किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफे से सामने आयीं राज्य भाजपा में गहरी दरार
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राजस्थान विधानसभा के लिए पांच महत्वपूर्ण उपचुनावों से ठीक पहले मीना का इस्तीफा आया है। 5 जुलाई को पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा ने मीना से मुलाकात की और उन्हें अपने फैसले पर पुनर्विचार करने और 10 दिनों के बाद एक और बैठक के लिए वापस आने को कहा। चूंकि पांच में से तीन उपचुनाव आदिवासी बहुल सीटों पर हैं, इसलिए अगर मीना इस्तीफा देने पर अड़े रहते हैं तो भाजपा के लिए चुनावी परीक्षा कहीं अधिक कठिन हो सकती है। | फाइल फोटो: X/@DrKirodilalBJP

किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफे से सामने आयीं राज्य भाजपा में गहरी दरार

मीणा का इस्तीफा राजस्थान भाजपा में गहरी कलह को दर्शाता है, जिसे अगर प्रभावी ढंग से नहीं संभाला गया तो जल्द ही भजन सरकार को और अधिक उथल-पुथल में डाल सकता है


मानसून ने भले ही राजस्थान को उमस भरी गर्मी से राहत दिलाई हो, लेकिन रेगिस्तानी राज्य में राजनीतिक तापमान अचानक बढ़ गया है. लोकसभा चुनाव के नतीजों के ठीक एक महीने बाद कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा के इस्तीफे ने बड़े पैमाने पर राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है. सबसे वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री का इस्तीफा राज्य सरकार के लिए एक बड़ा झटका है और इसने राजस्थान में सत्तारूढ़ भाजपा के भीतर गहरे मतभेदों को उजागर कर दिया है.

पूर्वी राजस्थान में “किरोड़ी बाबा” के नाम से मशहूर आदिवासी नेता मीना ने 4 जुलाई को अपना इस्तीफा सार्वजनिक किया, हालांकि उन्होंने दावा किया कि उन्होंने एक महीने पहले ही मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को अपना इस्तीफा सौंप दिया था. उन्होंने कहा कि वे अपने चुनावी वादे को पूरा करने के लिए इस्तीफा दे रहे हैं कि अगर भाजपा दौसा (उनके गृह गढ़) या उनके प्रभार वाली किसी भी लोकसभा सीट पर हार जाती है, तो वे मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे.

उनके इस्तीफे से जहां हंगामा मचा, वहीं मीना ने इस बात को कमतर आंकने की कोशिश की कि वे पार्टी से नाराज हैं. इसके बजाय, उन्होंने दावा किया, "मैं सीएम या संगठन से नाखुश नहीं हूं, न ही मैं कोई पद चाहता हूं. मैंने बस अपना वादा निभाया है."

अंदर क्या छुपा है?

हालांकि, मीणा यह दर्शाना चाहते हैं कि उनका इस्तीफा केवल अपने चुनावी वादे को पूरा करने के लिए है, लेकिन भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि कृषि मंत्री कई कारणों से नाराज हैं.

विधायक के रूप में अपने छठे कार्यकाल में, मीणा भाजपा के विधायक दल में वरिष्ठता में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बाद दूसरे स्थान पर हैं. ये देखते हुए कि राजे भाजपा के शीर्ष नेताओं की पसंदीदा नहीं थीं, मीना ने पिछले विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद पाने की उम्मीदें लगा रखी थीं. लेकिन उनकी उम्मीदें धराशायी हो गईं, क्योंकि भाजपा आलाकमान ने पहली बार विधायक बने भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री के रूप में चुना, जबकि मीणा को उपमुख्यमंत्री पद के लिए भी नजरअंदाज कर दिया गया.

