मौनी अमावस्या,1954 का कुंभ और 800 की मौत, भगदड़ के पीछे क्या होती है वजह?
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मौनी अमावस्या,1954 का कुंभ और 800 की मौत, भगदड़ के पीछे क्या होती है वजह?

प्रयागराज महाकुंभ 2025 भगदड़ से 71 साल पहले 1954 कुंभ की याद आती है जिसमें 800 श्रद्धालु काल के गाल में समा गए थे।


Mahakumbh Stampede: 144 साल बाद 2025 के महाकुंभ को पूर्ण महाकुंभ भी कहा जा रहा है। लेकिन गुरुवार की रात कुछ परिवारों के लिए और काली हो गई। बताया जा रहा है कि संगम नोज के करीब भगदड़ कुछ लोग काल के गाल में समा गए हैं हालांकि सरकारी तौर पर पुष्टि नहीं है। घायलों का इलाज अस्पतालों में चल रहा है जिनमें कुछ की हालत गंभीर बनी हुई है। इस भगदड़ के पीछे पुख्ता जानकारी अभी सामने नहीं है, हालांकि अलग अलग वजह सामने आ रही है। मसलन आने जाने का रास्ता एक था। बैरिकेडिंग के टूटने से भगदड़ मची। कुछ लोगों का कहना है कि रास्ते में कुछ लोग लेटे हुए थे। कुछ श्रद्धालु उनसे टकरा कर गिर गए और पीछे से आ रही भीड़ एक दूसरे को रौंदते हुए आगे बढ़ती रही है। लेकिन यहां हम 71 साल पहले 1954 के कुंभ की करेंगे।

1954 प्रयागराज कुंभ में भगदड़

देश को आजादी मिले हुए सात साल बीत चुके थे। 1954 के कुंभ में पूरा देश इलाहाबाद(अब प्रयागराज) में उमड़ा था। तारीख तीन फरवरी सुबह का वक्त और मौनी अमावस्या का दिन। लाखों की संख्या में लोग स्नान करने की तैयारी में थे। कुछ अफवाह फैलने की वजह से भगदड़ मची। करीब 45 मिनट तक अफरातफारी का माहौल। किसी को कुछ नहीं समझ में आ रहा था कि क्या हुआ है। 45 मिनट के बाद बड़ी संख्या में गंगा की रेती पर मृत पाए गए। आधिकारिक तौर पर मरने वालों का आंकड़ा 800 था। हालांकि गैरसरकारी आंकड़ों में एक हजार से अधिक लोग मारे गए।

तब क्या हुआ था

2 फरवरी-3 फरवरी की रात गंगा नदी में पानी बढ़ गया था। साधु संतों की कुटियों तक पानी आ गया। लोग घबरा गए, भगदड़ मची और लोग मारे गए।

कुंभ में भगदड़

  • प्रयागराज कुंभ 1954- 800 लोगों की मौत
  • उज्जैन कुंभ 1992- 50 की मौत
  • नासिक कुंभ 2003- 39 की मौत
  • हरिद्वार कुंभ 2010- 7 मरे
  • प्रयागराज कुंभ 2013- 36 की मौत

1954 के भगदड़ की वजह

  • 3 फरवरी 1954 को शाही स्नान के दौरान अफवाह फैली कि पीएम हेलिकॉप्टर से आ रहे हैं, उसे देखने के लिए लोग भागने लगे और भगदड़ मच गई। जबकि हकीकत में जवाहर लाल नेहरू एक दिन पहले ही स्नान कर चुके थे।
  • आजादी के बाद यह पहला कुंभ था। स्नान क्षेत्र में वीवीआईपी का तांता था जो भगदड़ की वजह बना।
  • गंगा, रास्ता बदलने के लिए जानी जाती हैं। गंगा ने अपना मार्ग बदला। नदी, तटबंध और शहर के करीब आ गई थीं। अस्थाई कुंभ के लिए जगह की कमी पड़ी। जिसकी वजह से भीड़ के लिए जगह कम थी। वैसी सूरत में भीड़ नागाओं और अखाड़ों से जा टकराई और हालात बेकाबू हो गए।

1954 में समिति ने दिए थे सुझाव

1954 के कुंभ में जवाहर लाल नेहरू ने भी स्नान किया था। लेकिन मौनी अमावस्या से ठीक एक दिन पहले। व्यवस्था को देख वो संतु्ष्ट भी हुए थे। हालांकि हादसे के बाद जस्टिस कमलाकांत वर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई। कमेटी ने सुझाव दिया था कि वीवीआईपी लोगों को पर्व वाले दिन स्नान के लिए नहीं आना चाहिए। उस घटना के बाद बरसों तक अप्रिय घटना नहीं हुई।

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