
सलमा इंटरव्यू: ‘तमिलनाडु एक परिपक्व राज्य है, बीजेपी यहां कभी नहीं जीतेगी’
13 साल की उम्र में घर के अंदर कैद रहने से लेकर राज्यसभा में प्रवेश तक, तमिल कवयित्री और लेखिका सलमा ने अपने अतीत, महिला इच्छा पर लेखन, अपने उपन्यास द डार्क ऑवर्स ऑफ द नाइट, लैंगिक समानता और बहुत कुछ पर खुलकर बातचीत की।
प्रसिद्ध तमिल कवयित्री, उपन्यासकार और राज्यसभा सदस्य सलमा ने अपने लेखन और सक्रियता के जरिए दशकों तक पितृसत्तात्मक मान्यताओं को चुनौती दी है। तिरुचिरापल्ली (तमिलनाडु) के पास थुवरनकुरिची गांव में राजथी के रूप में जन्मी सलमा समकालीन तमिल साहित्य की सबसे अलग आवाज़ों में से एक हैं।
एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार में पली-बढ़ीं सलमा को 13 वर्ष की उम्र में स्कूल से निकाल लिया गया और 19 साल की उम्र में शादी तक कड़े एकांत में रखा गया। इन पाबंदियों के बावजूद, किताबों के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें लिखने की इच्छा दी। उन्होंने ‘सलमा’ (खलील जिब्रान की एक कविता से लिया गया नाम) उपनाम अपनाकर गुपचुप कविताएं लिखनी शुरू कीं, जो महिलाओं की इच्छाओं, हताशाओं और भीतरी जीवन पर आधारित थीं, और इन्हें परिवार की जानकारी के बिना संपादकों तक पहुंचाती थीं।
समय के साथ, यौनिकता, पितृसत्ता और महिलाओं के रोज़मर्रा के संघर्षों जैसे विषयों पर बेखौफ लिखी उनकी कविताएं और कहानियां उन्हें एक ओर विवादित, तो दूसरी ओर बेहद सराही गई साहित्यिक हस्ती बना गईं।
उनका पहला कविता संग्रह ओरु मलायुम इनोरु मलायुम (2000) ने पुरुष-प्रधान तमिल साहित्यिक जगत को महिला दृष्टिकोण और आकांक्षाओं के साहसिक चित्रण से हिला दिया। इसके बाद उन्होंने द ऑवर पास्ट मिडनाइट, वीमेन, ड्रीमिंग, द डोर लैच जैसे चर्चित उपन्यास और द कर्स नामक कहानी संग्रह लिखा। उनका लेखन अक्सर परंपरागत समुदायों में रह रही महिलाओं के जीवन, उनके छोटे-छोटे विद्रोहों और समझौतों को चित्रित करता है। साहित्यिक काम के साथ-साथ वे राजनीतिक रूप से भी सक्रिय रही हैं—तमिलनाडु समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष रहीं और महिलाओं व ट्रांसजेंडर अधिकारों, घरेलू हिंसा के प्रति जागरूकता और लैंगिक समानता की वकालत करती रही हैं।
द डार्क ऑवर्स ऑफ द नाइट (साइमन एंड शूस्टर इंडिया), जो उनके पहले उपन्यास इरंडाम जामंगलिन कथई का जी.जे.वी. प्रसाद द्वारा किया गया अनुवाद है, एक परंपरावादी तमिल मुस्लिम परिवार की कहानी है, जिसमें राबिया, उसकी सहेलियों और उसकी चचेरी बहन वहीदा के जीवन के ज़रिए शिक्षा, विवाह, स्वायत्तता और परंपरा-बदलाव की बदलती सीमाओं के सवाल उठाए गए हैं। यह उपन्यास दिखाता है कि कैसे पितृसत्ता बदलते समय के साथ खुद को ढाल लेती है, जबकि महिलाएं कर्तव्य, इच्छा और आत्मपहचान के जटिल रास्तों पर चलती रहती हैं।
इस बेबाक इंटरव्यू में सलमा ने अपनी यात्रा, द्रविड़ आंदोलन के प्रभाव, महिलाओं की शिक्षा के लिए अपनी योजनाओं, अधिक समान भारत की उम्मीद, यह विश्वास कि बीजेपी तमिलनाडु में कभी पैर नहीं जमा पाएगी, और द्रविड़ आंदोलन से मिली अन्याय से लड़ने की ताकत पर बात की।
आप हाल ही में राज्यसभा सदस्य बनी हैं। इस नई भूमिका को कैसे देखती हैं?
यह मेरे लिए खुशी का क्षण है। मेरे मुख्यमंत्री ने मुझे यह अवसर दिया। एक फील्ड वर्कर के रूप में मैं हमेशा एक प्रतिबद्ध राजनीतिक कार्यकर्ता रही हूं। अब राज्यसभा सदस्य के रूप में जिम्मेदारी और बढ़ गई है। थोड़ा डर भी है—मुझे यह काम अच्छे से करना होगा। मेरी प्रतिबद्धता मेरे साथ है, और मैं पूरी मेहनत करूंगी।
एक ऐसी लेखिका जो हाशिये की महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं—आपको अपनी क्या जिम्मेदारी लगती है?