मंत्रालय तो मिले लेकिन आधे अधूरे

कहा जाता है कि मीणा इस बात से बेहद दुखी हैं कि उनके मंत्री पद में भी कुछ महत्वपूर्ण चीजें उन्हें नहीं दी गईं. उदाहरण के लिए, उन्हें कृषि मंत्री बनाया गया था, लेकिन इस मंत्रालय के महत्वपूर्ण कृषि विपणन विंग को किसी दूसरे मंत्री को दे दिया गया. इसी तरह, उन्हें ग्रामीण विकास विभाग दिया गया, लेकिन पंचायती राज विंग को किसी और को दे दिया गया. यही वजह है कि पिछले पांच सालों में कांग्रेस शासन के सबसे आक्रामक भाजपा नेता, तेजतर्रार किरोड़ी लाल मीणा को लगा कि उनका कद कम किया जा रहा है.

अंतिम तिनका

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि आखिरकार पंचायती राज मंत्री मदन दिलावर के साथ हुई झड़प ने मीना के धैर्य को तोड़ दिया. हालांकि दोनों ही आरएसएस से जुड़े हैं, लेकिन दोनों के बीच अक्सर टकराव होता रहता है. हाल ही में, कृषि विभाग से कुछ अधिकारियों के तबादले को लेकर दोनों के बीच टकराव हुआ था, जिसे मंत्री दिलावर ने रोक दिया था - जिससे मीणा काफी नाराज हुए थे.

लोकसभा टिकट वितरण के दौरान, मीणा इस बात से और भी नाराज़ हो गए कि पार्टी के शीर्ष नेताओं ने पूर्वी राजस्थान की सीटों पर भी उनकी सलाह को नज़रअंदाज़ कर दिया. वे इस बात से नाराज़ थे कि उनके भाई जगमोहन को उनके गृह क्षेत्र दौसा से भाजपा का टिकट नहीं दिया गया. हालाँकि उनकी राय को नज़रअंदाज़ किया गया, मीणा कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें पूर्वी राजस्थान की सात सीटों पर भाजपा की जीत की ज़िम्मेदारी दी थी. मतदाताओं को लुभाने के लिए, मीणा ने घोषणा की कि अगर भाजपा इनमें से कोई भी सीट हारती है तो वे इस्तीफ़ा दे देंगे. आखिरकार, भाजपा दौसा सीट 2 लाख से ज़्यादा वोटों से हार गई और पूर्वी राजस्थान की 7 में से 4 सीटें हार गई - और जाहिर तौर पर मीना को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया.

भाजपा पर दबाव?

हालांकि, मीणा के इस्तीफे के गहरे निहितार्थ हैं. राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि पूर्वी राजस्थान में हार के लिए खुद की "नैतिक जिम्मेदारी" स्वीकार करके, मीना अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा पर लोकसभा चुनावों में अपनी हार के लिए जवाबदेही तय करने का दबाव बना रहे हैं. पार्टी को उम्मीद थी कि वह 2014 और 2019 के चुनावों की सफलताओं को दोहराएगी, जब उसने राजस्थान की सभी 25 लोकसभा सीटें जीती थीं. लेकिन सत्ता में वापस आने के बमुश्किल छह महीने बाद ही भाजपा ने 11 सीटें खो दीं - सीएम भजनलाल के गृह जिले भरतपुर सहित कई मंत्रियों के क्षेत्रों में.

गौरतलब है कि मीणा के इस्तीफे से राज्य सरकार पर दबाव बढ़ गया है, जिसने अब तक कोई खास प्रदर्शन नहीं किया है. मीणा ने हाल ही में भजन शासन के तहत कुछ संदिग्ध सौदों को उजागर किया था. मई के मध्य में सीएम भजनलाल को लिखे पत्र में मीना ने जयपुर में एक हाउसिंग प्रोजेक्ट में खामियों को उजागर किया था, जिसके बारे में उनका दावा था कि इससे राज्य सरकार को 1,146 करोड़ रुपये का नुकसान होगा. उन्होंने दावा किया कि सीएम शर्मा के अधीन सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) कैबिनेट की मंजूरी के बिना इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ा रहा है.

