
वोटर अधिकार यात्रा की ग्राउंड रिपोर्ट : बिहार के सारे मुद्दों पर हावी है SIR
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने वोटर लिस्ट को दुरुस्त करने के नाम पर 65 लाख लोगों के नाम हटाने की जो कार्रवाई की है, उसको लेकर बिहार में अच्छी खासी राजनीतिक तपिश देखने को मिल रही है। बिहार के शेखपुरा से 'द फेडरल देश' की ग्राउंड रिपोर्ट
बिहार का शेखपुरा। वो इलाका जिसकी मिट्टी बड़ी उपजाऊ मानी जाती है। इसीलिए इस इलाके की खेती-किसानी के लिए खासी पहचान है। लेकिन शेखपुरा की जलवायु में इन दिनों राजनीतिक हवाओं का असर देखा जा रहा है। इसकी मिट्टी में नए राजनीतिक मुद्दे गहरे रोपे जा रहे हैं और उनमें सबसे अहम है विशेष गहन पुनरीक्षण, जिसे अंग्रेजी में कहा जा रहा है Special Intensive Revision (SIR)। सरल भाषा में कहें तो वोटर लिस्ट को दुरुस्त करने का काम। SIR इन दिनों बिहार में पब्लिक डिस्कोर्स का हिस्सा बन गया है और इसकी झलक 'द फेडरल देश' की टीम को शेखपुरा में भी दिखी।
इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने तक शेखपुरा से आरजेडी नेता तेजस्वी यादव 'वोटर अधिकार यात्रा' लेकर गुजर चुके हैं। उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की हलचल की वजह से कांग्रेस नेता राहुल गांधी शेखपुरा में इस यात्रा में शामिल नहीं हो पाए। लेकिन तेजस्वी की यात्रा में जिस तरह से भीड़ उमड़ी है, उसे देखकर इतना अँदाजा तो हो रहा है कि विपक्ष बनाम चुनाव आयोग की लड़ाई की तपिश ज़मीन पर भी महसूस हो रही है।
वरना तो बिहार राजनीतिक तौर पर जातीय गोलबंदियों वाला राज्य माना जाता रहा है, लेकिन अभी, जबकि विधानसभा चुनावों की घोषणा नहीं हुई है, वोटर लिस्ट में संशोधन का मुद्दा राजनीतिक विमर्श का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है।
'द फेडरल देश' ने इस मुद्दे पर जनता का मिजाज समझने की कोशिश की तो ज्यादातर लोग अपनी राजनीतिक वैचारिकी के इर्द-गिर्द ही इस मुद्दे की व्याख्या करते हुए दिखे। शेखपुरा के निवासी रंजीत कुमार को हमने टटोलने की कोशिश की तो किसी मंझे हुए नेता की तरह बोले, "चुनाव आयोग ने पूरे देश में वोट चोरी का काम किया है। आप ताज्जुब करेंगे कि किसी एक घर में 200 वोटर हैं तो किसी घर में 80 वोटर। बीजेपी की सरकार वोट चोरी से बनी है। स्वच्छ एवं स्वतंत्र चुनाव से नहीं बनी है।"
लेकिन शेखपुरा के एक अन्य निवासी राजेश साहू इन आरोपों को सिर के बल खड़ा करते हुए कहते हैं, "वोटर लिस्ट में जो गलत नाम दर्ज थे, वही कटे हैं। ऐसा कहना सही नहीं है कि गरीब का नाम कटा है। लोगों को समय दिया जा रहा है कि उचित प्रमाणपत्र पेश करके साबित करिए कि उनका नाम गलत कटा है।"
'द फेडरल देश' की टीम ने शेखपुरा में जिन लोगों से बात की उनमें से ज्यादातर अपने-अपने राजनीतिक खांचों में बंटे हुए लगे। जैसे शहबाज नाम के एक व्यक्ति प्रश्न करते हुए पूछते हैं,"जो सरकार का समर्थक है, सिर्फ उसी का वोट बनेगा और जो सरकार का विरोधी है तो क्या उसका वोट काट देंगे?"
शहबाज़ आगे कहते हैं, "चुनाव आयोग पर प्रधानमंत्री का दबाव है लेकिन इनसे अब कुछ नहीं हो पाएगा क्योंकि बिहार में इंडिया गठबंधन का माहौल बन चुका है।"
शहबाज़ ने जो बात कही, उसे ज़मीन पर इस तरह देख सकते हैं कि राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और इंडिया गठबंधन के दूसरे दल बिहार में जो यात्रा लेकर निकल रहे हैं, उससे माहौल तो गरमाया हुआ है। हालांकि विधानसभा चुनाव में अभी कुछ महीने का समय है और तब तक यह मुद्दा कितना असरकार रहता है, ये देखना होगा लेकिन हमें कुछ लोग ऐसे भी मिले जिनकी सलाह है कि विपक्ष को सड़क पर यात्रा निकालने के बजाय कोर्ट में लड़ाई लड़नी चाहिए।
शेखपुरा के चंदन कुमार ने 'द फेडरल देश' से कहा, "वोटर अधिकार यात्रा लेकर चलने से कोई फायदा नहीं है। इससे अच्छा यह होता कि विपक्ष के नेता पहले न्यायालय में ही इसकी लड़ाई लड़ते।"
कुल मिलाकर ऐसा देखा जा रहा है कि बिहार में लोग जिस तरह से दलीय आधार पर विभाजित हैं, वो SIR पर अपनी-अपनी पार्टी लाइन से पूरी तरह से कन्विंस दिख रहे हैं। विपक्षी पार्टियां अपने निचले स्तर के कार्यकर्ता और समर्थकों तक ये बात पहुंचाने में कामयाब रही हैं कि चुनाव आयोग सरकार के इशारे पर गरीबों, पिछड़ों और वंचितों के वोट काट रहा है, जबकि बीजेपी और उसके गठबंधन की पार्टियों के समर्थक इस बात को लेकर कन्विंस हैं कि वोटर लिस्ट से 65 लाख लोगों के नाम हटाना एकदम सही कदम है।