
रिपोर्ट में खुलासा: केरल में जनसंख्या ढांचे में बड़ा बदलाव
यह स्टडी विज्ञान आंदोलन केरल शास्त्र साहित्य परिषद द्वारा 2004 से 2019 के बीच 5,076 परिवारों पर किए गए सर्वे पर आधारित है।
केरल में पिछले 15 वर्षों में आए सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों पर आधारित स्टडी ‘केरल पदानम 2.0’ ने राज्य की विकास यात्रा के साथ-साथ सामने आने वाली नई चुनौतियों की गहराई से पड़ताल की है। यह स्टडी विज्ञान आंदोलन केरल शास्त्र साहित्य परिषद (KSSP) द्वारा 2004 से 2019 के बीच 5,076 परिवारों पर किए गए सर्वे पर आधारित है।
रिपोर्ट की सबसे चौंकाने वाली बात है राज्य में बुजुर्गों की तेजी से बढ़ती संख्या। वर्ष 2004 में जहां 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोग 11.8% थे, वहीं 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 18.6% हो गया। 65 वर्ष से ऊपर के लोगों की संख्या भी 8.3% से बढ़कर 12.4% हो गई। यह आंकड़े केरल को चिली जैसे उच्च-मध्यम आय वाले देशों के समकक्ष खड़ा करते हैं, जबकि पूरे भारत में औसत मात्र 6.3% है। राज्य की जनसंख्या संरचना अब भारत के सामान्य 'युवाधारित पिरामिड' के बजाय अमेरिका जैसी 'बैरल' आकृति में बदल गई है—20-24 आयु वर्ग में अधिक संकेंद्रण और 15 वर्ष से नीचे की जनसंख्या में गिरावट।
0 से 14 वर्ष की आयु वाली जनसंख्या 2004 में 21.5% थी, जो 2019 में घटकर 17.8% रह गई। हालांकि अभी भी 69.8% जनसंख्या कार्यशील आयु वर्ग (15–64 वर्ष) में आती है, लेकिन यह जनसांख्यिकीय लाभांश अब धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है।
रोजगार ढांचे में बदलाव
रोजगार के क्षेत्र में भी बड़े बदलाव देखे गए। पुरुषों की भागीदारी थोड़ी घटी (53.5% से 49%) लेकिन महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि (13.1% से 16.2%) हुई — यह श्रम क्षेत्र में स्त्री भागीदारी के धीरे-धीरे बढ़ने का संकेत है। सर्विस सेक्टर अब भी प्रमुख है, जहां 48% कार्यबल संलग्न है और यह कुल आय का 64.8% पैदा करता है। कृषि जैसे प्राथमिक क्षेत्र में रोजगार में मामूली वृद्धि (32.8%) तो हुई, लेकिन इससे मिलने वाली आय घटी है, जो कृषि क्षेत्र की आर्थिक कमजोरी को दर्शाती है। सेवाओं में आय में सबसे अधिक वृद्धि (84.8%)**, फिर निर्माण (77%) और प्राथमिक क्षेत्र (36%) में हुई है।
जेंडर असमानता अब भी बरकरार
हालांकि महिला भागीदारी बढ़ी है, लेकिन स्त्री-पुरुष वेतन असमानता अब भी बेहद गंभीर है। महिलाओं की मजदूरी अब भी प्राथमिक और औद्योगिक क्षेत्रों में पुरुषों की आधी से भी कम है। सेवा क्षेत्र में थोड़ी स्थिति बेहतर है, लेकिन अंतर अब भी बना हुआ है।
कोयर, हथकरघा और काजू जैसे पारंपरिक उद्योगों में रोजगार 82% घटा है। वहीं आधुनिक उद्योगों में 36% की वृद्धि दर्ज की गई है। कृषि में लगे लोग अब भी 20 लाख से अधिक हैं, लेकिन खुद को किसान मानने वालों की संख्या तेजी से घटी है। बाहरी राज्यों से आने वाले प्रवासी श्रमिकों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है, खासकर निर्माण जैसे असंगठित क्षेत्रों में। लेकिन ये श्रमिक सर्वेक्षण में शामिल नहीं किए जा सके, क्योंकि वे आमतौर पर मतदाता सूची में पंजीकृत नहीं होते।
भौतिक समृद्धि
राज्य में पक्के मकानों की संख्या 82.9% से बढ़कर 93.7% हो गई है। अब दो-तिहाई घरों की छतें कंक्रीट की हैं। फ्रिज (32% से 65%), कार (7% से 20%) जैसी चीजों के स्वामित्व में भारी वृद्धि देखी गई है। LPG उपयोग (49% से 82%) और शौचालय की उपलब्धता (98.9%) भी काफी बढ़ी है। हालांकि, पाइप से पेयजल अभी भी केवल 25% घरों तक ही सीमित है। 31.3% परिवारों के पास कचरा निस्तारण की समुचित व्यवस्था नहीं है, जो बढ़ते मच्छरजनित रोगों के दौर में चिंताजनक है।
नए युग की चुनौतियां
पूर्व वित्त मंत्री डॉ. टीएम थॉमस आइज़क ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि हमारी कृषि व्यवस्था आयात के दबाव में चरमरा गई है। असमानता गहरी हो चुकी है। एक नया उपभोक्तावादी अमीर वर्ग सामने आया है, जो जाति-धर्म आधारित रणनीतियों से सामाजिक ऊँचाई पाने की कोशिश में है — यह हमारी सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के लिए खतरा है। उन्होंने कहा कि हमें एक नए साक्षरता आंदोलन की जरूरत है — इस बार कौशल विकास के लिए। उच्च शिक्षा, तकनीक और नवाचार आधारित समाज का निर्माण ही हमें भविष्य की चुनौतियों से बचा सकता है।
KSSP ने कहा कि यह अध्ययन जनकेंद्रित सामाजिक विज्ञान परियोजना है, जिसकी पहली कड़ी 2004 में हुई थी। 2019 में दूसरा चरण पूरा हुआ और COVID काल के बाद विस्तृत विश्लेषण कर 2025 में इसका प्रकाशन किया गया। KSSP के अनुसार, यह स्टडी केवल आंकड़ों को नहीं, जनभावनाओं और अनुभवों को भी दर्ज करता है। इसने सरकारी सर्वेक्षणों से अलग स्थानीय स्वयंसेवकों और पारिवारिक समूह चर्चाओं के जरिए डेटा जुटाया।