
यूपी में जाति- पार्क की राजनीति, बसपा, सपा और बीजेपी कोई नहीं है पीछे?
लखनऊ में योगी आदित्यनाथ सरकार राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल का तोहफा देने जा रही है। इस पार्क में जनसंघ के कद्दावर नेताओं को जगह मिली है।
Rashtra Prerna Sthal Park देश के सबसे बड़े सूबे में से एक उत्तर प्रदेश में बीजेपी(BJP) पिछले आठ साल से काबिज है। अपनी कामयाबी को जनता की जीत बताने के साथ पार्टी में लोगों का भरोसा बताती है। बीजेपी के नेता कहते हैं कि हम किसी खास समाज की हिमायत नहीं करते बल्कि सबके बारे में सोचते हैं। यह बात अलग है कि समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के नेता कहते हैं कि मुख्यमंत्री के स्वजातीय लोगों का बोलबाला है। सीधे तौर पर कहें तो ठाकुरों (Thakur Community in Uttar Pradesh) का बोलबाला। अब ठाकुरों का लाग अलाप कर समाजवादी पार्टी, कांग्रेस और बीएसपी के नेता कहते हैं कि जो ब्राह्मण समाज लगातार बीजेपी को सत्ता तक पहुंचाने का काम किया है। उसे बीजेपी के लोग भूला रहे हैं।
यह बात अलग है कि बीजेपी के नेता इस तरह के आरोपों को नकारते हुए कहते हैं यह सब विरोधियों की निराशा है। लेकिन जब लखनऊ में सहभोज कार्यक्रम में ब्राह्मण विधायक शामिल हुए तो यह संदेश जाने लगा कि बात इतनी सीधी नहीं है। बता दें कि इससे पहले लखनऊ में ठाकुर विधायकों की भी बैठक हुई थी। इन सबके बीच लखनऊ में राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल का लोकार्पण करेंगे जिसे जनसंघ के संस्थापक और संस्थापक सदस्य रहे तीन ब्राह्मण नेताओं को समर्पित किया गया है।
राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल में जनसंघ के जिन तीन बड़े चेहरों डॉ श्याम प्रसाद मुखर्जी (Shyama Prasad Mukherjee,), पंडित दीन दयाल उपाध्याय (Deen Dayal Upadhyaya,) और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) को समर्पित किया है, क्या उसके जरिए यूपी के ब्राह्मण समाज को साधने की कोशिश की जा रही है। क्या बीजेपी का आलाकमान उस नाराजगी को कम करने की कोशिश कर रही है जिसके जरिए विरोधी दल ब्राह्मण समाज को अपने खेमे में लाने की कोशिश कर रहे हैं। इसके पीछे के आधार को हम समझने की कोशिश करेंगे। अगर आप याद करें तो लखनऊ के गोमती नगर इलाके में 76 एकड़ में मुलायम सिंह यादव ने डॉ राम मनोहर लोहिया पार्क (Ram Manohar Lohia Park) और अखिलेश यादव की सरकार ने 376 एकड़ में जनेश्वर मिश्र (Janeswar Mishra Park) पार्क बनाया था। इसी तरह बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने गोमती नदी के किनारे ही 108 एकड़ में अंबेडकर पार्क बनाया था। आशियाना में 86 एकड़ में कांशीराम स्मृति उपवन और 50 एकड़ में रमाबाई अंबेडकर पार्क बनवाया था।
क्या है राष्ट्र प्रेरणा स्थल की कहानी
