
पानी की जंग जीतने वाली महिलाएं, गुजरात के इस गांव में अब हर घर में नल!
सरस्वती बेन और उनकी ‘पानी समिति’ ने दिखा दिया कि सामूहिक प्रयास और महिला नेतृत्व से कोई भी गांव आत्मनिर्भर बन सकता है। यह कहानी सिर्फ पानी की नहीं, सम्मान, आत्मनिर्भरता और उम्मीद की है।
दक्षिण गुजरात के वलसाड जिले के धरमपुर तालुका में सह्याद्री की पहाड़ियों के बीच बसा छोटा-सा गांव पांगरबाड़ी बरसों से पेयजल संकट से जूझता रहा। नर्मदा नदी के किनारे और घने जंगलों से घिरा यह गांव बारिश में सुंदर दिखता है। लेकिन इसके 1,738 की आबादी वाले इस आदिवासी बहुल गांव में न पीने को पानी था, न खेती के लिए।
गांव की सरपंच सरस्वतीबेन पदवी बताती हैं कि महिलाएं सुबह से शाम सिर्फ पानी लाने में जुटी रहती थीं या तो वे 10 किलोमीटर नीचे नदी की धारा से पानी लाती थीं या 6-7 किलोमीटर दूर एक कुएं तक जाती थीं। गर्मी में कुएं का पानी इतना नीचे चला जाता था कि उन्हें 30-40 फीट अंदर उतरकर पानी भरना पड़ता था।
अधूरा वादा
स्थानीय विधायक अरविंदभाई पटेल ने 2017 में गांव में बोरवेल खुदवाने का वादा किया था। लेकिन जब कोई काम नहीं हुआ तो ग्रामीणों ने चुनाव बहिष्कार किया। उन्होंने पेड़ों और दीवारों पर "नो वॉटर, नो वोट" लिख दिया। पटेल, जो पहले कांग्रेस में थे और अब भाजपा में हैं, ने माफी मांगी और फिर बोरवेल का वादा किया। लेकिन पांच साल बीतने के बाद भी गांव को पानी नहीं मिला।
महिलाओं ने उठाया जिम्मा
2023 में गांव की सरपंच सरस्वतीबेन पदवी ने ठान लिया कि अब और इंतजार नहीं करेंगे। उन्होंने नीताबेन पटेल से संपर्क किया, जो दक्षिण गुजरात में कई आदिवासी गांवों को जल-संपूर्ण बना चुकी थीं। नीताबेन ने गांव की महिलाओं को रेनवॉटर हार्वेस्टिंग और बोरीबंद (मिट्टी से भरे बोरे की बांध) बनाने की तकनीक सिखाई। अगस्त 2023 में गांव की 11 महिलाओं ने मिलकर ‘पानी समिति’ बनाई और पाइपलाइन, टैंक और पानी सप्लाई सिस्टम का खाका तैयार किया। आस्तोल योजना के तहत उन्हें टैंक बनाने में मदद मिली।
बदली गांव की तस्वीर
पानी समिति ने चार बोरीबंद बांध बनाए, जिससे पानी जमीन में रिसने लगा और खेती लायक नमी बनी। साथ ही, 35,000 से 40,000 लीटर की 6 बड़ी टंकियां बनाईं। मार्च 2024 तक गांव में 315 घरों में नल कनेक्शन दे दिए गए और रोजाना 2 लाख लीटर पानी की सप्लाई शुरू हो गई।
पहले दिहाड़ी मजदूर रह चुके 38 वर्षीय मंगलभाई, सरपंच सरस्वतीबेन के पति, अब अपने ही खेत में प्याज, आलू और केले की खेती कर रहे हैं। वे बताते हैं कि पहले कपड़े धोना और रोज नहाना एक लग्जरी था, अब ये आम बात है। हमारी औरतों ने सिर्फ पानी नहीं लाया, गांव की किस्मत बदल दी।