जब तक न्याय नहीं, तब तक कोई बातचीत नहीं: लद्दाख नेता सज्जाद कारगिली
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'जब तक न्याय नहीं, तब तक कोई बातचीत नहीं': लद्दाख नेता सज्जाद कारगिली

कारगिली ने स्वीकार किया कि 2019 में ही इस संकट की आशंका थी। उन्होंने कहा कि UT मॉडल बिना विधानसभा के चलेगा नहीं, यह हमें तभी समझ आ गया था।


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लद्दाख डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) के नेता सज्जाद कारगिली ने The Federal से विशेष बातचीत में लद्दाख में हालिया हिंसा, केंद्र सरकार के साथ प्रस्तावित वार्ता के बहिष्कार और लोगों में बढ़ते असंतोष पर खुलकर बात की। उन्होंने साफ किया कि जब तक न्याय नहीं होगा, तब तक लद्दाख में शांति बहाल नहीं हो सकती।

दिल्ली क्यों आए, जब लद्दाख हिंसा की चपेट में है?

सज्जाद कारगिली ने बताया कि 23 सितंबर को दो लोग घायल हुए और अगले दिन लेह में हिंसा भड़क गई। इसमें चार लोगों की मौत हुई, कई घायल हुए और 40 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए गए। हम 6 अक्टूबर को प्रस्तावित वार्ता के लिए पहले से ही दिल्ली आने वाले थे, लेकिन हालात बिगड़ने के बाद पहले हम लेह गए, घायलों और मृतकों के परिवारों से मिले। 29 सितंबर को गृह मंत्रालय के साथ बैठक तय थी, लेकिन लेह एपेक्स बॉडी ने वार्ता से हटने का फैसला किया और KDA ने इसका समर्थन किया। जब तक न्यायिक जांच शुरू नहीं होती और गिरफ्तार सभी लोगों खासकर सोनम वांगचुक को बिना शर्त रिहा नहीं किया जाता, हम बातचीत में शामिल नहीं होंगे।


केंद्र से क्या मांगें हैं?

कारगिली ने कहा कि 2019 में राज्य का विभाजन होने के बाद लद्दाख के लोगों को तीन स्तरों पर अधिकारों से वंचित कर दिया गया है:-

1. राजनीतिक प्रतिनिधित्व का अभाव

2. भूमि की सुरक्षा के लिए कोई कानूनी गारंटी नहीं

3. संवैधानिक सुरक्षा का वादा पूरा नहीं हुआ

KDA की मुख्य मांगें

* लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा

* लद्दाख के लिए अलग कैडर और लोक सेवा आयोग

* संसद में पर्याप्त प्रतिनिधित्व (एक सीट पर्याप्त नहीं)

* राज्य का दर्जा (Statehood)

कारगिली ने कहा कि चार साल से हम बातचीत कर रहे हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। अब संवाद गरिमा और गंभीरता से ही होना चाहिए।

क्या है लद्दाख की मौजूदा स्थिति?

कारगिली ने बताया कि 24 सितंबर की हिंसा के बाद से किसी भी निर्वाचित प्रतिनिधि को सरकार ने संवाद में शामिल नहीं किया, न ही हिल काउंसिल और न ही लद्दाख के सांसद को। प्रशासन पूरी तरह LG के हाथों में है और जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों को नजरअंदाज किया जा रहा है। इससे लोगों में असुरक्षा और अलगाव की भावना बढ़ी है। अगर सरकार संवाद चाहती है तो न्यायिक जांच शुरू करे, जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करे और नेताओं को विश्वास में ले।

Gen Z विरोध" कहे जाने पर कारगिली का जवाब

केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा लद्दाख के विरोध प्रदर्शनों की तुलना नेपाल और बांग्लादेश के "Gen Z आंदोलनों" से किए जाने पर कारगिली ने कहा कि यह तुलना पूरी तरह गलत और अनुचित है। लद्दाख का आंदोलन सभी वर्गों का आंदोलन है – युवा, महिलाएं, बुजुर्ग, सभी समुदाय इसमें शामिल हैं। हम सरकार गिराने नहीं, बल्कि अपने संवैधानिक अधिकार मांगने की लड़ाई लड़ रहे हैं। हम हमेशा देश के साथ खड़े रहे हैं — 1948 से लेकर गलवान घाटी तक। लेकिन अब सरकार ही हमें पराया बना रही है।

क्या 2019 में अनुच्छेद 370 हटने के वक्त ये संकट दिख रहा था?

कारगिली ने स्वीकार किया कि 2019 में ही इस संकट की आशंका थी। उन्होंने कहा कि UT मॉडल बिना विधानसभा के चलेगा नहीं, यह हमें तभी समझ आ गया था। पहले कारगिल ने जम्मू-कश्मीर में पुनर्विलय की मांग की, लेकिन बाद में Leh Apex Body और KDA ने मिलकर चार बिंदुओं पर सहमति बनाई:-

1. लद्दाख को राज्य का दर्जा

2. छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा

3. अलग कैडर

4. संसद में उचित प्रतिनिधित्व

बातचीत की मेज पर लौटने की क्या शर्तें होंगी?

बातचीत तब ही होगी जब ये शर्तें पूरी हों:-

> सोनम वांगचुक समेत सभी गिरफ्तार लोगों की रिहाई

> प्रदर्शनकारियों पर लगाए गए झूठे मुकदमों को हटाना

> घायलों और मृतकों के परिजनों को मुआवजा और उचित चिकित्सा

> हिंसा की न्यायिक जांच

कारगिली ने कहा कि बिना न्याय के बातचीत करना अन्याय को वैधता देना होगा। हम ऐसा नहीं करेंगे।

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