
यूपी में SIR: शहर छोड़, गाँव की ओर जाने का ट्रेंड ! बीजेपी ने सक्रियता बढ़ाई
ASD-(absentee, shifted, dead) को देखें तो लखनऊ महानगर की 6 विधानसभाओं में हर विधानसभा में 1-1 लाख वोटर कम हो रहे हैं। इसकी कई वजहें हैं।लेकिन इतना तय है कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह बीजेपी के लिए चिंता का विषय बन सकता है।
उत्तर प्रदेश में विशेष गहन पुनरीक्षण ( SIR )की समयसीमा 15 दिन बढ़ा दी गई है।अब सूची से हटने वाले 4 करोड़ ‘लापता वोटर्स’ की एक बार फिर जाँच हो रही है।इनमें बड़ी संख्या उन वोटर्स की है जिनका नाम दो या ज़्यादा जगह की वोटर लिस्ट में था।अब एसआईआर के दबाव में लोग शहर की सूची से नाम कटवा रहे हैं।बड़ी संख्या में ऐसे नाम कटने से शहर की मतदाता सूची से नाम घट रहे हैं।ऐसे में सियासी दलों खासकर बीजेपी को मुश्किलें आने वाले समय में बढ़ सकती हैं। वजह यह है कि 2014 के बाद से बीजेपी को जो चुनावी सफलता मिली थी उसमें शहरी क्षेत्र के वोटर्स का बड़ी भूमिका रही है।
शहरी वोटर ने किया गाँव का रुख़ ? क्या है इस बदलाव की वजह ?
यूपी में एसआईआर प्रक्रिया के दौरान वोटर लिस्ट में बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं।बड़ी संख्या में शहरी वोटर्स अपने नाम शहरों से हटवाकर पैतृक निवास वाले गांव के ही मतदाता बने रहने को तरजीह दे रहे हैं। इस ट्रेंड से भारतीय जनता पार्टी (BJP) की चिंता बढ़ना लाज़िमी है क्योंकि शहरी क्षेत्र लंबे समय से बीजेपी की चुनावी सफलता का मज़बूत आधार रहे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दो दिन पहले खुद इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए हैं कि पात्र वोटर्स के नाम कटने न पाएं। यूपी के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश भर में 1 करोड़ 27 लाख उन लोगों के नाम हैं जो स्थाई रूप से अपने पते से शिफ्ट हो गए हैं।वहीं इस प्रक्रिया के तहत जाँच में अनुपस्थित (untracable ) नाम क़रीब 86 लाख हैं।यानि ये वो लोग हैं जिनका नाम तो 2003 की सूची में है लेकिन उनका कहीं पता नहीं चल रहा।संभावना यह है कि ऐसे लोगों ने जो दो-दो वोटर कार्ड( एक गाँव और दूसरा शहर में) बनवाया था अब वो एक पते से ‘लापता’ तो नहीं हो गए ? पर एक ‘ मतदाता’ के रूप में शहर छोड़ने की इस ट्रेंड की वजह क्या है?
बीजेपी कार्यकर्ताओं ने सक्रियता बढ़ाई-
लखनऊ में एसआईआर की मॉनिटरिंग में लगी बीजेपी की टीम ने सक्रियता बढ़ा दी है।लखनऊ महानगर के अध्यक्ष आनंद द्विवेदी इस बात को स्वीकार करते हैं कि निर्वाचन आयोग की तीन कैटेगरी ( ASD- absentee, shifted, dead) को देखें तो लखनऊ महानगर की 6 विधानसभाओं में हर विधानसभा में 1-1 लाख वोटर कम हो रहे हैं।आनंद द्विवेदी इसकी तीन वजहें बताते हुए कहते हैं ‘’हमारी लोगों से जो बात हुई है इसमें पता चल रहा है कि गाँव का वोटर कार्ड रखने की पहली वजह यह है कि गांव में खेती बाड़ी है।शहर में रहते हैं।इसलिए अब जब एक चुनना है तो गाँव के वोटर रहना चाहते हैं।दूसरी वजह यह है कि बहुत से लोग गांव में अपने निवास दिखाकर वहाँ कई सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे हैं।तीसरी वजह यह है कि कुछ लोग ग्राम प्रधानी का चुनाव लड़ना या राजनीतिक रूप से भी वहाँ सक्रियता चाहते हैं।’’ हालाँकि आनंद द्विवेदी कहते हैं कि बीजेपी के BLA इस काम में भी लगे हैं जो फ़ॉर्म्स जमा नहीं हुए हैं इस बढ़े हुए समय में उनके फॉर्म्स जमा करवाने की कोशिश कर रहे हैं।
