पंजाब: लोकसभा चुनाव के बाद शिअद में बगावत, सुखबीर बादल से मांगा इस्तीफा
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पंजाब: लोकसभा चुनाव के बाद शिअद में बगावत, सुखबीर बादल से मांगा इस्तीफा

शिरोमणि अकाली दल मे कुछ सीनियर नेताओं ने पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है.


Shiromani Akali Dal: शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) के वरिष्ठ नेताओं के एक समूह ने पार्टी प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है, जिससे हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद पार्टी में दरार सामने आ गई है. पंजाब की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी में तब से नाराजगी बढ़ रही थी, जब से 13 लोकसभा सीटों में से 10 पर अकाली दल के उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. जबकि एक सीट पर वह विजयी हुई थी. इसके अलावा पार्टी का वोट शेयर साल 2019 के लोकसभा चुनावों में 27.45% से गिरकर 2024 में 13.42% हो गया.

चुनावी हार के बाद असंतोष

इस सप्ताह की शुरुआत में 50 से अधिक अकाली नेताओं ने जालंधर में एक बैठक की और सुखबीर बादल के नेतृत्व में 2022 के विधानसभा चुनावों और 2024 के आम चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बारे में बात की और उन्हें पार्टी प्रमुख के पद से हटाने की मांग की. इस कदम का मुकाबला करने के लिए सुखबीर बादल ने चंडीगढ़ में 96 शिअद हलका प्रभारियों (निर्वाचन क्षेत्र प्रमुखों) की एक समानांतर बैठक का नेतृत्व किया और एक वीडियो जारी कर उनके पक्ष में समर्थन प्रदर्शित किया.

वहीं, जालंधर में हुई बैठक पांच घंटे से ज़्यादा चली और इसमें प्रेम सिंह चंदूमाजरा, सिकंदर सिंह मलूका, परमिंदर सिंह ढींडसा, सुरजीत सिंह रखरा, सरवन सिंह फिल्लौर और बीबी जागीर कौर जैसे वरिष्ठ अकाली नेता शामिल हुए. इनमें से लगभग सभी नेता पिछली अकाली सरकार के दौरान अहम मंत्रालय संभाल चुके हैं. तीन दिनों के अंतराल में यह उनकी दूसरी बैठक थी. दिलचस्प बात यह है कि नेताओं ने कहा कि वे शिअद के अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल नहीं होना चाहते हैं और इसकी बजाय पार्टी को संकट से बाहर निकालने के लिए नेतृत्व करने के लिए एक पंथिक चेहरे की तलाश करेंगे. शीर्ष पद के लिए चर्चा किए गए कुछ नामों में तख्त दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह और रामपुर खेड़ा के सिख उपदेशक सेवा सिंह शामिल थे.

अकाली दल बचाओ अभियान

बैठक के बाद चंदूमाजरा ने नेताओं द्वारा पारित कुछ प्रस्तावों के बारे में जानकारी साझा की. उन्होंने कहा कि हमने 1 जुलाई को अकाल तख्त जाने और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को दी गई माफी और बेअदबी की घटनाओं में शामिल लोगों को दंडित न कर पाने की सामूहिक जिम्मेदारी लेते हुए लिखित माफीनामा प्रस्तुत करने का फैसला किया है. नेताओं ने अकाल तख्त से शिरोमणि अकाली दल बचाओ लहर शुरू करने की भी घोषणा की. उन्होंने कहा कि नए अकाली दल अध्यक्ष के नाम को अंतिम रूप देने के लिए सिख बुद्धिजीवियों को शामिल करते हुए एक समिति गठित की जाएगी.

नेताओं ने घोषणा की है कि चाहे सुखबीर बादल त्याग की भावना दिखाकर इस्तीफा दें या नहीं, एक या दो सप्ताह में नया अध्यक्ष नियुक्त कर दिया जाएगा. उन्होंने कहा कि पंजाब के लोगों का सुखबीर पर से भरोसा उठ गया है. ढींडसा ने दुख जताते हुए कहा कि हम 13 लोकसभा सीटों में से केवल एक ही जीत पाए और 10 निर्वाचन क्षेत्रों में हमारी जमानत जब्त हो गई. सम्मेलन में मौजूद पार्टी के असंतुष्टों में से एक पूर्व एसजीपीसी प्रमुख जागीर कौर ने कहा कि हमने इस बात पर विचार-विमर्श किया कि हमने अतीत में क्या खोया और क्या पाया. पार्टी कार्यकर्ता इस बात को लेकर चिंतित हैं कि हम जिस स्थिति में हैं, उससे कैसे उबरें. पार्टी प्रमुख हमारी बात नहीं सुनते या कमियों को दूर करने का प्रयास नहीं करते. दिलचस्प बात यह है कि सिर्फ जागीर कौर ही नहीं, बल्कि दिवंगत प्रकाश सिंह बादल के विश्वस्त सहयोगी सुखदेव सिंह ढींडसा, प्रेम सिंह चंदूमाजारा और सिकंदर सिंह मलूका सहित कई अन्य वरिष्ठ नेताओं ने सुखबीर बादल से पद छोड़ने को कहा है.

