सूरज पाल,साकार हरि, भोले बाबा सब एक ही नाम, कैसे पनपते हैं ऐसे बाबा
हाथरस भगदड़ कांड में जो संत प्रवचन दे रहे थे वो कभी यूपी पुलिस में नौकरी करते थे,मन नहीं लगने पर वीआरएस ली और सत्संग करने लगे. इनका विवादों से पुराना नाता रहा है.
Suraj Pal Alias Sakar Hari News: हाथरस और एटा जिले की सीमा पर जीटी रोड से सटे गांव फुलरई मुगलगढ़ी में मंगलवार 121 लोगों के अमंगलकारी साबित हुआ. लाखों की संख्या में लोग अपना इहलोक और परलोक दोनों की बेहतरी के लिए सत्संग का हिस्सा बने.सत्संग में उन्होंने अपने बाबा के मुख से अमृतवाणी का आनंद ले रहे थे. लेकिन सत्संग के खत्म होने के बाद जो कुछ हुआ वो हम सबके सामने है.
इस घटना के बाद सवाल ये था कि कौन से बाबा सत्संग कर रहे थे. पता चला कि उनका नाम साकार हरि उर्फ भोले बाबा है. धीरे धीरे जब उनके संबंध में और जानकारी मिली तो पता चला कि एटा के पटियाली के रहने वाले हैं और असली नाम सूरज पाल सिंह था. सूरज पाल सिंह कभी यूपी पुलिस की एलआईयू यानी लोकल इंटेलिजेंस यूनिट में काम किया करते थे.लेकिन सांसारिक मोह से विरक्ति होने पर नौकरी छोड़ दी और गांव गांव घूमकर प्रवचन करने लगे. लोग उनके प्रवचन से प्रभावित हुए और सूरज पाल की लोकप्रियता पश्चिमी यूपी के जिलों के साथ साथ राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश के कुछ जिलों तक फैल गई.
साकार हरि का विवादों से पुराना नाता
सूरजपाल उर्फ साकार हरि के सत्संग में इतनी संख्या में लोग या यूं कहें कि कानून के साथ खिलवाड़ पहली बार नहीं है. कोविड के दौर में भी साकार हरि उर्फ भोले बाबा ने नियमों तो ताक पर रख दिया. अब ऐसे में सवाल है कि इके खिलाफ कार्रवाई क्यों नही हो पाती. इस मामले में पता चला कि लाखों की संख्या में अनुयायी होने की वजह से राजनीतिक दल भी उनमें खुद के लिए उम्मीद देखते हैं.
सूरज पाल को सांसारिक माया मोह से विरक्ति हुई या उन्हें एलआईयू में हेडकांस्टेबल की नौकरी रास नहीं थी यह अलग विषय है. लेकिन जिस शानशौकत से वो रहते हैं उसे देखकर आप सांसारिक माया मोह से विरक्ति तो नहीं कह सकते. अगर बात सोशल मीडिया की करें तो यूट्यूब चैनल और फेसबुक पर नजर आते हैं. यूट्यूब पर 31 हजार सब्सक्राइबर हैं. फेसबुक पेज पर लाइक्स उतने नहीं हैं लेकिन फॉलोवर्स की संख्या लाखों में है. भोले बाबा के समागम में लाखों की संख्या में लोग जुटते हैं.उनकी अपनी प्राइवेट आर्मी है जिसे सेवादार के नाम से जाना जाता है.
सूरज पाल जब तक एलआईयू में रहे तब तक खुफिया जानकारी इकट्ठा करते रहे. लेकिन जब प्रवचन और सत्संग की दुनिया में आए तो खद्दरधारी उनके आगे पीछे डोलने लगे. सूरज पाल का नाता दलित समाज से है और जब वो अपनी पहचान स्थापित करने में कामयाब हुआ तो सियासी चेहरों को उनकी कीमत समझ में आने लगी. बाबा की हनक और धमक को आप ऐसे समझ सकते हैं कि वो कहते हैं कि वो अपने मन से कहीं नहीं जाते. भक्तों के बुलाने पर चले जाते हैं. यही नहीं आईएएस- आईपीएस अफसरों को अपना चेला बताते हैं. अपने प्रवचन के जरिए दलित और ओबीसी बिरादरी में पैंठ बनाई और उसका असर यह हुआ कि राजनेताओं को उनके भक्त एकमुश्त वोट नजर आने लगे और इस तरह से साकार हरि का कारोबार चल निकला.