यूपी की सियासत में बीजेपी के लिए साल 2017 बेहद खास है। करीब 25 साल के वनवास को खत्म कर पार्टी को शासन सत्ता का सुख मिला। जीत वाले वर्ष यानी 2017 में राष्ट्र प्रेरणा स्थल बनने की योजना बनी। बीजेपी के नेतृत्व की सोच थी कि लखनऊ में जनसंघ के कद्दावर नेताओं की याद में पार्क बनाए जाने की जरूरत है। यूपी सरकार में मंत्री स्वतंत्र देव सिंह के मुताबिक पहले योजना अटल बिहारी वाजपेयी जी कर्मभूमि पर उनकी याद में पार्क बनाए जाने की थी। लेकिन बीजेपी शीर्ष नेतृत्व ने इसे विस्तार देते हुए जनसंघ के उन चेहरों को शामिल करने पर हामी दी जिनके अथक प्रयास की वजह से बीजेपी के लिए सरकार में आने की नींव तैयार हुई थी और उस दिशा में आगे बढ़ते हुए जनसंघ के कद्दावर चेहरों को शामिल किया गया। अगर इस पार्क की खासियत की बात करें तो 12 हजार वर्ग मीटर में फैलाव, मूर्तियों की ऊंचाई 63 फुट, एक स्टेज 3700 वर्ग मीटर, दूसरा स्टेज 1 हजार वर्ग मीटर और तीसरी स्टेज 600 वर्ग मीटर है।
यूपी में ब्राह्नणों की शक्ति
जनसंख्या करीब 2.5 करोड़
18 से अधिक लोकसभा और 90 से अधिक विधानसभा में असर
लोकसभा में सांसदों की संख्या-10
राज्यसभा में सांसदों की संख्या- 4
1950 से अब तक कुल पांच ब्राह्मण सीएम, गोविंद बल्लभ पंत, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी, श्रीपति मिश्रा
अगर बीजेपी यूपी अध्यक्ष की बात करें तो 1980 से लेकर संख्या 6 है। कलराज मिश्र, माधव प्रसाद त्रिपाठी, केसरीनाथ त्रिपाठी, डॉ रमापति राम त्रिपाठी, लक्ष्मीकांत वाजपेयी और डॉ महेंद्र नाथ पांडे।
अगर बात समाजवादी पार्टी की करें तो जनेश्वर मिश्र, राजराम पांडे, माता प्रसाद पांडे, शिवाकांत ओझा, पवन पांडे, संतोष पांडे बड़े नाम हैं।
ब्राह्मणों को साधने की कवायद कैसे
इसके लिए आप साल 2007 को याद करना होगा। सूबे में बीएसपी प्रमुख मायावती वैसे तो कई दफा सीएम रहीं लेकिन किसी ना किसी दल की मदद लेनी पड़ी। लेकिन साल 2007 में जब वो बहुजन की जगह सर्वजन के नारे के साथ उतरीं तो तस्वीर बदल गई। वैसे तो सर्वजन के नारे में सभी समाज के समावेश की बात थी। लेकिन जमीनी स्तर पर ब्राह्मण भाइचारा सम्मेलन पर जोर दिया गया और उसका फायदा यह हुआ कि बीएसपी अपने दम पर यूपी की सत्ता पर काबिज हुई। यह अलग बात है कि 2012 आते आते उनकी इस फसल को काटने में समाजवादी पार्टी के नेता कामयाब हुए। हालांकि सपा के लिए यह राजनीतिक हथियार लंबे समय तक कारगर साबित नहीं हुआ।
बीजेपी जिसे आमतौर पर अगड़ों की पार्टी माना जाता है उसे साल 2005 के बाद कोई खास कामयाबी ब्राह्मण समाज में नहीं मिली खासतौर से यूपी की राजनीतिक के संदर्भ में। लेकिन 2014 में आम चुनाव का प्रत्यक्ष प्रभाव 2017 और 2019 आम चुनाव (General Elections 2019) का प्रभाव 2022 में बीजेपी की टैली पर नजर आया। हालांकि योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली सरकार में ब्राह्नण समाज की तरफ से भी आवाज उठने लगी कि व्यावहारिक तौर पर वो हाशिए पर जा रहे हैं। उनकी पूछ नहीं रही। अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई में भी जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता है, ब्राह्नणों के काम नहीं होते। प्रशासन में दखल नहीं है। ऐसे में बीजेपी नेतृत्व को आभास हुआ कि यदि जमीनी स्तर पर काम नहीं हुआ तो 2027 में यूपी में हैट्रिक लगाने के सपने पर ग्रहण ना लग जाए।
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