तेजस्वी यादव के भरोसेमंद या परिवार के लिए चुनौती? कौन हैं संजय यादव
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तेजस्वी यादव के भरोसेमंद या परिवार के लिए चुनौती? कौन हैं संजय यादव

लालू परिवार में संजय यादव की बढ़ती भूमिका से पार्टी और परिवार में नाराजगी है। तेजस्वी यादव के राजनीतिक फैसलों में उनकी राय को अहम माना जाता है।


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बिहार में विधानसभा के लिए चुनावी तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है। लेकिन जमीन पर सियासी दल एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। अपने अपने गठबंधन की जीत के दावे भी किए जा रहे हैं। महागठबंधन के मुताबिक बदलाव की बयार में नीतीश कुमार सत्ता से विदा हो जाएंगे। लेकिन महागठबंधन के घटक दल आरजेडी में पारिवारिक कलह खुल कर सामने आ चुकी है। पहले तेज प्रताप यादव को ना सिर्फ पार्टी बल्कि परिवार से लालू प्रसाद यादव ने बेदखल किया। बल्कि अब उनकी सबसे प्यारी बेटी रोहिणी आचार्य ने बगावती सुर अख्तियार कर लिए हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर परिवार समेत कई बड़े चेहरों को अनफॉलो किया। अब सवाल यह है कि लालू परिवार में भूकंप क्यों आया। इसके पीछे बिहार के सियासी गलियारे में एक शख्स की चर्चा होती है जिसका नाम संजय यादव है। अब भला यह शख्स कौन हैं और तेजस्वी यादव इन पर क्यों अधिक भरोसा करते हैं।

रोहिणी आचार्य ने अपने भाई तेजस्वी यादव के सबसे भरोसेमंद सहयोगी संजय यादव की बढ़ती पकड़ पर तीखी प्रतिक्रिया दी, तो यह पहला मौका नहीं था जब बिहार की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के भीतर उनके प्रभाव को लेकर सवाल उठाए गए। हालांकि, इसके बाद जो हुआ, वह बिहार के पहले परिवार में अपेक्षित नहीं था। रोहिणी को लालू द्वारा फटकार लगी, जो कथित तौर पर तेजस्वी के कहने पर उन्हें उनकी सोशल मीडिया पोस्ट का स्वर बदलने के लिए कहा गया। अगले ही दिन उनका अकाउंट प्राइवेट हो गया, लेकिन इससे पहले उन्होंने अपने पिता लालू, भाई तेजस्वी और कई अन्य लोगों को अनफॉलो कर दिया।

संजय यादव का राजनीतिक उदय

हरियाणा के महेंद्रगढ़ में पले-बढ़े संजय यादव पटना की सियासी गलियों के हलचल से दूर थे। कंप्यूटर साइंस और बिज़नेस मैनेजमेंट में पोस्ट-ग्रेजुएट संजय ने 2012 तक एक शांत कॉर्पोरेट जीवन बिताया, जब समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने उन्हें तेजस्वी यादव से मिलवाया। तेजस्वी क्रिकेटर से नेता बने, जबकि संजय टेक्नोलॉजी और राजनीति की समझ वाले युवा थे। एक संयोग से शुरू हुई यह मुलाकात अब तेजस्वी के बाद आरजेडी का सबसे चर्चित नाम बना चुकी है। वर्षों में संजय ने रणनीतिकार और आलोचकों के अनुसार गेटकीपर की भूमिका निभाई। तेजस्वी के शब्दों में, संजय उनके दर्शनशास्त्री, मार्गदर्शक और ट्यूशन टीचर हैं।

संजय की पहली बड़ी उपलब्धि 2015 के विधानसभा चुनाव के दौरान आई, जब उन्होंने लालू प्रसाद यादव को एक अखबार की कटिंग दी जिसमें RSS प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण समीक्षा का सुझाव दिया था। लालू ने इसे बड़ा मुद्दा माना और संजय का यह योगदान महागठबंधन के प्रचार हथियार में बदल गया।

तेजस्वी यादव के साथ संजय की पकड़

महागठबंधन की 2015 में जीत के बाद संजय की स्थिति और मजबूत हुई। आरजेडी के सोशल मीडिया हैंडल प्रबंधित करने, तेजस्वी की यात्राओं का स्क्रिप्ट बनाने और 'MY BAAP' जैसे नारे तैयार करने से लेकर, राज्यसभा तक पहुंचे और तेजस्वी के राजनीतिक दृष्टि और निर्णयों का अहम हिस्सा बन गए।

2015 में आरजेडी की सामाजिक पहुंच बढ़ाने के लिए संजय ने तेजस्वी को अधिक उच्च जाति के उम्मीदवार उतारने की सलाह दी। 2020 में बेरोजगारी पर आधारित अभियान और युवाओं के लिए बदलावकारी नेता के रूप में तेजस्वी की छवि तैयार करना भी उनके विचार थे। 10 लाख नौकरियों का वादा भी संजय का ही दिमागी उत्पाद था।

परिवार और पार्टी में विरोध

जब रोहिणी आचार्य ने तेजस्वी की यात्रा बस में सामने की सीट पर संजय के बैठने पर आपत्ति जताई, तो उन्होंने तेजस्वी और लालू को अनफॉलो कर दिया और स्वाभिमान की तरफ इशारा करने वाले पोस्ट शेयर किए। तेज प्रताप यादव, जो इस वर्ष परिवार और पार्टी से अलग हुए, ने भी संजय को पार्टी का जयचंद कहा और तेजस्वी यादव के पक्ष में उनके खिलाफ साजिश का आरोप लगाया।

संजय यादव को राज्यसभा में पार्टी के वरिष्ठ नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी से पहले चुनने पर भी परिवार के कई सदस्य विरोध कर चुके हैं। पार्टी में वरिष्ठ नेता शिकायत करते हैं कि संजय ने उन्हें तेजस्वी से अलग कर दिया और उम्मीदवारों की सूची जैसी महत्वपूर्ण चीजें उनके कंट्रोल में हैं।

संजय की भूमिका: गेटकीपर या स्ट्रैटेजिस्ट?

कुछ लोग संजय को सीमा पार करने वाला मानते हैं, जबकि समर्थक उन्हें आरजेडी के अभियान को पेशेवर बनाने और सोशल मीडिया रणनीति में धार देने वाला मानते हैं। 2020 में जब तेजस्वी ने बिहार चुनाव को नौकरियों पर रेफरेंडम में बदल दिया, तो इसके पीछे भी संजय की रणनीतिक समझ देखी गईं।

एक रिपोर्ट में संजय को तेजस्वी का 'प्रशांत किशोर' कहा गया है। समर्थकों के लिए, संजय की वजह से आरजेडी 21वीं सदी की पार्टी लगती है। आलोचकों के अनुसार, वे गेटकीपर हैं जिन्होंने नेता को पार्टी से और परिवार से दूर कर दिया।

संजय यादव की तेजी से बढ़ती भूमिका ने बिहार की आरजेडी और लालू परिवार के भीतर राजनीतिक समीकरण को नया आकार दिया है। परिवार के भीतर नाराजगी और पार्टी में व्याप्त असंतोष इस बात का संकेत हैं कि संजय यादव अब केवल तेजस्वी यादव के रणनीतिकार ही नहीं, बल्कि आरजेडी के भीतर शक्ति का केंद्रीय गेटकीपर बन चुके हैं।

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