गुजरात में 2002 के बाद कोई दंगा नहीं हुआ सच के कितना करीब है दावा
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'गुजरात में 2002 के बाद कोई दंगा नहीं हुआ' सच के कितना करीब है दावा

लेक्स फ्रीडमैन के साथ पॉडकास्ट में पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 2002 के बाद गुजरात में कोई दंगा नहीं हुआ। लेकिन जमीनी हकीकत के बारे में द फेडरल ने तहकीकात की है।


लेक्स फ्रिडमैन के साथ एक पॉडकास्ट में, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि 2002 के बाद गुजरात में कोई दंगे नहीं हुए। लेकिन हुसैनभाई रहीमवाला शेख के लिए हकीकत कुछ और ही है। शेख उन 50 मुस्लिम परिवारों में से एक थे, जिन्हें 25-26 मार्च 2017 को उत्तर गुजरात के पाटन जिले के वडावली गांव से सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद भागना पड़ा था।

2017 में दोबारा वही भयावह मंजर

फ़ेडरल के साथ बातचीत में, इस परिवार ने 2002 के दंगों में बचने के बाद एक और भयावह रात को याद किया, जब करीब 100 लोगों की भीड़ ने गांव में मुस्लिम घरों पर हमला किया। महज तीन घंटे में 80 घर लूटे और जला दिए गए, दो मुस्लिम पुरुषों की हत्या कर दी गई और लगभग सभी मुस्लिम दुकानों को लूट लिया गया।

2002 के बाद शांति की तलाश में पहुंचे थे वडावली

शेख ने बताया, "हम 2002 के दंगों के बाद वडावली आए थे क्योंकि यह गांव शांतिपूर्ण था और दंगों से अछूता था। हमने अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू की थी, लेकिन कुछ ही घंटों में सबकुछ जलकर राख हो गया, ठीक वैसे ही जैसे 2002 में हुआ था। हमने जान बचाने के लिए गांधीनगर के कलोल में रिश्तेदारों के घर शरण ली और वहां छह महीने तक रहे।"

वडावली के बाद वडगाम में भी हिंसावडावली में हिंसा के एक हफ्ते बाद, उत्तर गुजरात के अरावली जिले के वडगाम गांव में भी सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे, जिससे 35 सिंधी मुस्लिम परिवारों को गांव छोड़कर भागना पड़ा।

जंगल में छिपकर 22 दिन बिताए

वहां के निवासी अल्लुभाई ने बताया, "हम शांति से रह रहे थे, जब 29 मार्च को गांव की एक नाबालिग लड़की मेरे घर के पास से गुजरी और दावा किया कि मेरे बेटे अकबर ने उसे परेशान किया। उसी शाम लड़की के परिवार समेत करीब 25 लोग आए, उन्होंने गाली-गलौच की और अकबर की पिटाई कर दी।"

"रात में एक और भीड़ आई और अकबर को सौंपने की मांग करने लगी। शांति बनाए रखने के लिए मैं और अकबर उनके साथ चले गए। उन्होंने हमें आधे घंटे तक पीटा और छोड़ दिया। लेकिन थोड़ी ही देर में 500 लोगों की एक और बड़ी भीड़ लाठी, तलवार और पाइप लेकर पहुंची और हम पर हमला कर दिया। इस हमले में 12 लोग घायल हुए," उन्होंने बताया।

अल्लुभाई ने आगे बताया कि वह और एक अन्य मुस्लिम परिवार 22 दिनों तक जंगल में छिपे रहे, जब तक कि एक मानवाधिकार संगठन ने उन्हें खोज नहीं निकाला।

गुजरात में 'हिंदू राष्ट्र' के बोर्ड

गुजरात के मानवाधिकार कार्यकर्ता होजेफा उज्जैनी ने बताया कि उन्होंने डरे हुए परिवारों को उनके गांव लौटने के लिए समझाने की कोशिश की। लेकिन तब तक वडगाम और धंसुरा के बीच 8 किलोमीटर के दायरे में कई बोर्ड लगाए जा चुके थे, जिन पर लिखा था:"हिंदू राष्ट्र के वडगाम, धंसुरा, हर्सोल और तलोद में आपका स्वागत है।"जब कार्यकर्ता ने इस बारे में जिला कलेक्टर से शिकायत की, तो उन्हें ही सांप्रदायिक तनाव भड़काने का आरोप लगा दिया गया।

गृह मंत्रालय के आंकड़े क्या कहते हैं?