कई लोग जो शहरों में रहते हैं लेकिन गांव में पैतृक संपत्ति रखते हैं वो इस डर में रहे हैं कि अगर उनका वोटर रजिस्ट्रेशन सिर्फ शहर में रहा तो गांव की जमीन-जायदाद पर उनका अधिकार कमजोर पड़ सकता है।इसी वजह से उन्होंने गांव में भी वोटर आईडी बनवाया।लेकिन शहर में रहे इसलिए सुविधा अनुसार शहर में भी बनवा लिया।वरिष्ठ पत्रकार स्नेह रंजन कहते हैं ‘’ ऐसे कई लोग जो शहर में नौकरी करते रहे वो अब अपनी ज़मीन से जुड़े रहना चाहते हैं।यानि उनके बेटे और परिवार के लोग तो शहर में रहें तो भी वो गांव से जुड़े रहना चाहते हैं।इसलिए अब इनको गांव के पते का वोटर बने रहना ही सही लग रहा है।अब गाँव में भी सुविधाएं हो गई हैं इसलिए भी अब वहाँ रहने में लोगों को कोई दिक्कत नहीं है ।’’ हालाँकि स्नेह रंजन मुख्यमंत्री के 4 करोड़ वाले बयान को बीजेपी की अंदरूनी राजनीति का संकेत भी मानते हैं।
शहरी क्षेत्रों में बीजेपी का रहा है वर्चस्व-
2014 के बाद से लगातार शहरी क्षेत्रों में बीजेपी ने अच्छा परफॉर्म किया है।लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव ही नहीं 2023 में हुए नगर निकाय चुनाव में भी बीजेपी का शहरी क्षेत्रों में वर्चस्व पता चलता है।बीजेपी ने इस चुनाव में यूपी के सभी 17 नगर निगमों पर क़ब्ज़ा कर लिया था। इस ट्रेंड का एक और असर यह हो सकता है कि शहरों में वोटर टर्नआउट पहले से कम होता है और अगर नाम गांव में चला गया तो ये वोटर्स दूर जाकर वोट डालने से कतराएंगे।ऐसे में आने वाले चुनाव में वोटर टर्न आउट पर भी इसका असर पड़ सकता है। लखनऊ के इंदिरानगर क्षेत्र में बलिया से आ कर बसे राय परिवार के 3 सदस्यों का वोट लखनऊ के अलावा बलिया में भी है। यहाँ 3 वोट अलग से( 2003 के बाद ) जुड़े हैं। ऐसे में न सिर्फ़ परिवार अपने पैतृक निवास का वोट बनाये रखना चाहता है बल्कि यहाँ वाले वोट भी गाँव के पते पर अपडेट कराना चाहता है।मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लखनऊ लोकसभा में करीब 5 लाख नाम कट सकते हैं जिसमें क़रीब 2.5 लाख वोटर्स के नाम डुप्लीकेट होने की वजह से कटेंगे।जबकि प्रयागराज से लगभग 2 लाख वोटर्स गांव की ओर जा रहे हैं।अयोध्या (फैजाबाद) से भी 41,000 से ज्यादा वोटर्स शिफ्ट हो सकते हैं।हालाँकि चुनाव आयोग बढ़ी हुई समय सीमा में इस सूची की दोबारा जाँच करवा रहा है।बीजेपी की ओर से मतदाता सूची पर सतर्कता बरती का रही है। लखनऊ बीजेपी टीम पात्र वोटर्स के नाम जुड़वाने के लिए सक्रियता से लगी है।इधर अखिलेश यादव के ‘PDA प्रहरी’ को लेकर दावे के बाद अब सपा कार्यकर्ता भी और ज़्यादा सचेत हो गए हैं।बीएलए के काम की भी लगातार मॉनिटरिंग हो रही है।सपा प्रवक्ता फ़ख़रूल हसन चाँद कहते हैं “लखनऊ के बाहरी क्षेत्रों में कई इलाक़े ऐसे हैं जहाँ लोग आकर बस गए हैं।पीडीए प्रहरी की सक्रियता से अब ऐसे डुप्लीकेट वोटर आईडी वाले नाम हटाए जा रहे हैं।’’

