एक बार फिर टीआरएफ कश्मीर में 90 के दशक जैसे आतंक के दौर को लौटाने की कोशिश में लगा है।

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