उत्तर गुजरात के इन दो गांवों में हुए दंगे कोई अपवाद नहीं हैं। गुजरात गृह मंत्रालय के रिकॉर्ड बताते हैं कि मोदी के दावे तथ्यों पर आधारित नहीं हैं।2004 के बाद से, गुजरात में हर साल कम से कम एक सांप्रदायिक दंगा हुआ है। 2017 से 2022 के बीच हर साल कई दंगे हुए।अल्पसंख्यक समन्वय आयोग के समन्वयक मुजाहिद नफीस के अनुसार, "2004 से छोटे स्तर पर दंगे तब शुरू हुए, जब विस्थापित मुस्लिम परिवार उन गांवों और कस्बों में बसने लगे जो 2002 के दंगों से अप्रभावित थे।"2017 के बाद, दंगे ग्रामीण इलाकों से शहरी क्षेत्रों में लौटने लगे।

2017-2022: गुजरात में दंगों के आंकड़े

2017 से 2022 के बीच गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा की 13 घटनाएं दर्ज हुईं:

10 घटनाएं आनंद और साबरकांठा जिलों में हुईं।

वडोदरा, मेहसाणा और गिर सोमनाथ में एक-एक घटना हुई।

2017 विधानसभा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन सबसे कमजोर रहा था। उस चुनाव में पार्टी का वोट शेयर 20% तक गिर गया था।

खंभात, जो बीजेपी का पारंपरिक गढ़ रहा है, 2017 के चुनाव में कांग्रेस के हाथों चला गया। चुनावों के बाद वहां कई सांप्रदायिक घटनाएं हुईं।

2018 में 'डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट' लागू होने के बावजूद हिंसा जारी

2018 में, सरकार ने खंभात में 'डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट' लागू किया, जो दो धार्मिक समुदायों के बीच संपत्ति की बिक्री को जिला प्रशासन की अनुमति के बिना रोकता है। लेकिन इसके बावजूद खंभात में दंगे होते रहे।

छोटी घटनाओं से दंगे तक

फरवरी 2019 में, अकबरपुरा में पतंग उड़ाने को लेकर दो बच्चों के बीच हुए झगड़े ने सांप्रदायिक दंगे का रूप ले लिया। पुलिस को सात राउंड हवाई फायरिंग करनी पड़ी और आंसू गैस के गोले दागने पड़े।इसी महीने, पुलवामा हमले पर सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर खंभात में फिर सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई।

2020 में, हिंदू जागरण मंच ने रैली निकालकर हिंदुओं से मुसलमानों को खंभात से बाहर निकालने का आह्वान किया। बीजेपी नेता संजय पटेल और पिनाकिन ब्रह्मभट्ट ने रैली का नेतृत्व किया। अगले दिन, दंगे भड़क उठे, जिसमें 13 मुसलमान घायल हुए और 30 से अधिक दुकानें, 10 घर और कई वाहन जला दिए गए।

2022: रामनवमी के दौरान दंगे

2022 में, रामनवमी के दौरान खंभात में हुए दंगे में एक हिंदू व्यक्ति की मौत हो गई। पुलिस ने शव को विश्व हिंदू परिषद (VHP) को सौंप दिया, जिसने मुस्लिम बहुल इलाकों में जुलूस निकाला और सांप्रदायिक हिंसा भड़क गई।

गुजरात में दंगों का एक पैटर्न?

सियासी विश्लेषक गौरांग देसाई के मुताबिक, "गुजरात में दंगों का एक पैटर्न है। 2002 से अप्रभावित इलाकों और कांग्रेस के गढ़ों में ही ज्यादातर दंगे हुए। 2017 के बाद यह सिलसिला तेज हुआ, जब बीजेपी का चुनावी प्रदर्शन सबसे खराब रहा। लेकिन 2022 में बीजेपी की ऐतिहासिक जीत (152 सीटें) के बाद से कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ।"

2002 से मिलती-जुलती राजनीति?

2001 में, बीजेपी पंचायत और उपचुनाव हारने के बाद अस्थिर थी। तब नरेंद्र मोदी को केशुभाई पटेल की जगह मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन मोदी तब तक लोकप्रिय नेता नहीं थे। इसी दौरान, फरवरी 2002 में गुजरात दंगे हुए।उस समय के विधानसभा चुनाव अप्रैल में होने थे, लेकिन दंगों के कारण उन्हें दिसंबर तक टाल दिया गया। नतीजा यह रहा कि बीजेपी ने बड़ी जीत दर्ज की।

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