सरकारी ज़मीन सौदे पर सियासी बवाल, फडणवीस बोले – किसी को नहीं छोड़ेंगे
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सरकारी ज़मीन सौदे पर सियासी बवाल, फडणवीस बोले – किसी को नहीं छोड़ेंगे

पुणे की सरकारी ज़मीन के सौदे पर महाराष्ट्र में राजनीतिक बवाल। अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार की कंपनी पर आरोप, CM फडणवीस बोले – कोई नहीं बचेगा।


पुणे के मुंधवा इलाके में सरकारी ज़मीन की अवैध बिक्री के आरोपों ने महाराष्ट्र की राजनीति में तूफ़ान खड़ा कर दिया है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब आरोप लगे कि महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार के बेटे पार्थ पवार की कंपनी को सरकारी ज़मीन कम कीमत पर बेची गई, जिससे सरकार को करोड़ों का नुकसान हुआ।

शनिवार (8 नवंबर) को इस मामले पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने प्रतिक्रिया दी और कहा कि यदि किसी की भी भूमिका गैरकानूनी पाई जाती है, तो “किसी को भी छोड़ा नहीं जाएगा।” हालांकि, यह भी दिलचस्प है कि दर्ज की गई एफआईआर में पार्थ पवार का नाम शामिल नहीं है।

मुख्यमंत्री फडणवीस का बयान

फडणवीस और भाजपा नेतृत्व वाली महा-यूती सरकार विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (MVA) से सवाल पूछ रही है कि जब पार्थ पवार अमाडिया एंटरप्राइजेज LLP में 99% हिस्सेदारी रखते हैं, तो पुणे ज़मीन सौदे से जुड़ी दो एफआईआर में उनका नाम क्यों नहीं है।

फडणवीस ने कहा, “जो लोग यह तक नहीं जानते कि एफआईआर क्या होती है, वही बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। एफआईआर उन्हीं के खिलाफ दर्ज होती है जो लेन-देन में प्रत्यक्ष रूप से शामिल होते हैं। इस मामले में एफआईआर कंपनी और उसके अधिकृत हस्ताक्षरकर्ताओं के खिलाफ की गई है।”

क्या है महार वतन भूमि और विवाद की जड़

विवाद की जड़ में है पुणे के मुंधवा इलाके की 40 एकड़ जमीन, जिसमें 272 छोटे-छोटे प्लॉट शामिल हैं। यह ज़मीन पहले ‘महार वतन भूमि’ कहलाती थी — यानी ऐसी ज़मीन जो महार समुदाय (अब अनुसूचित जाति) को गाँव में उनकी पारंपरिक सेवा के बदले दी जाती थी।आज़ादी के बाद इस जाति-आधारित व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया और ऐसी सभी ज़मीनों को सरकार की ‘ऑक्यूपेंसी’ (अधिभोग) भूमि घोषित कर दिया गया — जिसका अर्थ है कि इन्हें राज्य सरकार की अनुमति के बिना न तो बेचा जा सकता है और न ही हस्तांतरित।

19 मई 2025 को हुई कथित बिक्री को लेकर कहा जा रहा है कि यह बिना अनुमति और कम कीमत पर की गई थी। अजीत पवार का कहना है कि इस सौदे में कोई भुगतान नहीं हुआ और बाद में लेन-देन रद्द कर दिया गया।

कैसे शुरू हुआ विवाद

6 नवंबर को सामाजिक कार्यकर्ता दिनकर कोटकरे की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई। उन्होंने 5 जून 2025 को रजिस्ट्रेशन महानिरीक्षक (IGR) को पत्र लिखकर आरोप लगाया था कि करीब ₹21 करोड़ की स्टाम्प ड्यूटी में छूट गलत तरीके से दी गई, जिससे सरकार को भारी नुकसान हुआ।

एफआईआर में वर्तमान में सरकारी नुकसान का अनुमान ₹5.89 करोड़ लगाया गया है। जांच में पाया गया कि सरकारी रिकॉर्ड में अवैध रूप से बदलाव किया गया था, जबकि भूमि सरकार के स्वामित्व में थी।इसी आधार पर डिप्टी डिस्ट्रिक्ट रजिस्ट्रार संतोष अशोक हिंगणे ने एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद एफआईआर हुई।

किनके नाम हैं एफआईआर में

एफआईआर में पार्थ पवार का नाम नहीं है, लेकिन उनके बिजनेस पार्टनर दिग्विजय पाटिल का नाम शामिल है, जो अमाडिया एंटरप्राइजेज LLP में 1% हिस्सेदारी रखते हैं, जबकि पार्थ के पास 99% शेयर हैं।इसके अलावा, शीटल तेजवानी का नाम भी है — जो 272 मूल भूमि मालिकों की तरफ से पावर ऑफ अटॉर्नी धारक थीं।

दो सरकारी अफसरों को निलंबित किया गया है रवींद्र तारू, उप-पंजीयक, जिन पर बिना आवश्यक स्टाम्प ड्यूटी वसूले बिक्री-पत्र पंजीकृत करने का आरोप है। सूर्यकांत येवले, पुणे शहर तहसीलदार, जिन पर अवैध रूप से भूमि को निजी स्वामित्व में ट्रांसफर करने का आरोप है।

राजनीतिक असर

इस प्रकरण ने महाराष्ट्र की राजनीति को गर्मा दिया है। विपक्ष जहां भाजपा और फडणवीस सरकार पर राजनीतिक बदले की कार्रवाई का आरोप लगा रहा है, वहीं फडणवीस का कहना है कि “कानून के दायरे में सबकी जांच होगी, कोई भी दोषी बच नहीं पाएगा।” यह मामला अब सिर्फ ज़मीन विवाद नहीं रहा, बल्कि राजनीतिक नैतिकता, सत्ता के दुरुपयोग और पारदर्शिता का बड़ा मुद्दा बन चुका है।

(एजेंसी इनपुट्स के साथ)

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