वो भीड़ को उकसाता रहा और हम बेबस.. सिर्फ नाम ही सज्जन, कौन है यह शख्स
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वो भीड़ को उकसाता रहा और हम बेबस.. सिर्फ नाम ही 'सज्जन', कौन है यह शख्स

41 साल बाद ही सही न्याय मिला। यह कहना है दिल्ली स्थित सरस्वती विहार के उस पीड़ित परिवार का जो 1984 सिख विरोधी हिंसा का शिकार हुआ था। इस केस में सज्जन कुमार को उम्र कैद की सजा मिली है।


Sajjan Kumar News: यहां हम जिस शख्स का जिक्र करने जा रहे हैं उसका नाम सज्जन कुमार है। लेकिन इस नाम से आप धोखा खा सकता है। अब आपके दिल और दिमाग में सवाल उठ रहा होगा कि ऐसा क्यों। इस क्यों का जवाब समझने के लिए साल 1984 में चलना होगा। 1984 वो साल जब देश दो बड़ी घटनाओं का गवाह बना। 31 अक्तूबर 1984 को पूर्व पीएम इंदिरा गांधी (Indira Gandhi Assassination) की हत्या होती है, वहीं दो से तीन दिन बाद दिल्ली के इलाके जलने लगते है।

खासतौर से त्रिलोकपुरी,कल्यानपुरी, दिल्ली कैंट और सरस्वती विहार के इलाकों में सिखों के खिलाफ हिंसा होती है। सिखों के घर जला दिये जाते हैं, उन्हें आग के हवाले कर दिया जाता हैं। उस मंजर को पीड़ित लोग कुछ इस तरह याद करते हैं,"जैसे लगा कि हमारे समाज के सभी लोगों ने गुनाह कर दिया हो, यह बात सच है कि इंदिरा गांधी के हत्यारों का नाता सिख समाज से था। लेकिन सजा तो गुनहगारों को मिलनी चाहिए थी आम सिखों का क्या कसूर था।

सिखों के खिलाफ हिंसा में कई नाम सामने आए। लेकिन तत्कालीन सत्ता का दबाव कहें या कोई और वजह उनके खिलाफ केस दर्ज नहीं हुए। 84 दंगा के पीड़ित जब मिन्नतें कर थक गए तो उन्हें अदालत में उम्मीद की किरण दिखी। अदालत की दहलीज पर न्याय की अर्जी लेकर गुहार लगाई और उसके बाद एफआईआर दर्ज हुई। उस एफआईआर में एक नाम सज्जन कुमार का था। सज्जन कुमार (Sajjan Kumar) इस समय 80 साल के हैं और दिल्ली कैंट केस में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, वहीं सरस्वती विहार केस में भी राउज एवेन्यू कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई है। हालांकि पीड़ित पक्ष फांसी की सजा मांग रही थी। लेकिन अदालत ने सज्जन कुमार की बढ़ती उम्र देखकर अधिकतम उम्र कैद तय की।

जैसे हर घटना के दो पहलू होते हैं, ठीक वैसे ही सज्जन कुमार के समर्थक मानते हैं कि बेकसूर को सजा मिली। लेकिन दूसरा पक्ष जिसके सामने उसके परिजनों का जला दिया गया था उनका कहना है कि उम्र कैद की सजा तो बेहद कम है, उसे फांसी मिलनी चाहिए थी। इन सबके बीच सज्जन कुमार की सियासत में एंट्री कैसे हुई और वो गांधी परिवार के करीब कैसे पहुंच गए। सियासत से जुड़े लोग बताते हैं कि सज्जन कुमार, संजय गांधी के करीबी थे। साल 1977 का था, जनता पार्टी की आंधी में कांग्रेस के आम और खास सब उड़ गए थे। एक तरह से कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट उठ खड़ा हुआ था। लेकिन सज्जन कुमार ने बाहरी दिल्ली लोकसभा से दिल्ली के पूर्व सीएम ब्रह्म प्रकाश को हरा दिया था और उसकी वजह से इनकी अहमियत बढ़ गई।

पहले डेयरी का था बिजनेस

सियासत में एंट्री से पहले सज्जन कुमार डेयरी का काम किया करते थे। राजनीति में एंट्री पार्षद के साथ शुरू हुई। बाहरी दिल्ली लोकसभा से दिल्ली के सीएम रहे ब्रह्म प्रकाश को हराने के बाद राजनीति में जगह बना ली और इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के खास बन गए। इनके बारे में कहा जाता है कि दिल्ली से जुड़े फैसलों में सज्जन कुमार की भूमिका इतनी अहम थी कि किसी भी निर्णय में उनसे राय ली जाती थी। डेयरी का काम करने की वजह से इलाके में उनकी छवि दबंग की थी। सज्जन कुमार से प्रभावित होकर कांग्रेस के नेता हीरा सिंह ने एचकेएल भगत से करायी। एचकेएल भगत उनसे प्रभावित हुए और पार्षद का टिकट दिलाया। सज्जन कुमार जीत भी दर्ज करने में कामयाब रहे।इस तरह से एक एक सीढ़ी चढ़ दिल्ली की सत्ता में अपनी जगह बना ली।

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