गांवों में महिलाओं की ज़िंदगी में, धर्म कोई भी हो, ज़्यादा बदलाव नहीं आया है। हाल ही में मैंने एक फोटो देखी, जिसमें गांव के पुरुष महिलाओं के फोन पत्थरों से तोड़ रहे थे। क्या यही भारत में महिलाओं की आज़ादी है? हमें समानता और भेदभाव के खिलाफ लड़ना होगा। असली समस्या हमेशा लैंगिक है—धर्म द्वितीयक है। मानसिकता बदलना मुश्किल है, लेकिन ज़रूरी है।
तमिलनाडु में बीजेपी के प्रभाव बढ़ने की बात हो रही है। आप इसे कितना वास्तविक खतरा मानती हैं?
बीजेपी का यहां कोई मौका नहीं है। वे लोगों के मुद्दों पर कभी नहीं बोलते—सिर्फ धर्म पर। तमिलनाडु एक शिक्षित और परिपक्व समाज है। द्रविड़ आंदोलन ने यहां 50 से अधिक वर्षों तक शासन किया है, हम विकसित हैं। बीजेपी सिर्फ धर्म का इस्तेमाल करती है, असली समस्याओं को नहीं छूती। लोग यहां बीजेपी-शासित राज्यों में क्या हो रहा है, देख रहे हैं—वे इसे यहां होने नहीं देंगे।
आपके शुरुआती जीवन में कैद का दौर रहा। 13 साल की उम्र में पढ़ाई छूट गई। आपने कैसे सामना किया?
हमारे गांव की परंपरा थी कि लड़कियां एक उम्र के बाद नहीं पढ़ सकतीं। मैंने पत्राचार पाठ्यक्रम से पढ़ाई जारी रखना चाहा, लेकिन माता-पिता को बदनामी का डर था। मैंने विरोध किया, रोई, लेकिन महसूस किया कि ये नियम तोड़ना आसान नहीं है। इसलिए मैंने लिखना शुरू किया। मां ने कहा, “घर के अंदर कुछ भी करो, लेकिन बाहर मत जाओ।” तो मैंने गुस्से को कविता में ढाल दिया।
उस दौरान कौन-सी किताबें आपको प्रेरित करती थीं?
गांव की एक छोटी लाइब्रेरी में रूसी साहित्य और पेरियार की किताबें थीं। रूसी उपन्यासों में प्रेम, समानता और गरीबी-मुक्त दुनिया की बातें थीं। पेरियार की रचनाओं ने मुझे सिखाया कि महिलाएं गुलाम नहीं हैं। उन्होंने वे झूठ तोड़ दिए जो मुझे बचपन से सिखाए गए थे—कि महिलाएं आज्ञाकारी रहें और चुप रहें। मुझे अहसास हुआ कि दुनिया मेरे गांव से कहीं बड़ी है।
आपकी कविताएं महिलाओं की इच्छाओं पर बेबाक थीं। वे पाठकों तक कैसे पहुंचीं?
मेरी मां चुपके से मेरी कविताएं प्रकाशक कानन सुंदरम तक पहुंचाती थीं। प्रतिक्रिया अभूतपूर्व थी। किसी तमिल महिला ने पहले इस तरह नहीं लिखा था। मेरी कविताएं यौनिकता, गुस्सा और मेरे आसपास की महिलाओं—मेरी बहनों, बुआओं—की चुप पीड़ा की बात करती थीं। सुंदर रामास्वामी जैसे बड़े लेखकों ने उनकी तारीफ की, जिससे मुझे आगे लिखने का साहस मिला।
आपके पति ने पहले लेखन का विरोध किया, लेकिन बाद में आपको पंचायत चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित किया।
यह विडंबना थी। उन्होंने मेरा नाम और फोटो छिपाकर रखा था—फिर अचानक चुनाव के लिए मेरा चेहरा होर्डिंग पर चिपका दिया। मैं नाराज़ थी लेकिन सोचा, “अगर वे मुझे इस्तेमाल कर सकते हैं, तो मैं भी इस मौके का इस्तेमाल करूंगी।” चुनाव जीतना मेरे सार्वजनिक जीवन में पहला कदम था।
आपका उपन्यास द डार्क ऑवर्स ऑफ द नाइट आपकी ज़िंदगी से प्रेरित है, जिसमें एक एडल्ट फिल्म देखने पर विवाद भी शामिल है।
यह अर्ध-आत्मकथात्मक है। एक लड़की अपने समाज को देखती है—महिलाओं का दर्द, पाखंड। लड़कियों के लिए सिनेमा मना था, लेकिन मैं एक बार चुपके से देखने गई, और वह एडल्ट फिल्म निकली। गांव ने इसे स्कैंडल बना दिया। उपन्यास दिखाता है कि समाज कैसे महिलाओं की जिज्ञासा और स्वतंत्रता पर पहरा लगाता है।
द्रविड़ आंदोलन ने आपको कैसे प्रभावित किया?
इसने मुझे अन्याय से लड़ने की हिम्मत दी। करुणानिधि और स्टालिन जैसे नेताओं ने समानता, महिलाओं के संपत्ति अधिकार, 33% आरक्षण के लिए काम किया। लेकिन आज बीजेपी की विभाजनकारी राजनीति भारत की एकता के लिए खतरा है। अर्थव्यवस्था गिर रही है, नफरत बढ़ रही है। हमारी तरह की क्षेत्रीय पार्टियों को लोकतंत्र बचाना होगा।
क्या आप 2029 में मोदी के खिलाफ विपक्ष के एकजुट होने की संभावना देखती हैं?
लोग जाग रहे हैं। यह सरकार कभी भी गिर सकती है—नीतीश, चंद्रशेखर और अन्य गठबंधन बदल सकते हैं। अगला चुनाव बीजेपी की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनता का फैसला दिखाएगा।