सिर्फ जगह और नाम  बदला दरिंदगी एक जैसी,  क्या कुछ वो अंदर की बात जानती थी
x

सिर्फ जगह और नाम बदला दरिंदगी एक जैसी, क्या कुछ वो अंदर की बात जानती थी

कोलकाता ट्रेनी डॉक्टर रेप-मर्डर केस में अभी तक सिर्फ एक ही आरोपी की गिरफ्तारी हुई है। जैसे जैसे दिन बीत रहे हैं अलग अलग तरह की जानकारी सामने आ रही है।


RG Kar Trainee Doctor Murder Case: आरजी कर अस्पताल की उम्र 138 साल। कोलकाता की शान। वैसे तो इस अस्पताल में छोटे मोटे मामले सामने आते रहे हैं। लेकिन साल 2024 के अगस्त महीने में एक ऐसी घटना घटी जो उसकी साख पर बट्टा लगा चुका है। एक ट्रेनी महिला डॉक्टर जिसके लिए आरजी कर अस्पताल का कैंपस महफूज होना चाहिए था। जिस अस्पताल प्रशासन पर उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी थी। वो अपनी जिम्मेदारी को पूरी नहीं कर सका। आरोपियों की नजर में वो डॉक्टर सिर्फ महिला नजर आई। जिसकी इज्जत के साथ खिलवाड़ करना उन्होंने अपना नैतिक कर्तव्य समझ लिया था। वो यहीं तक नहीं रुके जुल्म की सारी हदें पार कर दी। वो महिला डॉक्टर इस दुनिया में नहीं है। लेकिन देश पूरी तरह साथ खड़ा है। भारत के हर कोने से सिर्फ एक ही सवाल कि कौन है वो असली गुनहगार।

'असली दोषी अभी तक आजाद'
अब जैसे जैसे दिन गुजर रहे हैं, सनसनीखेज जानकारी सामने आ रही है। क्या उस महिला डॉक्टर के हाथ वो जानकारी लग गई थी जिसके बारे में उसे नहीं जानना चाहिए था। क्या उसे गोपनीय जानकारियों का खामियाजा जान देकर गंवानी पड़ी। क्या रेप और हत्या की योजना उसकी आवाज को दबाने के लिए की गई। ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो अब पब्लिक फोरम पर है। महिला डॉक्टर के माता-पिता और उसके सहयोगियों का संजय रॉय की गिरफ्तारी तो सिर्फ दिखाने के लिए है, वो बड़ी तालाब का छोटी मछली है। उसे तो बलि का बकरा बनाया गया है। हकीकत में जो सही मायने में दोषी हैं वो कानून के फंदे से बाहर हैं।

पुलिस ने अब तक मृतक डॉक्टर की डायरी और उसके माता-पिता से जो जानकारी जुटाई है, उससे पता चलता है कि वह पिछले कुछ हफ्तों से बहुत तनाव और काम के दबाव में थी। दूसरे साल की पीजीटी डॉक्टर होने के नाते, वह पहले ही सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक साल से ज्यादा समय बिता चुकी थी। ऐसे संस्थानों में, जूनियर डॉक्टरों के लिए लगातार 36 घंटे काम करना आम बात है। उसने डायरी में दबाव के बारे में लिखा है।

हमें संदेह है कि यह बलात्कार और हत्या का कोई साधारण मामला नहीं था या वह एक आकस्मिक शिकार थी। उसे निशाना बनाया गया था। नागरिक स्वयंसेवक को कैसे पता चला कि वह उस समय सेमिनार हॉल में अकेली थी? वह किसी बड़ी मछली द्वारा रची गई साजिश का हिस्सा हो सकता है," एक सहकर्मी ने कहा। दूसरों ने दवा "रैकेट" का संकेत दिया। "उसके विभाग में संभावित ड्रग साइफनिंग रैकेट की चर्चा है जिसे वह उजागर करने की कोशिश कर रही थी। हमारे पास इस पर संदेह करने का एक कारण है क्योंकि वह ईमानदार थी।

12 साल पहले निर्भया कांड की आई याद

यहां पर हमने नाम और जगह की बात की है। दरअसल नाम का मतलब दिल्ली के निर्भया कांड से है। करीब 12 साल पहले दिल्ली की सड़क पर फॉर्मेसी की कोर्स करने वाली निर्भया के साथ भी कुछ ऐसा ही कांड हुआ था। फर्क सिर्फ इतना था कि जगह किसी अस्पताल का सेमीनार रूम नहीं बल्कि चलती हुई बस थी। निर्भया कांड को लेकर दिल्ली में दिसंबर की सर्द रातों में जिस तरह से लोग निकल कर इंडिया गेट पर आए थे उसका असर यह हुआ कि सरकार को नियम कानून बनाने पड़े। बेटियों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए निर्भया फंड भी बना। ये बात अलग है कि निर्भया की मां कहती हैं कि कानून तो बना लेकिन जमीन पर क्या कुछ हुआ है उसे आप खुद समझ सकते हैं।

Read More
Next Story