
PMK संकट: बेटे को हटाकर रामदोस ने दिखाई कड़ी चाल
PMK संस्थापक डॉ. एस. रामदोस ने बेटे अंबुमणि को पार्टी से निकाल दिया। पिता-पुत्र संघर्ष ने 2026 चुनाव से पहले तमिलनाडु की राजनीति गरमा दी है।
पट्टाली मक्कल काची (PMK) गुरुवार (11 सितंबर) को बड़े राजनीतिक संकट में फंस गई, जब पार्टी के संस्थापक डॉ. एस. रामदोस ने अपने बेटे और पार्टी अध्यक्ष अंबुमणि रामदोस को पार्टी से निष्कासित कर दिया। महीनों से simmer कर रहे पिता-पुत्र संघर्ष में यह सबसे बड़ा मोड़ माना जा रहा है।
‘पार्टी को आगे नहीं बढ़ा पाए’
विलुपुरम (तमिलनाडु) में घोषणा करते हुए डॉ. रामदोस ने कहा कि अंबुमणि ने वरिष्ठ नेताओं की सलाह और उनकी खुद की बातों की लगातार अनदेखी की। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे तुरंत प्रभाव से अंबुमणि से सभी संबंध तोड़ लें।रामदोस ने कहा—“वह पार्टी को आगे नहीं बढ़ा पाए। उनकी मौजूदगी पार्टी की प्रगति और भविष्य को प्रभावित करेगी।” उन्होंने आरोप लगाया कि अंबुमणि के समर्थक पार्टी को समानांतर ढंग से चला रहे थे, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यदि वे वापसी करना चाहें तो उन्हें माफ किया जा सकता है।
तमिलनाडु की राजनीति में अहम खिलाड़ी
यह नाटकीय निष्कासन अब PMK, जो तमिलनाडु की क्षेत्रीय राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी रही है, को 2026 विधानसभा चुनावों से पहले गहरे असमंजस में धकेल रहा है।पार्टी प्रवक्ता पी. स्वामीनाथन ने द फेडरल से कहा कि अंबुमणि का निष्कासन कोई जल्दबाजी का फैसला नहीं था, बल्कि पिछले दो महीनों से पार्टी के भीतर विवाद का विषय बना हुआ था। उन्होंने बताया,
“हमारे नेता रामदोस ने वही प्रक्रिया अपनाई, जो किसी भी अन्य कार्यकर्ता पर लागू होती है। अंबुमणि को दो बार कारण बताओ नोटिस भेजा गया, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। steering committee और organising committee ने गहन विचार के बाद यह निर्णय लिया। उन्हें पर्याप्त मौके दिए गए, लेकिन उनका रवैया अस्वीकार्य हो गया।”
2026 चुनाव से पहले कठिन फैसला
जब उनसे पूछा गया कि क्या यह निष्कासन पार्टी में दरार पैदा करेगा, तो स्वामीनाथन ने कहा “हमारे अय्या (रामदोस) ने कई बैठकों के बाद यह निर्णय लिया। उन्होंने बेटे से ऊपर पार्टी और उसके भविष्य को प्राथमिकता दी। अंबुमणि, दो बार सांसद और केंद्रीय मंत्री रहने के बावजूद, पार्टी की मजबूती में योगदान नहीं दे पाए। 2026 विधानसभा चुनाव की अहमियत देखते हुए यह सही फैसला है। कुछ कार्यकर्ता शायद अलग हों, लेकिन उनका राजनीति में कोई भविष्य नहीं होगा।”
संघर्ष की पृष्ठभूमि
पिता-पुत्र के बीच टकराव 2024 के अंत से ही उभरना शुरू हो गया था, जब डॉ. रामदोस ने अपने पोते मुकुंदन को संगठन में एक महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त कर दिया। इस फैसले का अंबुमणि ने खुले तौर पर विरोध किया। पुडुचेरी में हुई एक जनरल काउंसिल बैठक में अंबुमणि ने इसका विरोध करते हुए गुस्से में माइक तक पटक दिया था। डॉ. रामदोस ने बाद में इस घटना को वह पल बताया जिसने “पार्टी को एक सेकंड में दो हिस्सों में बांट दिया।”
जहाँ डॉ. रामदोस यह दावा करते रहे हैं कि वही पार्टी प्रमुख हैं, वहीं अंबुमणि का कहना है कि वे पार्टी नियमों के तहत विधिवत निर्वाचित अध्यक्ष हैं और चुनाव आयोग से मान्यता भी प्राप्त है।अंबुमणि गुट के अधिवक्ता के. बालु से टिप्पणी के लिए संपर्क नहीं हो सका।