
ट्वीट के बाद अब रोहिणी ने पिता लालू और भाई तेजस्वी को एक्स पर किया अनफॉलो
रोहिणी आचार्य ने रविवार को ही अपने एक्स अकाउंट पर एक ट्वीट करते हुए न केवल नाराज़गी जाहिर की थी, बल्कि उस ट्वीट ने ये भी दर्शा दिया कि रोहिणी भी तेज प्रताप यादव की तरह छोटे भाई तेजस्वी से नाराज है.
Clash In Lalu Clan : बिहार विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का परिवार एक बार फिर सुर्खियों में है। विपक्षी दलों के लिए जहाँ एकजुटता दिखाना बेहद ज़रूरी है, वहीं लालू परिवार में दरार की ख़बरें लगातार चर्चा का विषय बनी हुई हैं।
ताज़ा विवाद लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य के सोशल मीडिया कदम से शुरू हुआ। रोहिणी ने पार्टी, अपने पिता और छोटे भाई तेजस्वी यादव को अनफ़ॉलो कर दिया। हालांकि मामला फिलहाल शांत हो गया, लेकिन संकेत साफ़ हैं ख़ासकर तब से, जब बड़े बेटे तेज प्रताप यादव परिवार और पार्टी से दूर होते नज़र आ रहे हैं।
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि इस बार विवाद की वजह बने हैं तेजस्वी यादव के करीबी दोस्त संजय यादव। हरियाणा के रहने वाले और दिल्ली यूनिवर्सिटी से MBA करने वाले संजय पिछले एक दशक से राजद की रणनीति के ‘बैकरूम मास्टरमाइंड’ माने जाते रहे हैं। उन्होंने तब भी तेजस्वी का साथ दिया था जब लालू यादव को चारा घोटाले में सज़ा हुई थी।
बीते दस सालों में संजय यादव ने पार्टी की सीटवार और जिला-वार रणनीति से लेकर प्रवक्ताओं की नियुक्ति और सोशल मीडिया प्रबंधन तक कई अहम ज़िम्मेदारियाँ संभाली हैं। अब अचानक उन्हें राज्यसभा सीट और तेजस्वी के सबसे भरोसेमंद सहयोगी का दर्जा दे दिया गया है। पार्टी के भीतर इसकी तुलना कांग्रेस में सोनिया गांधी के सहयोगी अहमद पटेल और राहुल गांधी के करीबी केसी वेणुगोपाल से की जा रही है।
अपनों का रास नहीं आ रही तेजस्वी और संजय की करीबी
हालाँकि, यह फैसला राजद के कई नेताओं और लालू परिवार के कुछ सदस्यों को रास नहीं आया। दरअसल, तेजस्वी ने हाल ही में ऐलान किया था कि किसी भी परिवार को केवल एक सीट दी जाएगी, फिर चाहे वह उनका अपना परिवार ही क्यों न हो? वहीं खबरें हैं कि रोहिणी आचार्य इस साल सारण लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत कोई विधानसभा सीट लड़ने की तैयारी कर रही थीं।
विवाद तब और गहराया जब ‘बिहार अधिकार यात्रा’ के दौरान बस में तेजस्वी की सीट पर संजय यादव बैठे नज़र आए। इसके बाद अगले दिन तेजस्वी ने यह सीट दो दलित नेताओं को देकर मामला शांत करने की कोशिश की।
तेजस्वी समर्थकों का मानना है कि जब लालू यादव ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुना है तो उन्हें पार्टी चलाने की पूरी छूट मिलनी चाहिए। लेकिन विरोधी खेमे की शिकायतें भी कम नहीं हैं, उनका कहना है कि अब तेजस्वी न तो उनकी सुनते हैं और न ही फोन कॉल उठाते हैं।