परिवार में दबदबे के लिए संघर्ष, PMK-MDMK के सामने एक जैसी चुनौती
x
एमडीएमके और पीएमके आंतरिक झगड़ों में उलझे हुए हैं, जो कॉलीवुड नाटकों को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। फाइल फोटो में (बाएं से) वाइको, दुरई वाइको, अंबुमणि रामदास और एस रामदास।

परिवार में दबदबे के लिए संघर्ष, PMK-MDMK के सामने एक जैसी चुनौती

इस समय PMK -MDMK में पारिवारिक संघर्ष चरम पर है। जहां Durai Vaiko अपने पिता के खिलाफ विद्रोह वहीं ए रामदास पार्टी अध्यक्ष पद के लिए अपने पिता से लड़ रहे हैं।


Tamil Nadu Politics: कभी तमिलनाडु में डीएमके अपने भाई-भाई के संघर्ष और उत्तराधिकार की लड़ाई को लेकर सुर्खियों में रही थी, लेकिन अब ध्यान दो छोटी मगर तीखी राजनीतिक पार्टियों पर केंद्रित हो गया है। मरुमलार्ची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (MDMK) और पट्टाली मक्कल काच्ची (PMK)। इन दोनों दलों में पिता-पुत्रों की जोड़ी के नेतृत्व में पारिवारिक संघर्ष गहराता जा रहा है, जो राज्य की राजनीति में परिवारवाद की गहराई को उजागर करता है।

'बेटे ने पिता से वफादार को हटाने की मांग की'

एमडीएमके सांसद और पार्टी के मुख्य सचिव दुरई वैको (Durai Vaiko) ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने अपने इस्तीफे में अपने पिता और पार्टी प्रमुख वैको से मल्ली सत्य को पार्टी से बाहर निकालने की मांग की है। सत्य, जो लंबे समय से वैको के विश्वासपात्र रहे हैं, पर दुरई ने आरोप लगाया कि वे पार्टी के खिलाफ काम कर रहे हैं और संगठन की छवि को खराब करने की कोशिश कर रहे हैं।

दुरई के इस्तीफे वाले पत्र में भावनात्मक बातें और गंभीर आरोप दोनों शामिल थे, इस बात का संकेत है कि पार्टी में लंबे समय से दबी कलह अब सतह पर आ गई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह विवाद व्यक्तिगत अहंकार की टकराव का नतीजा है, जो अब सार्वजनिक हो गया है।

वर्चस्व की लड़ाई

माना जा रहा है कि सत्य की पार्टी कार्यक्रमों में बढ़ती दृश्यता और उनके पोस्टर्स में प्रमुखता ने दुरई को नाराज़ किया। दुरई खुद को अपने पिता और कार्यकर्ताओं से अधिक मान्यता दिलाने की कोशिश में हैं।बीते शनिवार को एमडीएमके कर्मचारियों की बैठक में दुरई और सत्य के बीच वैको की मौजूदगी में ही तीखी बहस हुई, जिससे यह विवाद और गहरा गया। सत्य के समर्थकों ने दुरई की भूमिका को सीमित करने के निर्देश दिए, जिससे यह संदेश गया कि वैको अपने पुराने वफादार को बेटे से ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं।

दुरई का इस्तीफा

विशेषज्ञों के मुताबिक, एक रणनीतिक दांव हो सकता है जिससे वे पार्टी के जिला नेताओं को सत्य को दरकिनार करने का इशारा दे रहे हों।

वैको की उलझन: बेटे या पुराने सिपहसालार के साथ?

एमडीएमके की त्रिची शहरी इकाई ने सत्य को पार्टी से निकालने का प्रस्ताव पारित किया, जिससे यह संकेत मिला कि दुरई को कुछ स्तर पर समर्थन प्राप्त है। उन्होंने सत्य को "कैंसर" तक कह दिया।इसपर प्रतिक्रिया देते हुए वैको ने कहा:"यह बहुत चौंकाने वाला है; मैंने टीवी के जरिए ही दुरई के इस्तीफे के बारे में जाना।"

