
राजस्थान के सरकारी स्कूल नीति की उदासीनता और लालफीताशाही से तबाही की कगार पर
बजट आवंटन अब तक प्रभावित स्कूलों तक नहीं पहुँचा; आदिवासी और गरीब इलाकों के स्कूल सबसे बुरी तरह प्रभावित, शायद कम राजनीतिक प्राथमिकता के कारण
सोमवार (28 जुलाई) को जैसलमेर ज़िले के रामगढ़ क्षेत्र के पूनमनगर गांव में एक छह वर्षीय बच्चा उस समय मारा गया जब स्कूल के मुख्य द्वार को सहारा दे रही कंक्रीट की स्लैब तेज़ हवा और लगातार बारिश के कारण गिर गई। बच्चे अर्बाज़ ख़ान की मौके पर ही मौत हो गई।
इस हादसे में दो शिक्षक भी घायल हुए। यह हादसा उस त्रासदी के सिर्फ़ तीन दिन बाद हुआ जिसमें झालावाड़ ज़िले के एक सरकारी स्कूल की इमारत का हिस्सा गिरने से सात बच्चों की मौत और कम से कम 21 घायल हो गए थे।
सरकारी उदासीनता और प्रशासनिक असंवेदनशीलता
इन घटनाओं ने राजस्थान में सरकारी स्कूलों के जर्जर ढांचे और प्रशासनिक उदासीनता को उजागर कर दिया है।
राजस्थान के सरकारी स्कूलों की बदहाली: प्रमुख बिंदु
तीन दिनों में दो हादसों में आठ बच्चों की मौत
2,256 स्कूलों में दरकी दीवारें, टपकती छतें, उखड़ा पलस्तर
₹250 करोड़ की मरम्मत राशि अभी तक जारी नहीं
49,000 पानी की टंकियां, तारें, फर्नीचर जर्जर हालत में
छात्रों की चेतावनी को नजरअंदाज किया गया
आदिवासी और गरीब इलाकों के स्कूल सबसे ज़्यादा प्रभावित
न्यायिक हस्तक्षेप और सरकारी जवाबदेही
राजस्थान हाईकोर्ट ने झालावाड़ हादसे पर स्वतः संज्ञान लिया है और सरकार से 14 बिंदुओं पर रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार बजट का 6% शिक्षा पर खर्च करती है, फिर भी स्कूलों की हालत दयनीय है।
शिक्षा मंत्री की प्रतिक्रिया और बचाव
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने एक वायरल इंटरव्यू में कहा कि “पिछली बार ₹80 करोड़ दिए थे, इस बार ₹175 करोड़ और 2,000 स्कूल चिन्हित किए गए हैं। लेकिन यह घर का काम नहीं कि जेब से पैसा निकाल कर आधी रात को शुरू कर दें।”
पिछले हफ्ते राजस्थान के झालावाड़ जिले में एक सरकारी स्कूल की इमारत का हिस्सा गिरने से सात बच्चों की मौत हो गई और कम से कम 21 घायल हो गए। फाइल फोटो में एक बच्चे का अंतिम संस्कार किया जा रहा है | पीटीआई
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फिर भी बच्चों की जान जा रही है
छात्रों ने बताया कि उन्होंने छत से गिरते कंकड़ों की सूचना दी थी, फिर भी उन्हें उसी कमरे में बैठाया गया। यह लापरवाही PUCL अध्यक्ष भंवर मेघवंशी के अनुसार राज्य सरकार की असफलता को दर्शाती है।
गहराते सवाल: क्या स्कूल वोटबैंक नहीं हैं?
कोटा (शिक्षा मंत्री का गृह ज़िला): स्कूल की छत से गिरे पलस्तर से दो बच्चे घायल
मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में स्कूल की जर्जर इमारत का वीडियो वायरल
मूलभूत संरचना की उपेक्षा और भ्रष्टाचार पर विशेषज्ञों की चिंता
MLA फंड का 20% स्कूलों पर खर्च करने का निर्देश अस्पष्ट
आदिवासी बच्चों की उपेक्षा
UDISE के 2023-24 के आंकड़ों के मुताबिक, झालावाड़ के उस स्कूल में 94 में से 78 बच्चे आदिवासी समुदाय से हैं। शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार की प्राथमिकता में आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा नहीं है।
यह रिपोर्ट राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था में गहराई से जड़ जमाए ढांचे, जवाबदेही की कमी और संवेदनहीनता की पोल खोलती है, जिसमें सबसे अधिक कीमत उन बच्चों को चुकानी पड़ रही है जो न वोट देते हैं, न विरोध कर सकते हैं।
क्या शिक्षा का साम्प्रदायिकरण राजस्थान सरकार की प्राथमिकता बन गई है?
विशेषज्ञों का कहना है कि राजस्थान में भाजपा सरकार, खासकर शिक्षा मंत्री मदन दिलावर, शैक्षणिक गुणवत्ता सुधारने के बजाय शिक्षा संस्थानों का साम्प्रदायिकरण करने में जुटी है।
प्रतिगामी सोच और विवादों की आदत
RSS पृष्ठभूमि से जुड़े दिलावर लगातार विवादों में रहे हैं:
जनवरी 2024 में बारां ज़िले में गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान एक शिक्षिका ने सरस्वती पूजन से इनकार किया तो उन्हें निलंबित कर दिया गया।
शिक्षकों के पहनावे को लेकर टिप्पणी करते हुए ‘उचित कपड़े पहनने’ की सलाह दी।
स्कूलों में सूर्य नमस्कार अनिवार्य किया, जिससे मुस्लिम संगठनों ने विरोध दर्ज कराया।
मुग़ल सम्राट अकबर को “लुटेरा और बलात्कारी” कहा, और पाठ्यक्रम से हटाने की मांग की।
‘आज़ादी के बाद का स्वर्णिम भारत’ नामक कक्षा 12वीं की इतिहास पुस्तक पर प्रतिबंध लगाया, यह कहते हुए कि इसमें कांग्रेस नेताओं का महिमामंडन है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का ज़िक्र नहीं।
यह किताब 2025-26 सत्र के लिए पहले ही 4.90 लाख प्रतियों में छप चुकी थी, फिर भी वापस ले ली गई।
संरचना की अनदेखी, शिक्षकों पर गाज
PUCL अध्यक्ष भंवर मेघवंशी कहते हैं, “शिक्षा मंत्री का एकमात्र एजेंडा शिक्षा का साम्प्रदायिकरण रहा है। बुनियादी ढांचे, संसाधनों और गुणवत्ता की ओर उनका कोई ध्यान नहीं। अगर सही निगरानी और जवाबदेही होती, तो झालावाड़ जैसी त्रासदी रोकी जा सकती थी।”
“अगर मंत्री को सच में नैतिक जिम्मेदारी महसूस होती, तो वे खुद मुख्यमंत्री को इस्तीफा भेज देते। लेकिन ऐसा नहीं होगा, क्योंकि मुख्यमंत्री उन्हें हटाने नहीं जा रहे।”
“गाज हमेशा शिक्षकों पर गिरती है, नेताओं और अफसरों पर नहीं।”
यह पूरा घटनाक्रम यह दर्शाता है कि कैसे शिक्षा मंत्री की प्राथमिकता में शिक्षा की गुणवत्ता और बच्चों की सुरक्षा नहीं, बल्कि वैचारिक नियंत्रण और प्रतीकात्मक कार्रवाइयाँ हैं, जिसकी कीमत नौनिहालों को अपनी जान से चुकानी पड़ रही है।