फिर निशाने पर सुखबीर

सुखबीर बादल को बदलने की मांग पहली बार साल 2022 में उठाई गई थी, जब इकबाल सिंह झूंडा की अध्यक्षता वाली 13 सदस्यीय झूंडा समिति ने नेतृत्व परिवर्तन, एक परिवार-एक विधायक के फॉर्मूले और पार्टी अध्यक्ष के लिए दो साल का कार्यकाल का सुझाव दिया था. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सुखबीर अपने पिता प्रकाश सिंह बादल, जो एक कद्दावर व्यक्तित्व थे और पंजाब के पांच बार मुख्यमंत्री रहे, के निधन से पैदा हुए खालीपन को भरने में असमर्थ हैं. अकाली दल के लिए एक झटका यह भी था कि खालिस्तान समर्थक नेता अमृतपाल सिंह जैसे कट्टरपंथियों ने इन आम चुनावों में दो लोकसभा सीटें जीतीं. लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के लिए टिकट बंटवारे से उपजी नाराजगी को भी जिम्मेदार ठहराया गया. ढींढसा जैसे कई वरिष्ठ पार्टी नेता पार्टी टिकट न मिलने से नाराज थे. हरसिमरत कौर बादल के भाई बिक्रम सिंह मजीठिया की इस नाराजगी और सुखबीर बादल के बहनोई आदेश प्रताप सिंह कैरों के निष्कासन पर चुप्पी भी परिवार के भीतर असंतोष को दर्शाती है. ऐसे में पार्टी प्रमुख के लिए अपने परिवार को एकजुट रखना एक बड़ी चुनौती होगी.

बादल परिवार ने 'ऑपरेशन लोटस' का लगाया आरोप

दूसरी ओर सुखबीर बादल के नेतृत्व वाली पार्टी की कार्यसमिति ने विद्रोहियों के इस कदम को पंजाब में शांति और सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने के उद्देश्य से एक खतरनाक साजिश करार दिया, जिसका उद्देश्य सिखों पर इसका दोष मढ़ना है. शिरोमणि अकाली दल कार्यसमिति पार्टी अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में पूर्ण विश्वास रखती है और विरोधियों से पंथ के दुश्मनों के हाथों में न खेलने का आग्रह करती है. समिति अध्यक्ष से पार्टी, पंथ और पंजाब के खिलाफ साजिशों को उजागर करने के प्रयासों का नेतृत्व करने के लिए कहती है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कार्यसमिति ने पंथ और पंजाबियों को चेतावनी दी और जोर देकर कहा कि लोगों की प्रगति और समृद्धि के लिए शांति आवश्यक है. इस बीच सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल ने अकाली दल में बगावत को लेकर भाजपा पर निशाना साधा. दिल्ली में संसद के बाहर मीडिया से बात करते हुए बठिंडा से नवनिर्वाचित सांसद ने कहा कि भाजपा अपने गुर्गों का उपयोग करके अकाली दल को अस्थिर करने और तोड़ने की कोशिश कर रही है. बाद में उन्होंने एक्स पर एक संदेश पोस्ट किया, साथ ही दिल्ली में मीडिया से बात करते हुए एक वीडियो भी पोस्ट किया, जिसमें दावा किया गया कि अकाली दल के सभी कार्यकर्ता, जिनमें 117 निर्वाचन क्षेत्रों के 112 प्रमुख और सभी जिला अध्यक्ष शामिल हैं, ने सुखबीर बादल के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त किया है. उन्होंने कहा कि भाजपा की योजना के अनुसार केवल पांच नेता पार्टी के हितों के खिलाफ काम कर रहे हैं. भाजपा हमारी पार्टी को तोड़ना चाहती है. जैसा कि उन्होंने महाराष्ट्र में अन्य पार्टियों के साथ किया था. उनके नापाक मंसूबे सफल नहीं होंगे.

शिअद का इतिहास

यह पहली बार नहीं है जब शिरोमणि अकाली दल में विभाजन की स्थिति बनी है. पार्टी में विभाजन और विलय का लंबा इतिहास रहा है. अकाली दल के दिग्गज नेता और सबसे लंबे समय तक एसजीपीसी के अध्यक्ष रहे गुरचरण सिंह टोहरा ने पार्टी से निकाले जाने के बाद प्रकाश सिंह बादल से अलग होकर सर्व हिंद अकाली दल का गठन किया. हालांकि, बाद में दोनों दिग्गजों के बीच सुलह हो गई और टोहरा साल 2003 में पार्टी में वापस आ गए. साल 2004 में सुरजीत कौर बरनाला ने शिरोमणि अकाली दल (लोंगोवाल) की शुरुआत की. प्रेम सिंह चंदूमाजरा शिरोमणि अकाली दल (बादल) द्वारा टिकट न दिए जाने के बाद इस अलग हुए समूह में शामिल हो गए. बाद में वे साल 2007 में शिरोमणि अकाली दल में वापस आ गए, जिससे पार्टी के शिरोमणि अकाली दल में विलय का रास्ता साफ हो गया. बाद में, स्वर्गीय रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, रतन सिंह अजनाला और सेवा सिंह सेखवां जैसे वरिष्ठ नेताओं ने 12 नवंबर 2018 को पार्टी से निष्कासित होने के बाद शिरोमणि अकाली दल (टकसाली) का गठन किया. प्रकाश सिंह बादल के एक अन्य करीबी सुखदेव सिंह ढींडसा और उनके बेटे परमिंदर सिंह ढींडसा ने साल 2020 में शिरोमणि अकाली दल (डेमोक्रेटिक) की स्थापना की. ढींडसा बादल से नाराज थे और उन पर पार्टी को बर्बाद करने का आरोप लगाया था. इसके बाद ढींडसा और ब्रह्मपुरा ने साल 2020 में अपनी-अपनी पार्टियों का विलय करके शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) का गठन किया. शिअद संयुक्त का आखिरकार 5 मार्च 2024 को अकाली दल में विलय हो गया.

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