पंजाब में शंभू- खनौरी बार्डर को सरकार ने कराया खाली, 13 महीने से धरने पर थे किसान
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पंजाब में शंभू- खनौरी बार्डर को सरकार ने कराया खाली, 13 महीने से धरने पर थे किसान

दिल्ली में जब किसानों का आंदोलन चल रहा था उस समय बीजेपी पर आप के नेता निशाना साधा करते थे। लेकिन 13 महीने बाद पंजाब में शंभू और खनौरी बार्डर से किसानों को जबरन हटा दिया।


Punjab Farmers Protest News: पंजाब सरकार ने राज्य की हरियाणा से लगने वाली सीमाओं पर 13 महीने से चल रहे किसान आंदोलन के खिलाफ अचानक सख्त रुख अपनाया। पंजाब पुलिस ने मुख्यमंत्री भगवंत मान के निर्देश पर कार्रवाई करते हुए संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के प्रमुख नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल, सरवन सिंह पंढेर समेत अन्य शीर्ष किसान नेताओं को हिरासत में ले लिया। इसके साथ ही शंभू और खनौरी बॉर्डर पर जारी धरना प्रदर्शन को भी हटा दिया गया।

चंडीगढ़ बैठक के तुरंत बाद कार्रवाई

केंद्र सरकार के प्रतिनिधिमंडल के साथ चंडीगढ़ में हुई बैठक के कुछ ही मिनटों बाद पुलिस ने किसान नेताओं को हिरासत में ले लिया। इसके तुरंत बाद, शंभू और खनौरी बॉर्डर पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया। देर रात तक चली कार्रवाई में पुलिस ने धरने पर बैठे किसानों को हिरासत में लेकर बसों के माध्यम से अन्यत्र भेज दिया और आंदोलन स्थल को पूरी तरह खाली करवा दिया।

शंभू और खनौरी बॉर्डर पूरी तरह खाली

पुलिस ने दोनों सीमाओं पर अस्थायी और स्थायी ढांचे हटाने के लिए बुलडोज़र का इस्तेमाल किया। इसके बाद, अमृतसर-दिल्ली हाईवे को अवरुद्ध करने वाली कंक्रीट बैरिकेडिंग को हटाने की कार्रवाई शुरू हुई। पंजाब और हरियाणा पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने जानकारी दी कि जल्द ही इन मार्गों को पूरी तरह खोल दिया जाएगा। किसान एमएसपी की कानूनी गारंटी समेत अपनी अन्य मांगों को लेकर 13 फरवरी 2024 से शंभू और खनौरी बॉर्डर पर धरने पर बैठे थे।

मान सरकार का रुख बदला क्यों?

पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, जो पहले किसान आंदोलन और केंद्र सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे थे, अब पूरी तरह से सख्त रुख अपनाते नजर आ रहे हैं। वह राज्य के गृह मंत्री भी हैं और किसानों को हिरासत में लेने का यह फैसला उन्हीं के निर्देश पर हुआ। इस कदम के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार की भारी आलोचना हो रही है। विपक्षी दलों का कहना है कि मान सरकार किसानों के साथ विश्वासघात कर रही है।

व्यापार और लुधियाना उपचुनाव की रणनीति?

AAP सरकार का दावा है कि किसानों के धरनों से राज्य के व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था, जिससे उद्योगों और व्यापारियों को भारी नुकसान हो रहा था। हाल ही में मुख्यमंत्री भगवंत मान और AAP प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने लुधियाना का दौरा किया, जहां व्यापारिक समुदाय ने आंदोलन के कारण होने वाली परेशानियों पर नाराजगी जताई थी।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि लुधियाना पश्चिम सीट पर आगामी उपचुनाव को ध्यान में रखते हुए AAP सरकार ने यह बड़ा कदम उठाया है। व्यापारिक समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए सरकार किसानों पर कार्रवाई करने के लिए मजबूर हुई।

AAP ने लिया सियासी जोखिम

हालांकि, यह रणनीति AAP के लिए एक बड़ा राजनीतिक जोखिम भी साबित हो सकती है। पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य है, जहां किसान समुदाय का समर्थन बहुत मायने रखता है। दो साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में किसानों की नाराजगी पार्टी को भारी पड़ सकती है। हालाँकि, AAP सरकार गैर-किसान मतदाताओं को यह संदेश देना चाहती है कि वह केवल किसानों के हितों की नहीं, बल्कि पूरे राज्य के विकास की चिंता कर रही है।

विपक्ष ने साधा निशाना

किसानों पर कार्रवाई के बाद विपक्षी दलों ने भगवंत मान सरकार को घेर लिया। कांग्रेस सांसद गुरजीत औजला ने इस कदम की निंदा करते हुए कहा कि किसानों के मुद्दों को हल करने के बजाय, सरकार उनका दमन कर रही है। शिरोमणि अकाली दल (SAD) की सांसद हरसिमरत कौर बादल ने भी मुख्यमंत्री भगवंत मान की आलोचना करते हुए कहा कि किसानों के साथ खड़े होने की बजाय, वह उनके आंदोलन को उखाड़ फेंकने में लगे हैं।

आगे क्या?

अब देखना यह है कि किसान संगठनों की अगली रणनीति क्या होगी और सरकार इस स्थिति को कैसे संभालेगी। क्या किसानों के विरोध को शांत किया जा सकेगा, या यह आंदोलन एक नई दिशा में आगे बढ़ेगा? यह आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।

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