मोहन भागवत का पश्चिम बंगाल मिशन: RSS-BJP के बीच बढ़ती दरार को ठीक करने की कवायद
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मोहन भागवत का पश्चिम बंगाल मिशन: RSS-BJP के बीच बढ़ती दरार को ठीक करने की कवायद

Mohan Bhagwat: राज्य के अपने 10 दिवसीय दौरे के दौरान आरएसएस प्रमुख से तृणमूल कांग्रेस के शुभेंदु अधिकारी जैसे दलबदलुओं और कट्टर संघ नेताओं के नेतृत्व वाले गुट के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने की उम्मीद है.


Growing rift between RSS-BJP: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पश्चिम बंगाल भाजपा (BJP) के कामकाज में और अधिक मुखर भूमिका निभाने के लिए तैयार है. क्योंकि राज्य में बीजेपी (BJP) पुराने और नए नेताओं के बीच आंतरिक युद्ध से त्रस्त है. ऐसे में खुद आरएसएस (RSS) प्रमुख मोहन भागवत 7 फरवरी से राज्य के 10 दिवसीय दौरे पर रहेंगे. इसकी एक वजह राज्य भाजपा में पार्टी में संघ (RSS) के घटते प्रभाव को लेकर असंतोष भी है.

हालांकि, संघ (RSS) का दावा है कि बंगाल में अपने प्रवास के दौरान भागवत पूरी तरह से राज्य में आरएसएस (RSS) के संगठन का विस्तार करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे. वह विभिन्न जिलों का दौरा करेंगे और प्रमुख नागरिकों और सामाजिक प्रभावशाली लोगों से बातचीत करेंगे. इसके अलावा आरएसएस (RSS) नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें करेंगे.

भागवत और बंगाल

हालांकि, भाजपा (BJP) हलकों में यह एक खुला रहस्य है कि सरसंघचालक पश्चिम बंगाल में अपने प्रवास के दौरान भाजपा (BJP) के आंतरिक कलह में मध्यस्थ की भूमिका निभाएंगे. एक असंतुष्ट भाजपा (BJP) नेता ने बताया कि हाल के इतिहास में कोई भी आरएसएस (RSS) प्रमुख राज्य में लगातार इतना समय नहीं बिता रहा है. उन्होंने कहा कि यह महज संयोग नहीं है कि भागवत ने ऐसे समय राज्य का दौरा करने का फैसला किया. जब भाजपा (BJP) संगठनात्मक समितियों के गठन और अंदरूनी कलह को सुलझाने के लिए संघर्ष कर रही है.

भाजपा में कलह

आरएसएस (RSS) प्रचारक से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष समेत भाजपा के कई पुराने नेता पार्टी में सुवेंदु अधिकारी जैसे तृणमूल के दलबदलुओं के बढ़ते प्रभाव से नाखुश हैं. अधिकारी राज्य में विपक्ष के नेता हैं. मंगलवार (21 जनवरी) को मुख्य रूप से जमीनी स्तर पर अपने संगठनों को मजबूत करने की योजना बनाने के लिए आयोजित पार्टी की महत्वपूर्ण संगठनात्मक कार्यशाला में अधिकारी की अनुपस्थिति उल्लेखनीय थी. भाजपा (BJP) के बंगाल प्रभारी सुनील बंसल और अमित मालवीय मौजूद थे.

अधिकारी बनाम मजूमदार

अधिकारी की अनुपस्थिति के बारे में पूछे जाने पर भाजपा (BJP) के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने रहस्यमयी ढंग से जवाब दिया. उन्होंने कहा कि वह (अधिकारी) कभी भी किसी संगठनात्मक बैठक में शामिल नहीं होते हैं. हमारी बैठकें घंटों चलती रहती हैं. इसलिए वे सहज महसूस नहीं करते. वे एक व्यस्त नेता हैं. अधिकारी के पास इसका स्पष्टीकरण है कि मैं विपक्ष के नेता के रूप में अपनी भूमिका से अवगत हूं. मेरे पास कोई संगठनात्मक जिम्मेदारी नहीं है. भाजपा (BJP) पर नज़र रखने वाले लोग जानते हैं कि बंगाल में इसके दो शीर्ष नेता पिछले साल संसदीय चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद से एकमत नहीं हैं. अधिकारी ने कथित तौर पर भाजपा (BJP) के केंद्रीय नेतृत्व, खासकर गृह मंत्री अमित शाह के साथ अपने तालमेल का इस्तेमाल पार्टी के टिकटों के वितरण में निर्णायक भूमिका निभाने के लिए किया. भाजपा (BJP) के अंदरूनी सूत्रों का दावा है कि 42 उम्मीदवारों में से कम से कम 30 को उन्होंने खुद चुना था.

