तो बच सकती थी छात्रों की जान, ढाई घंटे तक सिस्टम सोया रहा
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तो बच सकती थी छात्रों की जान, ढाई घंटे तक 'सिस्टम' सोया रहा

दिल्ली के राउ आईएएस स्टडी सेंटर हादसे के बाद अब सरकारी महकमा एक्शन में है। लेकिन अगर आप पूरे घटना को देखें तो तीनों छात्रों की जान बचाई जा सकती थी।


Delhi Coaching Incident: श्रेया यादव, तान्या सोनी, नेविन डॉल्विन अब इस दुनिया में नहीं है। ये तीनों देश की सबसे कठिन परीक्षा आईएएस की तैयारी कर रहे थे। आईएएस की राह आसान हो इसके लिए कोचिंग संस्थान की मदद ली। लेकिन उन्हें क्या पता था कि वो सिस्टम की भेंट चढ़ जाएंगे। शनिवार की शाम दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर इलाके में बारिश होती है. जल जमाव होता है, उसका असर यह होता है कि गोली की रफ्तार की तरह पानी राउ आईएएस स्टडी सेंटर के बेसमेंट में गिरने लगता है. हादसे के समय बेसमेंट में कुल 35 छात्र बेसमेंट में बनी लाइब्रेरी में पढ़ रहे होते हैं। किसी को कुछ नहीं सुझता। बढ़ते हुई पानी को देख छात्र बाहर निकलने की कोशिश करते हैं लेकिन तीन छात्र जान गंवा देते है।

बच सकती थी छात्रों की जान
क्या इन तीनों छात्रों को जान बच सकती थी. यह एक सवाल है जिसका जवाब समझना भी जरूरी है. इस घटना के बाद सड़क पर उतरे छात्रों ने जो कुछ कहा उससे सुन आप हैरान हो जाएंगे. सिस्टम को कोसेंगे। सिस्टम को कोसने की वजह भी है। बेसमेंट में पानी भरना शनिवार की शाम करीब 6.30 बजे होता है। ठीक उसी समय छात्र दिल्ली पुलिस को जानकारी देते हैं। लेकिन बेसमेंट तक मदद पहुंचने में ढाई घंटे लग जाते हैं. यह ढाई घंटे का समय ही तीनों छात्रों के लिए काल बन जाता। पूरा सरकारी महकमा पहुंचता है. गोताखोरों को बेसमेंट में दाखिल कराया जाता है और तीन छात्रों के शव बरामद किए जाते है। अब इस घटना के बाद तरह तरह की जानकारी सामने आ रही थी. मसलन बेसमेंट में स्टोरेज की इजाजत थी। बेसमेंट में पानी के निकासी की सुविधा नहीं थी। यानी कि बेसमेंट किसी के मौत का इंतजार वर्षों से कर रहा था और वो काला दिन शनिवार 27 जुलाई के तौर पर आया।

व्यवस्था नहीं अब निशाने पर विरोधी
इस विषय पर अब सियासत भी जोरों पर है। बीजेपी जहां इसे हादसा नहीं बल्कि हत्या बता रही है. वहीं कांग्रेस और आप का कहना है कि एमसीडी में पिछले 15 साल से सरकार किसकी थी. यानी कि ब्लेम गेम का दौर जारी है। आप के विधायक दुर्गेश पाठक कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि डीसिल्टिंग नहीं हुई थी. लेकिन बहुत कुछ करना बाकी था. वो खुद व्यवस्था का रोना रोते हैं. उनके मुताबिक जितनी मशीनों की जरूरत है उतनी मिल नहीं पाती है. लेकिन सवाल यहां है कि जब सियासी दल इन मुद्दों पर ही घेरेबंदी कर खुद सत्ता में आते हैं तो नैतिक तौर पर वो इस तरह के आरोप कैसे लगा सकते हैं।

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