
पीएम मोदी का मणिपुर दौरा: यात्रा से पहले बढ़ी चुनौतियां
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मणिपुर यात्रा केवल एक “सांकेतिक दौरा” नहीं रह गई है। यह राज्य की राजनीतिक, सामाजिक और जातीय स्थिति की असली परीक्षा है। जहां एक तरफ राज्य में सरकार की नीतियों के खिलाफ गुस्सा उबल रहा है, वहीं दूसरी ओर नई-नई चुनौतियाँ भी सामने आ रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 13 सितंबर को मणिपुर की यात्रा करेंगे — यह उनकी पहली यात्रा होगी, जब से राज्य में 2023 में जातीय हिंसा शुरू हुई थी। लेकिन यह दौरा प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि बेहद संवेदनशील और चुनौतियों से भरा होगा। इंफाल के राजनीतिक व मानवाधिकार कार्यकर्ता ओनिल क्षेत्रीमायुम के अनुसार, राज्य अब सिर्फ सामान्य स्थिति की वापसी नहीं बल्कि ठोस समाधान की उम्मीद कर रहा है। प्रधानमंत्री की यह यात्रा केंद्र सरकार की रणनीति की परीक्षा होगी — खासतौर पर जातीय सुलह, राजनीतिक स्थिरता और प्रशासनिक संतुलन के मोर्चों पर, जहां स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है।
बीजेपी को बड़ा झटका
प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले राज्य में बीजेपी को बड़ा राजनीतिक झटका लगा है। 8 सितंबर को तीन वरिष्ठ बीजेपी नेता कांग्रेस में शामिल हो गए:-
⦁ वाई. सुर्चंद्र सिंह (पूर्व विधायक, काकचिंग)
⦁ एल. राधाकिशोर सिंह (पूर्व विधायक, ओइनम)
⦁ उत्तमकुमार निंगथौजम
सुर्चंद्र सिंह, एक रिटायर्ड IAS अधिकारी, 2007 से 2017 तक तीन बार विधायक रहे और 2022 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव हार गए थे। राधाकिशोर सिंह 2002 और 2017 में विधायक रहे, लेकिन 2022 में हार का सामना किया।
बीजेपी डूबता जहाज
मणिपुर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष केशम मेघचंद्र सिंह ने कहा कि यह बदलाव बीजेपी सरकार की विफलताओं और मणिपुर संकट को गलत तरीके से संभालने का नतीजा है। उन्होंने दावा किया कि कई वर्तमान बीजेपी विधायक भी कांग्रेस में शामिल होने की तैयारी में हैं। राज्यपाल द्वारा पीएम की यात्रा को लेकर बुलाई गई बैठक में भी बीजेपी में अंदरूनी कलह नजर आई। कुल 32 मीतेई बीजेपी विधायकों में से सिर्फ 23 ही बैठक में शामिल हुए। बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और विधानसभा अध्यक्ष टी. सत्यब्रत उपस्थित थे।
राज्यपाल पर पक्षपात का आरोप
बैठक में सिर्फ बीजेपी नेताओं को आमंत्रित किए जाने पर कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने इसे "लोकतंत्र का अपमान" और "राजभवन की गरिमा का उल्लंघन" बताया।उन्होंने कहा कि जब राज्य में एकता और समावेशन की सबसे ज्यादा ज़रूरत है, तब इस तरह का चयनात्मक आमंत्रण गलत संकेत देता है।
शांति वार्ता पर सवाल
हाल ही में केंद्र सरकार ने कुकी-जो उग्रवादी समूहों के साथ SoO (सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स) समझौते को फिर से लागू किया, जिसे मीतेई समुदाय के संगठनों ने "जनविरोधी कदम" बताया है। COCOMI जैसे संगठनों ने सरकार पर मणिपुर की अखंडता से समझौता करने का आरोप लगाया है और SoO को तुरंत रद्द करने की मांग की है। दिलचस्प बात यह है कि मणिपुर विधानसभा ने फरवरी 2024 में इस समझौते का विरोध करते हुए एक प्रस्ताव पास किया था, जिसे केंद्र ने अनदेखा कर दिया।
NH-2 खोलने की मांग पर आंदोलन
कुकी-जो समूहों ने यह साफ किया है कि उन्होंने NH-2 को सभी समुदायों के लिए खोलने पर कोई समझौता नहीं किया है। इसके विरोध में 5 सितंबर से तीन सामाजिक संगठनों — Awang Sekmai Kanba Nupi Lup, Imagi Meira और People’s Progressive Alliance Manipur ने अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया है। इमागी मैरा की संयोजिका सुजाता ने कहा कि अगर सरकार वाकई हमारी चिंता करती है तो उसे सभी समुदायों के लिए सड़कें खोलनी चाहिए और विस्थापित लोगों की घर वापसी सुनिश्चित करनी चाहिए।
नागा परिषद का व्यापार बहिष्कार
अब एक नया संकट और खड़ा हो गया है। यूनाइटेड नागा काउंसिल (UNC) ने 8 सितंबर की मध्यरात्रि से व्यापार बहिष्कार की घोषणा की है, जिसमें NH-2 और NH-37 जैसे प्रमुख राजमार्ग शामिल हैं। यह कदम केंद्र सरकार द्वारा फ्री मूवमेंट रीजीम (FMR) को समाप्त करने और भारत-म्यांमार सीमा पर फेंसिंग तेज करने के विरोध में उठाया गया है। नागा समूहों का मानना है कि इससे उनके पारंपरिक और सांस्कृतिक संबंध खतरे में पड़ जाएंगे। UNC के अध्यक्ष एनजी लोर्हो ने कहा कि जब तक सरकार अपना फैसला वापस नहीं लेती, आंदोलन जारी रहेगा — भले ही प्रधानमंत्री की यात्रा हो रही हो।