चुनावी झटके

उनके कहने पर ही मौजूदा सांसद दिलीप घोष को मिदनापुर निर्वाचन क्षेत्र से हटाकर बर्दवान-दुर्गापुर भेजा गया था. उनकी जगह पार्टी के एक अन्य दिग्गज एसएस अहलूवालिया को लाया गया था. दुर्गापुर के सांसद को आसनसोल भेज दिया गया. यह फेरबदल महंगा साबित हुआ. क्योंकि दोनों मौजूदा सांसद अपने-अपने नए क्षेत्र से वापसी करने में विफल रहे. केशव भवन (बंगाल में आरएसएस मुख्यालय) टिकट वितरण और पार्टी में एक व्यक्ति के बढ़ते वर्चस्व से स्वाभाविक रूप से नाराज था. चुनाव प्रचार के दौरान भी यह स्पष्ट था कि संघ भाजपा (BJP) के पीछे अपनी पूरी ताकत नहीं लगा रहा था. नतीजे आने के बाद दरार और बढ़ गई, जिससे राज्य में भाजपा (BJP) की सीटें 19 से घटकर 12 रह गईं.

अध्यक्ष पद को लेकर खींचतान

भाजपा सूत्रों के अनुसार, इस खींचतान ने नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया को भी रोक दिया है. आरएसएस (RSS) में प्रशिक्षित निवर्तमान अध्यक्ष मजूमदार को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री बनाया गया है. राज्य इकाई अब एक "पूर्णकालिक" अध्यक्ष का इंतजार कर रही है. पुराने नेता, जो ज्यादातर आरएसएस (RSS) से जुड़े हैं, चाहते हैं कि उनमें से किसी एक को इस प्रतिष्ठित पद पर बिठाया जाए. सुवेंदु का खेमा शीर्ष पद के लिए अपने ही उम्मीदवार को आगे बढ़ा रहा है.

सदस्यता में हेराफेरी?

यह संघर्ष न केवल नए अध्यक्ष के चयन को प्रभावित कर रहा है, बल्कि पार्टी संगठन पर भी असर डाल रहा है. भाजपा राज्य में 1 करोड़ प्राथमिक सदस्य बनाने के अपने लक्ष्य से काफी पीछे रह गई है. अब पार्टी 25 जनवरी तक राज्य के करीब 80,000 बूथों पर समितियां बनाने के लिए संघर्ष कर रही है. एक असंतुष्ट भाजपा (BJP) नेता ने कहा कि अगर हम कम से कम 50,000 बूथों पर समितियां बना पाएं तो यह चमत्कार होगा.

मुस्लिम इलाके

अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में स्थिति और भी दयनीय है, जहां पार्टी एक भी बूथ समिति बनाने की स्थिति में नहीं है. कथित तौर पर इसी वजह से बंसल ने मंगलवार की बैठक में पार्टी नेताओं से कहा कि अल्पसंख्यक इलाकों को छोड़कर समितियां बनाने की कोशिश करें.

भाजपा (BJP) के राज्य अल्पसंख्यक मोर्चा के पूर्व उपाध्यक्ष समसुर रहमान ने कहा कि दिलीप घोष के अध्यक्ष रहते हुए हम लगभग सभी अल्पसंख्यक बहुल बूथों पर समितियां कैसे बना पाए? यह स्थिति मौजूदा राज्य नेतृत्व की अक्षमता के कारण है. रहमान ने इस महीने की शुरुआत में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को भेजे एक ईमेल में आरोप लगाया था कि मौजूदा राज्य नेतृत्व सदस्यता के आंकड़े में हेराफेरी कर रहा है और बंसल को धोखा दे रहा है.

बंगाल पर बांग्लादेश का साया

भाजपा के वैचारिक स्रोत आरएसएस (RSS) का मानना ​​है कि बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचार की हालिया घटनाओं ने बंगाल में हिंदुत्व की राजनीति के लिए अनुकूल जमीन तैयार की है और भाजपा को इससे फायदा हो सकता है.

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