J&K राज्य बहाली मांग पर सुप्रीम कोर्ट, पहलगाम घटना नजरअंदाज नहीं कर सकते
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J&K राज्य बहाली मांग पर सुप्रीम कोर्ट, पहलगाम घटना नजरअंदाज नहीं कर सकते

सुप्रीम कोर्ट में जम्मू-कश्मीर राज्य बहाली पर सुनवाई में पहलगाम हमले और सुरक्षा चिंताओं को अहम बताया। उमर अब्दुल्ला ने बहाली को ज़रूरी सुधार कहा।


Jammu Kashmir Statehood: जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा देने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। केंद्र और विरोधी पक्ष दोनों ने अपनी अपनी तरफ से दलीलें पेश कीं। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर की राज्य का दर्जा बहाल करने की मांगों में पहलगाम आतंकी हमले और उसके बाद के क्षेत्रीय सुरक्षा प्रभावों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिसंबर 2023 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पालन की मांग की गई थी। उस आदेश में कहा गया था कि विधानसभा चुनाव के बाद जल्द से जल्द जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाना चाहिए। यह याचिका जम्मू-कश्मीर को दो महीने के भीतर राज्य का दर्जा लौटाने की मांग करती है और आदेश के पालन में देरी को भारत की संघीय संरचना का उल्लंघन बताती है।


केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार ने चुनावों के बाद राज्य का दर्जा देने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब स्थिति अजीबोगरीब है। उन्होंने इस मुद्दे पर सरकार से निर्देश लेने के लिए 8 हफ़्ते का समय मांगा।अगस्त 2019 में सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त करते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने की व्यवस्था खत्म कर दी थी और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था।तब से सरकार बार-बार कहती रही है कि राज्य का दर्जा उचित समय पर बहाल किया जाएगा, लेकिन कोई निश्चित समयसीमा घोषित नहीं की गई। 2023 में चुनाव आयोग को विधानसभा चुनाव कराने को कहा गया।

राजनीतिक पहल और चेतावनी

हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को पत्र लिखकर संसद में जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए विधेयक लाने का आग्रह किया।अब्दुल्ला ने कहा कि राज्य का दर्जा बहाल करना कोई एहसान नहीं, बल्कि एक ज़रूरी सुधार है। उन्होंने नेताओं को चेतावनी दी कि किसी राज्य को घटाकर केंद्रशासित प्रदेश बना देना देश के लिए अस्थिर करने वाला कदम है और इसे कभी भी पार नहीं की जाने वाली लाल रेखा माना जाना चाहिए।

अब्दुल्ला ने कहा कि बहाली को रियायत के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह एक आवश्यक सुधार है ऐसा सुधार जो हमें एक खतरनाक रास्ते पर फिसलने से रोकता है, जहां हमारे राज्यों की राज्यसत्ता को मौलिक और पवित्र संवैधानिक अधिकार के बजाय केंद्र सरकार की मर्जी से दी जाने वाली रियायत में बदल दिया जाए।

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