अब सियासी अवतार में PK, क्या जाति की जकड़न से बिहार होगा मुक्त?
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अब सियासी अवतार में PK, क्या जाति की जकड़न से बिहार होगा मुक्त?

2 अक्टूबर को प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी का ऐलान कर दिया। उनका कहना है कि बिहार की दशा और दिशा बदलने के लिए जाति के मकड़जाल से बाहर निकलना होगा।


Prashant Kishor Entry In Bihar Politics: हाथ में पीले रंग का झंडा, नंगे पांव में दौड़ते हुए ये बच्चे मन में उत्साह का भाव और बेहतर भविष्य की कल्पना, जीवन की मुश्किलों को झेलती हुई इस मां के गोद में बच्चा, जीवन के कई बसंत देख चुकीं ये बूढ़ी दादी, बिहार में कुछ बदलने वाला है। ढाई साल पहले एक शख्स जिसे देश और दुनिया प्रशांत किशोर, पीके और राजनीति के चाणक्य के नाम से जानती है। वो हाथ में बदलाव की मशाल लिए गांव गांव गली गली लोगों से रूबरू होता है और बस एक ही बात कि बिहार की सरकार में कुछ खास लोगों या यूं कहें कि एक परिवार ही क्यों काबिज रहा है। वो ये कहता है कि शिक्षा ही वो हथियार है जो आपकी ताकत है आप अपने सपने को साकार कर सकते हैं। लेकिन जाति के बंधन को तोड़ना होगा। अब इस जाति में आप के दो अक्षर और दो मात्रा नजर आ रही होगी। लेकिन यह जाति ना तो वहां के लोगों का पीछा छोड़ती और ना ही राजनीतिक दल उससे पीछा छुड़ा पाते हैं। लेकिन प्रशांत किशोर को यकीन है कि परिवर्तन होगा तभी तो 2 अक्टूबर को अपनी पार्टी के ऐलान के साथ कहा कि अब आप ही लोग बताएं कि क्या करना है।


जाति तो कर्नाटक और गुजरात में भी

प्रशांत किशोर यानी पीके ने कहा कि अगर आप लोगों को पार्टी का नाम पसंद नहीं है तो बदल देंगे। दरअसल वो यह संदेश दे रहे थे कि मंच पर आप को कुछ लोग बैठे नजर आ रहे होंगे। लेकिन असली ताकत तो आप लोग हैं। जन सुराज पार्टी गठन के बाद उन्होंने पार्टी की कमान मनोज भारती को सौंपी है। प्रशांत किशोर कहते हैं कि यह तो भारत की राजनीति की सच्चाई है कि आप जाति से खुद को अलग कर ही नहीं सकते। ऐसा नहीं है कि जाति की जाल में सिर्फ बिहार जकड़ा है. कर्नाटक और गुजरात में भी जाति है लेकिन वो राज्य तो अगड़े हैं. यही तो सवाल है कि आप लोग पिछड़े क्यों हैं। लालू यादव और उनका परिवार खुद को अति पिछड़ा बताता है। लेकिन जिस परिवार में सीएम, डिप्टी सीएम, सांसद और मंत्री रहा हो वो कहां से अति पिछड़ा हो गया। नीतीश जी जो सुशासन के दावे करते हैं आखिर वो कहां से पिछड़ा हो गए। सच्चाई यही है कि इस जात पात को आप लोग ही मिटा सकते हैं। अब जब वो इस तरह से बिहार की जाति व्यवस्था पर प्रहार कर रहे थे लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य भी चुप नहीं रहीं।



रोहिणी ने ढूंढी पीके जाति
रोहिणी आचार्य ने ट्वीट कर कहा कि भाजपा के बिना हवा वाले टायर प्रशांत कुमार पांडेय के गुर्गों - गुंडों ने भाड़े पर बरगला कर लाए गए लोगों के सहारे आयोजित अपनी रैली में महिला पत्रकार के साथ बदसलूकी - छेड़खानी कर अपने भाजपाई आकाओं की कुसंस्कृति व् आचरण का मुजाहिरा कर अपनी असलियत बता दी .. ऐसे लोगों के मुँह पर तमाचा मारेगी बिहार की जनता .. यानी कि रोहिणी आचार्य ने पीके की जाति ढूंढ ली। जाति के मुद्दे पर पीके कहते हैं कि अब हमारी पार्टी के अध्यक्ष दलित समाज से हैं लेकिन वो पढ़े लिखे हैं उन्हें यकीन है कि वो एक योग्य व्यक्ति है लिहाजा पार्टी ने इतनी बड़ी जिम्मेदारी देने का फैसला किया। उनके लिए जाति का मतलब सिर्फ गरीबी, अशिक्षा और कुशासन है। वो बिहार की बेहतरी का सपना देखते हैं लेकिन उनकी कोशिश है कि भागीदारी सबकी हो। अब यहां सवाल यह है कि लोगों के बीच तकरीर करना, उनमें जोश भरना अलग विषय है और चुनावी राजनीति में जहां फैसला ईवीएम से होना है, वहां तक पहुंच अगर कमजोर रही तो क्या ये तकरीरें कामयाब हो पाएंगी।

बिहार की जाति पर नजर
इस विषय को आप ऐसे समझ सकते हैं. बिहार में जाति के आंकड़े को देखें तो अति पिछड़ा वर्ग और अन्य पिछड़ा वर्ग की संख्या सबसे अधिक है. ईबीसी 36 फीसद, ओबीसी 27 फीसद, अनुसूचित जाति 19 फीसद, अनुसूचित जनजाति करीब 2 फीसद, सामान्य वर्ग करीब साढ़े 15 फीसद। ओबीसी में सबसे प्रभावशाली समाज यादव है जिनकी आबादी 14 फीसद। प्रशांत किशोर ब्राह्मण समाज से आते हैं जिसकी आबादी करीब चार फीसद। मुस्लिम आबादी करीब साढ़े 17 फीसद है। यानी कि किसी भी दल को कामयाब होने के लिए इन सभी समाजों में आपकी पहुंच होनी चाहिए।

यह बात सच है कि बिहार के लोग अच्छी तरह से अपनी बदहाली की वजह समझते हैं लेकिन यह बात भी सच है कि लालू यादव में उन्हें सामाजिक न्याय नजर आता है। नीतीश कुमार में आधी आबादी को सुकून नजर आता है कि शराबबंदी की वजह से तस्वीर कुछ बदली है। यानी कि सैद्धांतिक तौर पर आप आदर्श स्थिति वाली बात तो कर सकते हैं। लेकिन व्यवहार में तालमेल होना चाहिए। इन आंकड़ों को बताने का मकसद सिर्फ इतना है पटना की गद्दी पर विराजने के लिए जाति की गणित कितनी अहमियत रखती है। यह बात सच है कि गरीबी के दंश से कोई भी समाज बाहर नहीं है। लेकिन ईवीएम पर जब वो बटन दबाता है तो उसे अपनी जाति वाला नेता नजर आता है।

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