इसी तरह, हर घर जल योजना के तहत गांवों में बिछाई गई पाइपलाइनों की गुणवत्ता और मात्रा को लेकर भी मीना ने चिंता जताई थी. जनता के पैसे की बर्बादी और घोटाले रोकने के लिए “सख्त निगरानी” की मांग करते हुए, मीना ने चेतावनी दी थी कि “हमारी सरकार पर वही आरोप नहीं लगने चाहिए जो हमने छह महीने पहले कांग्रेस सरकार पर लगाए थे.”

गहरा विभाजन

बुनियादी तौर पर राजस्थान भाजपा में गहरी फूट है. सालों से यह पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के वफादारों और आरएसएस लॉबी के बीच बंटी हुई है. पिछले विधानसभा चुनाव जीतने के बावजूद भाजपा ने इस दरार को पाटने के लिए कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है. लोकसभा चुनाव के दौरान यह दरार इतनी गहरी थी कि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह ने शिकायत की थी कि उनके क्षेत्र के भाजपा विधायक उनके प्रचार में मदद नहीं कर रहे हैं.

लोकसभा में मिली हार ने पार्टी की अंदरूनी कलह को और बढ़ा दिया है। राज्य भाजपा द्वारा हाईकमान को भेजी गई रिपोर्ट में गुटबाजी और अंदरूनी तोड़फोड़ को राजस्थान में भाजपा की विफलता का मुख्य कारण बताया गया है. लोकसभा में मिली हार के बाद पार्टी के कई नेताओं ने अपनी हताशा जाहिर की है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दरकिनार किए जाने के बावजूद चुप रहीं.

लेकिन हाल ही में राजे ने भी अपनी निराशा व्यक्त करते हुए कहा, "वफादारी का वो दौर अलग था जब राजनीति में आगे बढ़ाने वाले का सम्मान किया जाता था. लेकिन आज लोग उसी की उंगली काटने की कोशिश करते हैं जिसने उन्हें चलना सिखाया." राजे की यह टिप्पणी राज्य के कुछ नेताओं (जैसे कि उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी) पर एक छुपे हमले की तरह है, जो कभी उनके समर्थक थे, लेकिन अब उनके आलोचक बन गए हैं। इससे राजस्थान भाजपा में व्याप्त दुश्मनी की गहराई का पता चलता है.

बढ़ता आक्रोश

बढ़ती दरार के संकेत में, भाजपा विधायकों ने राज्य विधानसभा में ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पेश करने में विपक्षी विधायकों की तुलना में अधिक आक्रामकता दिखाई है. बजट सत्र के लिए 148 ऐसे प्रस्तावों में से 80 भाजपा विधायकों द्वारा पेश किए गए हैं - ये तथ्य सत्तारूढ़ दल में बढ़ती नाराजगी को दर्शाता है. पांच भाजपा विधायकों ने 60 ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पेश किए हैं और इनमें से दो विधायक - कालीचरण सराफ और प्रताप सिंह सिंघवी - वसुंधरा राजे खेमे के जाने-माने दिग्गज हैं.

मीणा का इस्तीफा राजस्थान विधानसभा के लिए पांच महत्वपूर्ण उपचुनावों से ठीक पहले आया है. बजट सत्र के माहौल को खराब करने के अलावा, ये उपचुनावों से पहले भाजपा के लिए एक बड़ा झटका है. 5 जुलाई को पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा ने मीना से मुलाकात की और उन्हें अपने फैसले पर पुनर्विचार करने और 10 दिनों के बाद एक और बैठक के लिए वापस आने को कहा. चूंकि पांच उपचुनावों में से तीन आदिवासी बहुल सीटों पर हैं, इसलिए अगर मीणा पद छोड़ने पर अड़े रहते हैं तो भाजपा के लिए चुनावी परीक्षा कहीं अधिक कठिन हो सकती है.

संक्षेप में कहें तो, मीणा का इस्तीफा राजस्थान भाजपा में गहरी कलह को दर्शाता है. अगर प्रभावी तरीके से नहीं संभाला गया, तो ये उग्र तूफान जल्द ही भजनलाल सरकार में और भी बड़ी उथल-पुथल मचा सकता है.

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