
8 साल बाद कपड़ा उद्योग को नई राह, बांग्लादेश संकट में चमका सूरत
बांग्लादेश में अस्थिरता और अमेरिकी टैरिफ से सूरत को मिला फायदा, लिनन और कॉटन गारमेंट्स के नए ऑर्डर से इंडस्ट्री में लौटी रौनक और उम्मीद।
वर्षों की मंदी और संघर्ष के बाद सूरत की कपड़ा इंडस्ट्री में एक बार फिर नई जान आ गई है। बांग्लादेश में जारी राजनीतिक अस्थिरता और वहां की सरकार गिरने के बाद अमेरिका, यूरोप और ब्रिटेन की कई गारमेंट कंपनियों ने अपने थोक ऑर्डर भारत की ओर मोड़ दिए हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा सूरत को मिल रहा है, जो अब कॉटन यार्न और लिनन रेडीमेड गारमेंट्स के उत्पादन के लिए तेजी से खुद को तैयार कर रहा है।
बांग्लादेश पर ट्रंप का वार, सूरत को मिला मौका
पिछले सप्ताह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बांग्लादेश से आयात पर 1 अगस्त 2025 से 35% टैरिफ लगाने की घोषणा की। यह फैसला बांग्लादेश की प्रतिस्पर्धा को और कमजोर करेगा और इसका लाभ सीधे तौर पर सूरत जैसे वैकल्पिक बाजारों को मिलने की उम्मीद है। इसी दिन भारत की प्रमुख कपड़ा कंपनियों वेलस्पन, वर्धमान और अरविंद के शेयरों में उछाल देखा गया।
पारंपरिक रेयान से कॉटन की ओर बढ़ता सूरत
अब तक रेयान और सस्ती साड़ियाँ व रेडीमेड गारमेंट्स के लिए मशहूर सूरत अब कॉटन यार्न और प्रीमियम गारमेंट्स की मांग पूरी करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। FOSTTA (फेडरेशन ऑफ टेक्सटाइल ट्रेडर्स एसोसिएशन, सूरत) के अनुसार, अक्टूबर 2024 के बाद से 120 नई पॉवर लूम्स के ऑर्डर लगाए गए हैं।
FOSTTA अध्यक्ष चम्पालाल बोथरा ने बताया, “पहली बार छोटे और मझोले व्यापारी कॉटन फैब्रिक के उत्पादन में कूदे हैं। अब तक यह क्षेत्र सिर्फ बड़ी कंपनियों जैसे रिलायंस, बॉम्बे डाईंग और वेलस्पन के पास था।”
अक्टूबर तक 500 करोड़ तक उम्मीद
अब तक लगभग 430 करोड़ रुपए के रेडीमेड और फैब्रिक ऑर्डर प्रोडक्शन में हैं, और अक्टूबर के अंत तक यह 500 करोड़ रुपए तक पहुंचने की संभावना है खासकर क्रिसमस और न्यू ईयर की मांग को देखते हुए।
मंदी से आशा की ओर
2017 से जारी मंदी के दौर से जूझ रही इंडस्ट्री को इस वैश्विक बदलाव से नई उम्मीद मिली है। कपड़ा कारोबारी कुमार मनीष ने कहा, “रेयान और विस्कोस के साथ अब हम लिनन और कॉटन यार्न भी इस्तेमाल कर रहे हैं। पहला बैच अक्टूबर के दिवाली सीजन तक डिलीवर होगा, और अंतरराष्ट्रीय ऑर्डर नवंबर की शुरुआत तक। लेकिन मनीष बताते हैं कि 2017 से 2021 तक GST और कोरोना महामारी के कारण उनका व्यवसाय बुरी तरह प्रभावित हुआ। 2022-23 में भी रिकवरी नहीं हो सकी थी।
सतर्क निवेशक अस्थायी लाभ की आशंका
हालांकि कुछ व्यापारी अभी भी सतर्क हैं। कॉटन यार्न उत्पादन में भारी पूंजी और तकनीक लगती है, जो छोटे व्यापारियों के लिए जोखिम भरा है। पारवभाई वधासिया, एक व्यापारी ने कहा कि एयर-जेट पॉवरलूम महंगे हैं और ज्यादा देखरेख मांगते हैं। इसके लिए कुशल श्रमिक भी चाहिए, जो सूरत में कम हैं।
2017 से पहले का सुनहरा दौर
2017 तक सूरत रोज़ाना 4 करोड़ मीटर फैब्रिक बनाता था। लेकिन GST, नोटबंदी और कोविड के बाद यह गिरकर 1.5 करोड़ मीटर प्रतिदिन पर आ गया। उस दौर में 70,000 लूम स्क्रैप में बिक गए, और लाखों श्रमिक बेरोजगार हो गए। कभी 12 लाख लोगों को रोज़गार देने वाली इंडस्ट्री अब सिर्फ 4 लाख लोगों को ही रोजगार दे पा रही है।
वैश्विक ब्रांडों का रुख सूरत की ओर
बांग्लादेश में 3,000 से अधिक टेक्सटाइल मिलें बंद हो चुकी हैं। इससे वहां से पॉलिएस्टर और कॉटन दोनों का निर्यात प्रभावित हुआ। लेकिन जैसे ही वैश्विक ब्रांडों ने भारत की ओर रुख किया, सूरत को एक नई ऊर्जा मिली।बोथरा के अनुसार 2024 अगस्त में कॉटन यार्न 8 रुपये प्रति किलो सस्ता हुआ और कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां सीधे सूरत के व्यापारियों से संपर्क करने लगीं। यह सेक्टर के लिए एक जीवनदायिनी राहत रही।
सूरत की कपड़ा इंडस्ट्री ने बांग्लादेश में अस्थिरता, अमेरिकी टैक्स, और वैश्विक आपूर्ति शृंखला संकट को अवसर में बदल दिया है। हालांकि अभी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। लागत, प्रशिक्षित श्रमिक और अस्थायी वैश्विक रुझानों की अनिश्चितता। फिर भी लंबे समय के बाद सूरत के व्यापारियों में उम्मीद की लौ जगी है।