इस प्रतिक्रिया ने यह दर्शाया कि पारिवारिक संवाद में भी दरार है। हालांकि इस्तीफा देने के बावजूद दुरई ने यह स्पष्ट किया है कि वे एमडीएमके के "पहले स्वयंसेवक" बने रहेंगे और त्रिची से सांसद के रूप में कार्य करते रहेंगे।

पीएमके: एक और पारिवारिक संघर्ष

दूसरी ओर, पीएमके में भी परिवार के भीतर सत्ता संघर्ष चरम पर है। यह पार्टी, जो 1989 में वन्नियार समुदाय के हितों की रक्षा के लिए शुरू की गई थी, हमेशा से डॉ. एस. रामदॉस (S Ramadoss) और उनके बेटे अंबुमणि रामदॉस (A Ramadoss) के इर्द-गिर्द घूमती रही है।

10 अप्रैल को 85 वर्षीय रामदॉस ने एक बार फिर पार्टी की कमान संभालते हुए अंबुमणि को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया, जिससे सत्ता संघर्ष खुलकर सामने आ गया। यह कदम केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के चेन्नई दौरे से ठीक पहले उठाया गया, जिससे इसके राजनीतिक निहितार्थ और स्पष्ट हो गए।

जनरेशन गैप: अनुभव बनाम आधुनिक दृष्टिकोण

यह टकराव इस बात को लेकर है कि रामदॉस अब भी पार्टी पर नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं, जबकि अंबुमणि एक अधिक आधुनिक और आक्रामक रुख के साथ नेतृत्व संभालना चाहते हैं। अंबुमणि अपने पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के कार्यकाल और युवाओं में पकड़ का हवाला देते हैं।

यह तनाव दिसंबर 2024 में सामने आया जब रामदॉस ने अपनी नातिन गांधीमाथी के बेटे मुकुंदन को युवा मोर्चा का अध्यक्ष नियुक्त किया, जिससे अंबुमणि बेहद नाराज़ हुए और सार्वजनिक रूप से इसका विरोध किया।

पिता को चुनौती: अंबुमणि की मुखरता

रामदॉस द्वारा अध्यक्ष पद वापस लेने के जवाब में अंबुमणि ने चुनाव आयोग द्वारा उन्हें मान्यता प्राप्त पार्टी अध्यक्ष बताया और कहा:"मैं नेता के रूप में बना रहूंगा और अपने पिता का सम्मान बनाए रखने के लिए जो जरूरी होगा, करूंगा।"

उन्होंने 11 मई को चितिरई निलावु उत्सव के आयोजन का भी ऐलान किया, जो उनके और उनके पिता के बीच सीधी शक्ति परीक्षा बन गया है। पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच भी बंटवारा साफ दिखने लगा है—कुछ रामदॉस के अनुभव के पक्षधर हैं, तो कुछ अंबुमणि को पार्टी का भविष्य मानते हैं।

दो दल, एक जैसी पारिवारिक चुनौतियां

एमडीएमके और पीएमके में आश्चर्यजनक समानताएं हैं:दोनों पार्टियां पारिवारिक नेतृत्व वाली हैं—वैको और रामदॉस संस्थापक हैं, उनके बेटे प्रमुख पदों पर हैं।दोनों में पिता-पुत्र के बीच तनाव है, जहां बेटों को लगता है कि पिता किसी और को तरजीह दे रहे हैं।दोनों बेटों को सांसद बनाया गया है—दुरई लोकसभा और अंबुमणि राज्यसभा में हैं।दोनों संस्थापकों ने कभी कहा था कि उनके बेटे पार्टी में पद नहीं संभालेंगे, लेकिन अब वही वादे टूट चुके हैं।

क्या होगा आगे?

एमडीएमके की 20 अप्रैल को होने वाली कार्यकारिणी बैठक अहम साबित हो सकती है। अगर वैको ने सख्त फैसला नहीं लिया तो पार्टी में बिखराव तय है। वहीं, पीएमके के लिए 11 मई का चितिरई उत्सव एक लिटमस टेस्ट बनकर उभरेगा।अगर दोनों दल समय रहते सामंजस्य नहीं बैठा पाए, तो यह आंतरिक कलह उन्हें राजनीतिक रूप से कमजोर कर सकती है, खासकर एनडीए और डीएमके जैसे गठबंधनों के दौर में।

Read More
Next Story